राष्ट्रनायक न्यूज।
सहरसा। कोसी की रेतीली भूमि से मिठास उपजाने वाले किसानों पर इन दिनों सबसे ज्यादा लॉकडाउन की मार पर रही है। बाहर के व्यापारियों के नहीं पहुंचने के कारण तरबूज के खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं। खेत में फसल बर्बाद होते देखकर किसान परेशान हो रहे हैं। सात वर्ष पूर्व शुरू की थी तरबूज की खेती:-कोसी नदी के किनारे की बलुआही जमीन पर सात वर्ष पूर्व पहली बार बलुआहा के दो तीन किसानों ने मिलकर पांच एकड़ में तरबूज की खेती की शुरूआत की थी। बाद के समय में इस फसल से होने वाले मुनाफे ने बड़ी संख्या में स्थानीय किसानों को इस खेती की ओर आकर्षित किया और आज महपुरा से लेकर सरौनी तक लगभग पांच सौ एकड़ जमीन में तरबूज की खेती की जाती है। प्रतिदिन दस से पंद्रह ट्रक बाहर जाता था तरबूज:- यहां के मीठे तरबूजों की मांग बिहार के पटना, भागलपुर सहित अन्य शहरों के अतिरिक्त बंगाल, उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल के कई शहरों में है। इन शहरों से व्यापारी ट्रक लेकर यहां आते थे अथवा यहां के व्यापारी तरबूज लेकर दूसरे शहर में जाते थे। नहीं आ रहे हैं व्यापारी:- कोरोना महामारी को लेकर सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के कारण बाहर के व्यापारी नहीं पहुंच रहे हैं और स्थानीय बाजारों में इतने बड़े मात्रा में तरबूज की खपत नहीं होने के कारण किसानों का कच्चा माल कई दिनों तक यूं ही पड़ रह जाता है और खराब हो जाता है जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। क्या कहते हैं किसान:- इस संबंध में कई किसानों ने बताया कि दो वर्ष पूर्व तक सब ठीक था, लेकिन दो वर्षों से फसल के निकलने के वक्त लगने वाले लॉकडाउन ने किसानों को आर्थिक रूप से काफी क्षति पहुंचाई है। पिछले वर्ष प्रति किसानों को प्रति एकड़ चालीस से पचास हजार का नुकसान हुआ। इस वर्ष उससे अधिक क्षति होने का अनुमान है। कई किसानों ने अगले वर्ष से तरबूज की खेती को तौबा करने का मन बना लिया है।


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