*शहाबादी शेर के विजय दिवस पर विशेष
राष्ट्रवादी क्रांति के प्रेरणा स्रोत थे वीर कुँवर सिंह, 1857 से लेकर जेपी संपूर्ण क्रांति तक यादगार रहे बाबू साहब
राणा परमार अखिलेश, सारण
” सर पे बाँधे कफन जब जब वीर बांकुड़ा,
आग पानी में जिसने लगाकर दिखाया ।
बोटी बोटी वतन के लिए कट गए,
माँ के दामन को लड़ कर बचाया।
उन शहीदों की गाथा अमर दोस्तों,
खून से सींच कर जो बगीचा लगाया।”
छपरा (सारण)- हम शहाबादी शेर जगदीश पुराधीश्वर राजा वीर बाबू कुँवर सिंह की बुढ़ापे की जवांमर्दी को नमन करते हैं और जिक्र करते हैं, जिन्होंने ने पटना के कमिश्नर विलियम टेलर से लेकर कई गोरे कर्नलों व कप्तानों को धूल चटाते हुए आरा से लेकर आजमगढ़ तक आपने परचम को लहराया।बहरहाल, 1957 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में संपूर्ण भोजपुरी जनपदों के सभी वर्गों व वर्णों का नेतृत्व करने वाले भोजपुरिया नाहर बाबू कुँवर सिंह की पंथनिरपेक्ष छवि, स्वराज व स्वाधीनता की सोंच व शौर्य-पराक्रम की गाथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर स्वतंत्र भारत में व्यवस्था परिवर्तन हेतु जेपी के संपूर्ण क्रांति और आजतक प्रेरणा की स्रोत है। स्वतंत्रता सेनानी एवं शीतलपुर बाबू टोला के स्वर्गीय देवशरण सिंह व भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर जेपी के संपूर्ण क्रांति में सक्रिय रहे दिघवारा वासी स्वर्गीय देवेन्द्र कुमार ने अपने संस्मरण व रचनाओं में बाबू साहब को प्रेरणा स्रोत करार दिया है। गंगा, सरयू, सोन, गंडक, कर्मनासा, वरूणा आदि नदियों की लहरें शहाबादी शेर की वीर गाथा अपनी लहरों के माध्यम से आज भी कह रही है। बाबू साहब के क्रांति यज्ञ में आहुति देने वालों में झमन तुरहा, बसतपुर,दिघवारा, लछु हाजरा, दिघवारा, मलखाचक के राम गोविंद सिंह उर्फ चचवा से लेकर जालिम सिंह, जुझार सिंह, ताखा सिंह, दिराखा सिंह, मैकू मल्लाह न जाने कितने सारण के शुरमा शामिल थे। छपरा स्थित कटरा में बाबू साहब का टकसाल गवाह है सारण की सहभागिता की।
बहरहाल, यद्यपि 1857 की क्रांति का श्री गणेश तो 26 जुलाई 1857 को हुआ किंतु उसके पूर्व होली गायन में- ” बाबू कुँवर सिंह तेगवा बहादुर बंगला पर उड़ेला अबीर हो लालऽ ।आज भी सुने जा सकते हैं ।कुँवर विजयी लोक गीतों में ” बाबू अस्सीए बरिस के उमिया हो ना/ बाबू काटी लिहलन गोरवन के मुरिया हो ना।” सुनते ही नौजवान के शिराओं का लहु गरम-गरम हो लावा बन फुट पड़ता है। *विरासत में मिली थी राष्ट्र भक्ति : जगदीशपुर नरेश बाबू कुँवर सिंह की गौरवशाली वंश परंपरा में राष्ट्रवादी विचारधारा व देश भक्ति अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। मालावाधिपति चक्रवर्ती सम्राट वाक् पति भोजराज ने चेदी नरेश को पराजित कर अखंड भारत में शामिल की थी। भोजपुर नामाकरण के साथ राजधानी भोजपुर में परमार वंशी क्षत्रप शासक रहे ।