दिल्ली, एजेंसी। मनुष्य बड़ा जिज्ञासु होता है और अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए लगातार प्रयास करता रहता है। मंगल ग्रह को लेकर मनुष्य की खोज जारी है। कई वर्षों से वैज्ञानिक इन सवालों को हल करने में लगे हैं कि क्या मंगल पर पृथ्वी जैसा बड़ा महासागर है, क्या यहां किसी न किसी रूप में जीवन है और क्या मनुष्य कभी मंगल पर जाकर स्थाई रूप से रह सकेंगे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष एजैंसी इसरो ने कहा है कि मंगल पर बस्ती बनाई जा सकती है। तो क्या भविष्य ‘मंगलमय’ होगा? इन्हीं सवालों के जवाब के लिए वैज्ञानिकों ने अपने यान भेजे।
नासा ने अब लाल ग्रह पर नई उपलब्धि हासिल की है। नासा ने पहली बार धरती के अलावा किसी और ग्रह की सतह पर एक हैलीकाप्टर की नियंत्रित उड़ान कराने में सफलता हासिल कर ली है। नासा के छोटे रोबोट हैलीकाप्टर इंजीन्यूरी ने मंगल ग्रह की सतह पर उड़ान भरी और नीचे भी उतर आया। नासा की इस उपलब्धि ने मंगल ग्रह और सौर मंडल में दूसरे ठिकानों पर भी खोज के नए साधनों के इस्तेमाल का रास्ता खोल दिया है। इन नए ठिकानों में शुक्र ग्रह और शनि का चन्द्रमा टाइटन शामिल है। मंगल से आए इंजीनियरिंग डाटा ने पुष्टि की कि दो रोटरो वाले 1.8 किलो के इस हैलीकाप्टर ने 40 सैकेंड की अपनी उड़ान तीन घंटे पहले पूरी कर ली। तय प्रोग्रामिंग के अनुसार हैलीकाप्टर को सीधा हवा में दस फीट उठना था, फिर आधे मिनट तक मंगल की सतह पर स्पिट रह कर, घूम कर अपने चारों पांवों पर लैंड करना था। यह सारी प्रक्रिया सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। मंगल पर नासा पर्सीवरेंस पर लगे एक कैमरे से ली गई कलर वीडियो के एक टुकड़े में नारंगी रंग के परिदृश्य के आगे उड़ता हुआ हैलीकाप्टर दिखाई दिया। इस तरह इंसानों ने एक दूसरे ग्रह पर सफलतापूर्वक एक विमान उड़ा लिया है।
मार्स हैलीकाप्टर परियोजना की शुरूआत छह वर्ष पहले की गई थी। 1997 में नासा के सोजर्नर रोवर ने पहली बार इस ग्रह की सतह को छुआ था। उसी समय यह साबित हो गया था कि इस लाल ग्रह पर चलना सम्भव है। इस मिशन ने एक नई सोच और आयाम दिया था। यही सोच इसके बाद मंगल ग्रह पर भेजे गए सभी मिशनों पर लागू हुई थी। नासा पर कंट्रोल तरीके से उड़ान भरना काफी मुश्किल काम है। मंगल ग्रह पर धरती के मुकाबले केवल एक तिहाई ग्रेविटी है। वहीं उसका वातावरण धरती के मुकाबले एक फीसदी ही घना है। वहां पर धरती के मुकाबले सूर्य की आधी ही रोशनी पहुंच पाती है। वहीं मंगल पर रात का तापमान 130 डिग्री के नीचे गिर जाता है। ये तापमान किसी भी चीज को जमा सकता है और इलैक्ट्रिकल उपकरणों के कलपुर्जों को तोड़ सकता है। इसीलिए हैलीकाप्टर का साइज काफी छोटा और वजन काफी कम रखा गया। मंगल ग्रह पर गिरते तापमान के दौरान इसमें लगे हीटर ने इसको गर्म रखा।
जहां तक भारत की बात है, उसने पहले ही वह कर दिखाया है जो न अमेरिका कर सका, न चीन और न कोई और विकसित देश। भारत का मंगलयान 67 करोड़ किलोमीटर का सफर कर पहली ही कोशिश में सीधे मंगल ग्रह की कक्षा में जा पहुंचा था। दुनिया के सभी देशों ने मंगल के करीब पहुंचने के लिए अब तक 51 मिशन छोड़े हैं, इनमें से कामयाब सिर्फ 21 ही हुए?थे। पृथ्वी का पड़ोसी और नंगी आंख से नजर आने वाला लाल ग्रह हमेशा पृथ्वीवासियों को आकर्षित करता रहा है। मंगल की बखियां उधेड़ने वाले वैज्ञानिकों को विश्वास है कि मंगल पर कभी जीवन था, इसलिए अगर इसे खंगाल लिया जाए तो धरती से दूर एक नया ठिकाना बन जाएगा। इसलिए वैज्ञानिक मंगल पर कभी पानी, कभी कार्बनिक पदार्थ वगैरह खोज ले रहे हैं, यानी ऐसी दिशाएं जो कभी जीवन होने की सम्भावनाएं दशार्ती हैं। मंगल की सतह पर कार्बन डाईआक्साइड गैस होने का दावा किया गया जो कि कुलबुलाते जीवन की ओर इशारा करता है।
नासा की इस उपलब्धि में भारतवंशी वैज्ञानिक जे बॉब बलराम का दिमाग है, जो नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में काम करते हैं। जे बॉब बलराम दक्षिण भारत से हैं। बचपन में ही राकेट और स्पेस साइंस में उनका मन लगने लगा था। बॉब बलराम ने आईआईटी मद्रास से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। आईआईटी से ही बॉब ने एम एस किया। इसके बाद उन्होंने न्यूयार्क के रेनसीलर पॉलीटैक्नीक इंस्टीच्यूट से कम्प्यूटर एवं सिस्टम इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वहीं से ही पीएचडी की उपाधि भी हासिल की। मंगल ग्रह पर उड़ने वाले हैलीकाप्टर को बॉब बलराम ने ही डिजाइन किया था। नासा के मार्स मिशन में काम करने वाले बॉब बलराम भारतीय मूल के दूसरे इंजीनियर हैं। उनके अलावा भारतीय मूल की स्वाति मोहन मार्स मिशन को लीड कर रही है। बॉब बलराम को पिछले वर्ष 2020 मिशन में पसीर्वेंस रोबट वाली टीम में चुुना गया, जिसके बाद उन्होंने अपनी टीम की मदद से धरती से लाखों किलोमीटर दूर लगभग 7 गुणा हल्के वातावरण में मार्स हैलीकाप्टर को सफलतापूर्वक उड़ा कर इतिहास रच दिया।
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