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कोरोना की मौजूदगी स्वीकार करना संक्रमण से बचाव की अहम कड़ी

कोरोना की मौजूदगी स्वीकार करना संक्रमण से बचाव की अहम कड़ी

सिटिज़न जर्नलिस्ट: अमर कुमार, शिक्षक, नौबतपुर( पटना)

पटना। पिछले 8 महीने से कोरोना संक्रमण का भय किसी न किसी स्वरुप में लोगों की चुनौतियों को बढ़ाती ही रही है. यद्यपि, इन चुनौतियों को कम करने के लिए सरकार द्वारा कई स्तर पर प्रयास भी किये गए हैं. चाहे कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा हो या अधिक से अधिक संक्रमित लोगों की पहचान के लिए कोरोना जाँच की सुविधा उपलब्ध कराने की कवायद हो. ये सारे प्रयास कोरोना की रफ़्तार पर लगाम लगाने में कितनी प्रभावशाली हुयी है, यह एक गहन विश्लेष्ण एवं चर्चा का मुद्दा हो सकता है. लेकिन इन तमाम कोशिशों से एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आयी कि कोरोना पर लगाम लगाना इतना आसान नहीं है. साथ ही एक सवाल भी उभरा कि यदि कोरोना संक्रमण से फिलहाल कोई निज़ात की गुंजाइश नहीं है तो फिर इससे बचाव का क्या विकल्प संभव है? यदि गहनता से कोरोना रोकथाम के विकल्पों को देखा जाये तो यही बात सामने निकल कर आती है कि किसी आपदा की मौजूदगी को स्वीकार करने से उससे बचाव के रास्ते स्वतः बनने लगते हैं. आज के परिदृश्य में इसका आभाव समुदाय में परिलक्षित होता है. कई लोग कोरोना की मौजूदगी को स्वीकार तो कर चुके हैं. लेकिन अभी भी समुदाय का एक हिस्सा इसकी मौजूदगी को दरकिनार करने में जुटा है.

कोरोना को स्वीकारना ही होगा:

अमूमन समुदाय की सोच उसकी सामाजिक संरचना से पोषित होती है एवं व्यक्तिगत विचार समाजिक सोच से काफी हद तक प्रभावित होती है. कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही सामाजिक एवं व्यक्तिगत सोच में संघर्ष देखने को भी मिला. इसका परिणाम यह हुआ कि एक ही समुदाय का कई लोगों ने कोरोना की मौजूदगी को स्वीकार कर अपने चेहरे पर मास्क, हाथों की सफ़ाई एवं शारीरिक दूरी जैसे जरुरी उपायों को तवज्जो देने लगे, वहीं कुछ लोगों ने कोरोना को एक अफ़वाह से जोड़ कर बाकी लोगों की मुसीबतें बढ़ाने में जुट गए. कोरोना संक्रमण की सत्यता तब अधिक उजागर हुयी जब प्रतिदिन देश के साथ राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या में इजाफा होना शुरू हुआ. यह केवल कोरोना पीड़ितों की संख्या में ईजाफा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह लोगों की जान भी लेना शुरू कर चुका था. यही वह वक्त था जब कोरोना संक्रमण को इंकार करने वाले लोगों के चेहरे पर मास्क एवं बैग में सैनिटाइजर की बोतल दिखनी शुरू हुयी. वक्त का पहिया अपने साथ कोरोना को लेकर बढ़ता ही रहा. कोरोना संक्रमण के मामलों में अचानक गिरावट नहीं हो सकी. लेकिन समय बढ़ने के साथ फिर समुदाय में कोरोना संक्रमण के प्रति उदासीनता देखने को मिलने लगी. यह दौर आज का ही है. अभी भी कोरोना के मामले खत्म नहीं हुए हैं. अभी भी समाचार पत्रों में कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या एवं कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या का कॉलम खत्म नहीं हुआ है. यह जरुर हुआ है कि कुछ लोग कोरोना की खबर वाले पेज को पलटकर आगे बढ़ जा रहे हैं. इसका यह मतलब नहीं है कि सभी लोग कोरोना के प्रति लापरवाह हो गए हैं. लेकिन जो लोग लापरवाह हो रहे हैं, उन्हें समाचार पत्रों या टीबी में प्रसारित होने वाले कोरोना मामलों को पढ़ने एवं सुनने की फिर से जरूरत है. सभी को यह याद रखना होगा आपकी लापरवाही सिर्फ आप तक सीमिति नहीं है. आपकी एक छोटी से भूल आपके घर के छोटे बच्चे, बुजुर्ग एवं माताओं के लिए खतरा साबित हो सकता है. अभी तक कोरोना की कोई भी सटीक दवा या वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो सकी है. इसलिए इस दौर में सिर्फ कोरोना से बचाव ही आखिरी विकल्प है. याद रखें, ‘‘जब तक दवाई नहीं, तक तक ढ़िलाई नहीं’’.

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