चूंकि वे उज्जैन से आए थे लिहाजा, परमार वंशी क्षत्रिय उज्जैन वंशी संज्ञा से बिहार में प्रचलित हुए । मुगल काल में उज्जैन वंशियों ने कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। पंडित चंद्रशेखर मिश्र कृत भोजपुरी महाकाव्य ‘ कुँवर सिंह ‘ के अनुसार उज्जैन राजा दलपति सिंह अकबर व जहाँगीर से लड़ते रहे एक विशाल सेना मुगल सेनापति राजा मान सिंह के नेतृत्व में आयी, राजा मानसिंह बंगाल के सूबेदार नियुक्त हुए थे, सोनपुर के गंडक किनारे की भूमि आज भी सरकारी अभिलेख में ‘बाग राजा मानसिंह ‘दर्ज है।किंतु राजा दलपति सिंह लड़ते रहे और आजाद रहते हुए शिवलोक गमन किए। शाहजहाँ के शासन काल में उज्जैन नरेश राजा प्रताप सिंह लड़ते रहे और कतिपय गद्दारों की सहायता से राजा प्रताप सिंह बंदी बना लिए गए लेकिन उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की और शाहजहाँ ने उन्हें फांसी दे दी। किंतु उज्जैन वंशी राजाओं का संघर्ष जारी रहा और अंत में औरंगजेब ने उन्हें राजा स्वीकार कर लिया।
*1857 के संग्राम का बीजारोपण हुआ हरिहर क्षेत्र मेला मे : 1777 में जगदीशपुर नरेश बाबू साहबजादा सिंह एवं रानी पंचरत्ना कुँवरी के पुत्र रत्न के रूप में अवतरित कुँवर सिंह 1826 में युवराज से महाराज बने । कुशल शासन प्रबंधन व निर्माण के साथ 1787 गाँवों के विकास पर ध्यान केंद्रित था, राजा का। भोजपुर जिला का पियरो गांव का ‘ दुसाध बिगहा ‘ उनकी सहृदयता का परिचायक है। जब धान की रोपनी हो रही थी । तत्कालीन परंपरानुसार धनरोपनी करने वाली महिलाएं मालिकों पर कीचड़ फेकती थी और मालिक इनाम देते थे। जब राजा कुँवर सिंह धान के खेतों का मुआयना कर रहे थे तो महिलाओं ने पांक कीचड़ राजा पर डालना शुरू किया किंतु एक महिला ने ऐसा नहीं किया । उसने कारण बताया कि ‘मलिकार हमरे बाप हउअन’ पता चला कि उस दलित महिला का मैका जगदीशपुर था। बस क्या था ?राजा ने अपने पटवारी को शीघ्र ही आदेश दिया ‘ मेरी बेटी को 200बिगहा जमीन बिना लगान का बंदोबस्त कर दो।’ आज वही दुसाध बिगहा गांव है।
महाकवि आरसी प्रसाद सिंह के हिन्दी प्रबंध काव्य ‘वीर कुँवर सिंह ‘ के अनुसार 1856के हरिहर क्षेत्र मेला में देश भर के राजे-महाराजे, नवाब, ताल्लुकेदार,जमींदारों का आगमन हुआ था। राजा कुँवर सिंह की अध्यक्षता में बैठक हुई थी और संपूर्ण भारत में क्रांति की तिथि तय हुई थी। 1857 की क्रांति का बीजारोपण हुआ हरिहर क्षेत्र मेला में और बाबू कुँवर सिंह ने सिंधबाज, बलहोत्रा, जोधपुरी, अरबी आदि उन्नत नस्लों के घोड़े खरीदकर जगदीशपुर वापस हुए । गंगा- सोन-सरयू का दियारा क्षेत्र दानापुर, दिघवारा, कोटवां रामपुर से लेकर सिताब दियारा गुरिल्ला प्रशिक्षण केन्द्र बना । लड़के भर्ती हो रहे थे और बाबू साहब की देख रेख में ट्रेनिंग ले रहे थे।
