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9/11 हमले के बाद अमेरिका समेत तमाम देशों ने सुरक्षा व्यवस्था पर दिया था ध्यान, आतंक के खिलाफ पहली बार दुनिया हुई थी एकजुट

वॉशिंगटन, (एजेंसी)। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हो चुकी है। लेकिन 20 साल पहले अमेरिकियों की सुरक्षा के लिए सैन्य अभियान की शुरूआत हुई थी। आपको बता दें कि अमेरिका कभी भी सितंबर का महीना नहीं भूल सकता है क्योंकि इस महीने की 11 तारीख को आतंकवादियों ने उस मजबूत लोकतंत्र पर हमला किया था, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। आपको बता दें कि अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 को अगवा किए गए विमानों की मदद से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों ने हमला किया था। जिसमें करीब 3,000 लोगों की मौत हुई थी। इस दौरान आतंकवादियों ने पेंटागन और पेन्सिलवेनिया को भी निशाना बनाया था।

अमेरिका ने बढ़ाई सुरक्षा व्यवस्था: साल 2001 में हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया। उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश थे। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला होने के साथ ही राष्ट्रपति को एयरफोर्स वन से बाहर निकाला गया और उसी के आगे की रणनीति पर चर्चा हुई लेकिन वह ऐसा वक्त था जब जॉर्ज वॉकर बुश को लोगों को संबोधित करना चाहते थे लेकिन एयरफोर्स वन में लाइव प्रसारण की सुविधा नहीं थी। हालांकि बाद में एयरफोर्स वन को इस सुविधा से भी लैस किया गया। जॉर्ज वॉकर बुश ने अपने संबोधन में कहा था कि United States will hunt down and punish those responsible for these cowardly acts. जिसका हिन्दी में मतलब होता है कि हम हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को ढूंढ़ेंगे और उन्हें इसकी सजा देंगे।

कैसे खत्म करेगा कट्टरपंथी ताकतों को अमेरिका: 20 साल बाद भी कुछ नहीं बदला है। जॉर्ज वॉकर बुश ने अमेरिका हमले के बाद देशवासियों की सुरक्षा के मद्देनजर अफगानिस्तान में अपने सैनिकों को तैनात किया था और वहां से तालिबानी ताकतों को खत्म किया लेकिन आज वहां पर एक बार फिर से तालिबान की सरकार बनने जा रही है। अमेरिकी हमले को 20 साल होने वाले हैं लेकिन कुछ नहीं बदला। बस एबटाबाद में घुसकर ओसामा बिन लादेन को ढेर कर दिया गया है।

कोई एक दिन में तैयार नहीं हुई थी हमले की स्क्रिप्ट: वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले की स्क्रिप्ट कोई एक दिन में तैयार नहीं हुई थी। बल्कि साल 1996 से इस प्लान पर आतंकवादी काम कर रहे थे। इस हमले के बाद अमेरिका ने अपने किले को और भी ज्यादा मजबूत किया। दूसरे तमाम मुल्कों ने भी सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी थी। अमेरिका ने अपने यहां आने वाले पर्यटकों पर कड़ी नजर रखना शुरू कर दिया। कई देशों को दिए जाने वाले वीजा में भारी कटौती की गई।

दुनियाभर में क्या था माहौल?

अलकायदा के आतंकवादियों ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के हमले को अंजाम दिया था, जिसमें 90 देशों के नागरिकों की मौत हुई थी। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से तालिबान को समाप्त करने का जिम्मा उठाया। मगर अमेरिका ही नहीं था जो इस्लामिक कट्टरपंथियों से लड़ रहा था। अमेरिका के अलावा फिलीपीन्स और इण्डोनेशिया भी अपने अंदरूनी संघर्षों के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे। अमेरिका ने आतंकवाद के खात्मे के लिए सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में एक गठबंधन को तैयार किया था। जिसमें 41 सदस्य थे और इसका नाम इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज्म कोएलिशन रखा गया था। वहीं अमेरिका ने साल 2008 में पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ इस्तेमाल के लिए एफ-16 लड़ाकू विमान दिए थे।

भारत भी सुरक्षा की दृष्टि से अपने आपको मजबूत कर रहा था। 9 सितंबर को अमेरिका में हमला हुआ, जिसे अलकायदा ने अंजाम दिया था और दिसंबर में भारत के लोकतंत्र के मंदिर पर आतंकवादी हमला हुआ। जिसके पीछे लश्कर और जैश का हाथ था। भारत अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से लगातार उठ रहे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ किलेबंदी करने की कोशिशों में जुटा हुआ था। अमेरिका जैसे देश में आतंकवादी हमले ने विश्वभर के तमाम देशों को यह संदेश दे दिया था कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए एक मजबूत किला बनाने की आवश्यकता है और आतंक विरोधी अभियान चलाना होगा।

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