राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

एमडीआर टीबी से निज़ात पाने के लिए करनी पड़ी काफ़ी जद्दोजहद:

  • वर्ष 2012 में पहली बार मुझे टीबी की बीमारी हुई:
  • एमडीआर टीबी होने के बाद डीपीएस एवं एसटीएस द्वारा काफ़ी सहयोग मिला: जितेंद्र
  • स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा के रूप में सहयोग नहीं  किया जाता तो शायद मेरी ज़िंदगी नहीं बचती: टीबी चैंपियन

राष्ट्रनायक न्यूज।

पूर्णिया (बिहार)। अगर दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच के साथ कोई भी कार्य किया जाए तो निश्चित रूप से सफ़लता क़दम चूमती है। शायद इसी वजह से ज़िले के कृत्यानंद नगर के गोकुलपुर गांव निवासी सदानंद मेहता के 38 वर्षीय पुत्र जितेंद्र मेहता ने काफ़ी जद्दोजहद को झेलते हुए लगभग डेढ़ वर्षों तक दवा खाने के बाद टीबी से खतरनाक बीमारी एमडीआर टीबी से निज़ात पाई। टीबी जैसी बीमारी की मार पड़ी तो आजीविका चलाने के लिए कर्ज़ के बोझ तले दबे गए। लेकिन काफ़ी लंबे संघर्ष की बदौलत टीबी के दूसरा खतरनाक रूप एमडीआर जैसी घातक बीमारी की जंग जीत गये और जिंदगी पटरी पर लौट आई। घर परिवार के साथ ही ज़िला यक्ष्मा विभाग के डीपीएस राजेश कुमार शर्मा एवं के नगर की एसटीएस शेता कुमारी का इसमें उन्हें भरपूर सहयोग मिला।

वर्ष 2012 में पहली बार मुझे टीबी बीमारी हुई: जितेंद्र

जितेंद्र बताते हैं कि वर्ष 2012 में जब दिल्ली में फैक्टरी में काम करते थे, उस समय कमजोरी के साथ ही रात्रि में बुख़ार आता था। कई महीने तक इलाज़ कराया लेकिन ठीक नहीं हुआ। निजी अस्पताल में जाकर जांच कराया तो टीबी संक्रमण का पता चला। पिता जी से बातचीत करने के बाद घर वापस आ गए। यहां आने के बाद गांव की आशा दीदी मिलने आई और के नगर अस्पताल लेकर साथ गई। पुराने पुर्जे देखने के बाद अस्पताल के चिकित्सक फिर से जांच कराए। उसके बाद नियमित रूप से दवा का सेवन किया। लगातार छः महीने तक दवा खाने के बाद बीमारी ठीक हो गई। उसके बाद मेरी ज़िंदगी पटरी पर चलने लगी और सब कुछ सामान्य हो गया है।

एमडीआर टीबी होने के बाद डीपीएस एवं एसटीएस द्वारा काफ़ी सहयोग मिला: जितेंद्र

जितेन्द्र कहते हैं कि अप्रैल 2019 में फ़िर से मेरी तबियत ख़राब हो गई। उस समय भी शरीर में ऐंठन, कमजोरी एवं रात्रि में बुख़ार रहने लगा। दिल्ली में ही दवा खाने के साथ ही फैक्टरी में काम करते रहे। लगभग छः महीने तक दवा खाये लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ तो फिर घर आ गए। नवंबर 2019 में गांव के लोगों ने कहा कि एक बार फ़िर पूर्णिया जाकर डॉ यूबी सिंह से दिखाओ। उनके पास जाने पर डॉ साहब ने जिला यक्ष्मा केंद्र के डीपीएस को कॉल कर के बुलाया। डीटीसी के अधिकारियों एवं कर्मियों द्वारा जांच का नमूना लेकर भागलपुर भेजा गया। जांच में मुझे टीबी से ज़्यादा ख़तरनाक एमडीआर टीबी बीमारी का पता चला। डीटीसी के अधिकारियों द्वारा मुझे जनवरी 2020 में भागलपुर भेजा गया। जहां 20 दिनों तक रहना पड़ा। उसके बाद लगातार 18 महीने तक नियमित रूप से दवा खाने के लिए बोला गया। इस बीच डीपीसी राजेश शर्मा एवं एसटीएस श्वेता कुमारी नियमित रूप से फ़ॉलोअप करतीं रहीं। इनलोगों का मुझे काफ़ी सहयोग मिला।

स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा के रूप में सहयोग नहीं किया जाता तो शायद मेरी ज़िंदगी नहीं बचती: टीबी चैंपियन

मेरी तबियत खराब होने के कारण परिवार की स्थिति काफ़ी बिगड़ गई। जिससे कर्ज़ के बोझ तले दब गए। टीबी विभाग के द्वारा मुझे सहयोग नहीं किया गया होता तो मेरी ज़िंदगी कब के ख़त्म हो गई होती। इसकी दवा बहुत ज्यादा महंगी होती है। शुरुआती दिनों में निजी अस्पतालों की दवा खाने में बहुत पैसे ख़र्च करने पड़े थे। एमडीआर टीबी की दवा खाने के दौरान निक्षय योजना के तहत मुझे पौष्टिक आहार खाने के लिए आर्थिक सहायता के रूप में राशि भी मिली हैं। जुलाई 2021 में टीबी मुक्त वाहिनी के साथ जुड़कर काम करने के बाद अब रीच इंडिया ने मुझे टीबी चैंपियन बनने के लिए प्रशिक्षण दिया है। इसके बाद हम ख़ुद दूसरे को टीबी बीमारी से बचाव एवं सुरक्षित रहने के लिए जागरूक कर रहे हैं।

सामान्य रूप से टीबी के मुकाबले एमडीआर टीबी अधिक गंभीर: डॉ मोहम्मद साबिर

जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ मोहम्मद साबिर ने बताया कि टीबी जैसी संक्रामक बीमारियों से अधिक गंभीर एमडीआर टीबी को माना जाता है क्योंकि इसके बैक्टीरिया पर टीबी की सामान्य दवाएं काम नहीं करती हैं। मुख्यतः टीबी कुपोषित या कमजोर शरीर वाले को व्यक्तियों को ही अपनी गिरफ्त में लेता है, लेकिन एमडीआर टीबी इस तरह से भेद भाव नहीं करती हैं। सभी तरह के समुदाय से जुड़े व्यक्तियों को अपनी चपेट में लेती है। सामान्य रूप से टीबी के मुकाबले यह रोग काफी जटिल होता है। इसकी मुख्य वजह एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल, टीबी की दवाओं को नियमित रूप से नहीं लेना, एमडीआर टीबी से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहना या टीबी का आधा-अधूरा इलाज करवाना आदि है। यदि किसी रोगी में एमडीआर टीबी विकसित हो जाए, तो वह अपने आसपास रहने वाले लोगों में इसका संक्रमण फैला सकता है।