पटना: हर खेत को पानी योजना के लिए चल रहे सर्वे के दूसरे चरण पर कोरोना की काली छाया मंडराने लगी है। दूसरे चरण में खेतों का तकनीकी सर्वे हो रहा है। दिसम्बर से शुरू हुए इस काम को मई में ही पूरा होना था। लेकिन, अभी काम पूरा होने में काफी वक्त लगेगा। कोरोना के कारण अधिकारी सर्वे को गांव नहीं जा रहे हैं। उन्हें गांव में ग्रामीणों के साथ बैठक भी करनी है। ऐसी बैठकों पर सरकार ने भी करोना काल में रोक लगा दी है। लिहाजा, अब इसका समय एक बार फिर बढ़ाना सरकार की मजबूरी होगी। हर खेत को पानी के लिए जमीनी सर्वे पूर्व होने के बाद तकनीकी सर्वे की योजना बनी। यह योजना दिसम्बर में बनी और काम शुरू हुआ। पहले तय हुआ कि काम को सौ दिनों में पूरा करना है। लेकिन, बाद में सौ कार्यदिवस में पूरा करने का लक्ष्य बना। इस हिसाब से छुट्टियों को छोड़कर काम पूरा करने का समय मई महीने के अंत तक तय किया गया, लेकिन अब एक बार फिर अवधि विस्तार देनी होगी।
तकनीकी सर्वे के लिए जल संसाधन विभाग योजना को नोडल बनाया गया है। उसके साथ लघु जल संसाधन, बिजली और कृषि विभाग के अधिकारी भी तकनीकी सर्वे में लगे हैं। चारों विभागों को मिलाकर हर प्रखंड के लिए 534 टीमें बनी हैं। इसके अलावा हर जिले में मॉनीर्टंरग के लिए भी अलग से एक-एक टीम बनी है। मास्टर ट्रेनरों की एक टीम है अलग से है। सभी टीमों की र्ट्रेंनग का काम पूरा हो गया है और सर्वे भी शुरू हो गया है। तकनीकी सर्वे करने वाले अधिकारियों के पास कृषि विभाग द्वारा किये गये सर्वे की पूरी रिपोर्ट दी गई है।
रिपोर्ट में किसानों की सलाह भी है। तकनीकी टीम को देखना है कि किसानों की सलाह कितना सही है, उस पर काम किया जा सकता है या नहीं। जल संसाधन विभाग के इंजीनियर यह देखेंगे कि पानी कैसे पहुंचाया जाए। जरूरत पड़ी तो नहरों से बने चैनल को भी बढ़ाया जा सकता है। नहर और आहर-पईन का विकल्प संभव नहीं है तो वहां बिजली का फीडर पहुंचाकर नलकूप लगाने की व्यवस्था होगी। जो भी विकल्प सही होगा उसका स्टीमेट आगे इंजीनियर बनाएंगे और बजट सत्र में इसके लिए अलग से पैसे की व्यवस्था कर उसपर काम शुरू किया जाएगा।
कृषि विभाग द्वारा किये गये प्लॉट टू प्लॉट सर्वे के अनुसार 11 लाख 20 हजार 988 हेक्टेयर खेती योग्य जमीन र्अंसचित है। इन खेतों से जुड़े लगभग 38 लाख 83 हजार किसानों ने बोरवेल की मांग की है। खास बात यह है कि बिजली चालित सिंचाई सेट मांगने वाले किसानों की संख्या सबसे अधिक यानी 20 लाख 57 हजार है। मतलब साफ है कि किसानों को बिजली हर वक्त उपलब्ध है और सस्ती भी है। बावजूद तकनीकी सर्वे में दूसरी संभावनाएं भी तालाशी जाएंगे।


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