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थैलेसीमिया रोग के प्रति रहें सजग, अनुवांशिक तौर पर माता-पिता से बच्चों में होने की खतरा

थैलेसीमिया रोग के प्रति रहें सजग, अनुवांशिक तौर पर माता-पिता से बच्चों में होने की खतरा

•शादी के पहले थैलेसीमिया की जांच आवश्य कराएं

•गर्भवती महिला की चार महीने के अंदर गर्भस्थ की जांच जरूरी

छपरा (सारण)-   विश्व थेलेसीमिया दिवस’ प्रत्येक वर्ष 8 मई को मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य थेलेसीमिया रोग के प्रति लोगों को जागरूक करना है। थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस बार का थीम है- नए युग के लिए थैलिसिमिया का चित्रण: वैश्विक प्रयासों के जरिए मरीजों को सस्ते एवं आसानी से उपलब्ध होने वाली नोबल थीरेपी’। केयर इण्डिया के मातृ स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद ने बताया थैलिसिमिया एक गंभीर रोग है जो वंशानुगत बीमारियों की सूची में शामिल है. इससे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है जो हीमोग्लोबिन के दोनों चेन( अल्फा और बीटा) के कम निर्माण होने के कारण होता है. अभी भारत में लगभग 1 लाख थैलिसीमिया मेजर के मरीज है और प्रत्येक वर्ष लगभग 10000 थैलिसीमिया से ग्रस्त बच्चे का जन्म होता है. अगर केवल बिहार की बात करें तो लगभग 2000 थैलिसीमिया मेजर से ग्रस्त मरीज है जो नियमित ब्लड ट्रांसफयूजन पर है। जिन्हे ऊचित समय पर ऊचित खून न मिलने एवं ब्लड ट्रांसफयूजन से शरीर में होने वाले आयरन ओवरलोड से परेशानी रहती है और इस बीमारी के निदान के लिए होने वाले बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के महंगे होने के कारण इसका लाभ नहीं ऊठा पाते हैं. इसलिए खून संबंधित किसी भी तरह की समस्या पति, पत्नी या रिश्तेदार में कहीं हो तो सावधानी के तौर पर शिशु जन्म के पहले थैलिसिमिया की जांच जरुर करायें.

पहचान तीन माह की आयु के बाद:

सदर अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीला सिंह ने बताया कि इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। त्वचा और नाखूनों में पीलापन आने लगता है। आंखें और जीभ भी पीली पडऩे लगती हैं।

बार-बार शरीर में रक्त कमी:

डॉ नीला सिंह ने बताया कि इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना ब़ढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थेलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं।

थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है:

थैलासीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। किन्तु पालकों में से एक ही में माइनर थेलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के 25 प्रतिशत संभावना है। अतः यह अत्यावश्यक है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जाँच करा लें।

गर्भवती महिला की चार महीने के अंदर गर्भस्थ की जांच जरूरी:

थैलेसीमिया से पीड़ित महिलाओं को प्रेग्नेंसी के चार महीने के भीतर गर्भस्थ की जांच जरूर करवा लेनी चाहिए। अगर गर्भ के बच्चे को बीमारी की पुष्टि होती है तो गर्भपात करवाया जा सकता है। थैलेसीमिया का इलाज इस बीमारी के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। पिछले कुछ सालों में थैलेसीमिया के इलाज में काफी सुधार हुआ है। मध्यम और गंभीर थैलेसीमिया से पीड़ित लोग अब लंबी जिंदगी जी रहे हैं। थैलेसीमिया मेजर के रोगियों के इलाज में क्रोनिक ब्लड ट्रांसफ्यूजन थेरेपी, आयरन कीलेशन थेरेपी आदि शामिल हैं। इसमें कुछ ट्रांसफ्यूजन भी शामिल होते हैं, जो मरीज को स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की अस्थायी रूप से आपूर्ति करने के लिए आवश्यक होते हैं, ताकि उनमें हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य हो सके और रोगी के शरीर के लिए जरूरी ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम हो।

शादी से पहले जांच करवाएं:

डॉ नीला सिंह का कहना है कि यह महत्वपूर्ण है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ, गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ , रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें, समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।