क्रांति का शंखनाद : 26 जुलाई 1857 को दानापुर छावनी के हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने विद्रोह का शंखनाद कर दिया और बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में युद्ध लड़ने की शपथ ली।27 जुलाई 1857 को राजा कुँवर सिंह ने आरा कलेक्कटरेट पर कब्जा कर लिया । 29 व 30 जुलाई 1857 को आजमगढ़ और गाजीपुर पर विजय परचम लहरा दिया । 27 मार्च 1858 को कर्नल डेंस एवं 17 अप्रैल 1858 को ब्रिगेडियर डजलस को धूल चटा दी शहाबादी शेर ने। बलिया के शिवपुर घाट से गंगा पार कर आरा लौट रहे बाबू कुँवर सिंह पर कायर कर्नल लुगार्ड ने पीछे से गोली दाग दी और शेर की बाईं भुजा में जा लगी । वीर बांकुड़ा ने तत्क्षण अपनी तलवार से उस भुजा को काटकर माँ गंगा को अर्पित कर दी। जगदीशपुर किले में वापसी के बाद 23 अप्रैल 1858 को विद्रोही सेना के नेतृत्व राजा कुँवर सिंह के अनुसार महाराज कुमार अमरसिंह ने संभाला और कैप्टेन एल ग्रैंड के साथ भीषण संग्राम हुए । राजकुमार अमरसिंह ने भाले की नोक पर ग्रैंड का मस्तक राजा को नजराना पेश किया । विजयोत्सव जमकर मना । 26 अप्रैल 1858 को राजा कुँवर सिंह ने अपने अनुज अमरसिंह का राज्याभिषेक किया और सदा सर्वदा के लिए संसार को छोड़ कर शिवलोक के लिए प्रस्थान कर गए । किंतु आजादी की मशाल जलता रहा । अगस्त क्रांति 1942 से 1974 तक संपूर्ण क्रांति तक । उग्र राष्ट्रवादी संगठन हिन्दुस्तान सोशल रिपब्लिक आर्मी जिसके नेता थे सरदार भगत सिंह, उस आर्मी के सारण जिला एरिया कमांडर मलखाचक निवासी बाबू रामदेनी ने 4 मई 1932 को मुजफ्फरपुर जेल मे वंदेमातरम नारा लगाते हुए फांसी के फंदे को चुमा और शहादत देने वालों में बिहार के प्रथम शहीद का दर्जा प्राप्त की।11 अगस्त 1942 को राजेन्द्र प्रसाद सिंह, उमाशंकर प्रसाद सिंह, राम गोविंद, जगपति, रामानंद, देवीपद व सतीश ने पटना सचिवालय पर तिरंगा लहराते हुए शहादत दी तो दिघवारा – सोनपुर में महेश्वर सिंह, मलखाचक के वीर नारायण सिंह, दिघवारा के हरिनंदन प्रसाद साह,ठाकुर सीताराम सिंह, ठाकुर यदुनंदन सिंह, सहबीर साह ने शहादत दी । 1974 में भी व्यवस्था परिवर्तन हेतु जेपी के संपूर्ण क्रांति में कई नौजवान शहीद हुए, जेल गए और कुछ भूमिगत रहकर आन्दोलनरत रहे । बिहार सरकार जेल गए जेपी सेनानियों को पेंशन दे रही है किंतु जो भूमिगत रहकर आन्दोलनरत रहे, अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाए उन लोगों पर अबतक ध्यान नहीं लिया नितीश सरकार ने। और तो और अब तो शहीदों के नाम भी नयी पीढ़ी की जुबान नहीं आती। बहरहाल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने बाबू कुंवर सिंह की तस्वीर संसद भवन लगवाकर श्रद्धांजलि अर्पित की, किंतु हम बिहारी अपने पूर्वजों से विरासत को भी भूलते जा रहे हैं ।


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