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राजद्रोह कानून की वैधता को परखेगा सुप्रीम कोर्ट

  • आजादी के 75 साल बाद भी अंग्रेजों के जमाने के कानून की देश में क्या जरूरत?

नई दिल्ली, (एजेंसी)। एक शख्स था थोमस बैबिंगटन मैकाले ये भारत तो आया था अंग्रेजी की पढ़ाई करने लेकिन उसके बाद इसी भारत में अगर किसी ने देशद्रोह का कानून ड्राफ्ट किया तो वो लार्ड मैकाले ही थे। सोचिए जरा सन 1837 में जो देशद्रोह कानून बना था उस पर देश की सबसे बड़ी अदलात ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि क्या आजादी के 75 साल के बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस कानून के वैधता को जांचेगी और इस मामले में केंद्र सरकार का जवाब भी मांगेगी। अदालत ने कहा कि ये कानून औपनिवेशिक है और ब्रिटिश काल में बना था। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा कि इस कानून को लेकर विवाद ये है कि ये औपनिवेशिक है और इसी तरह के कानून के कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को चुप कराने के लिए किया था। अदालत ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि ये कानून संस्थानों के काम करने के रास्ते में गंभीर खतरा है। इसमें ऐसी असीम ताकतें हैं जिनका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह के कानून को कई याचिकाओं के जरिये चुनौती दी जा चुकी है और इन सब याचिकाओँ को एक साथ सुना जाएगा।

राजद्रोह कानून पर क्यों हो रही है सुनवाई: यह पूरा मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए से जुड़ा है। पीठ मेजर-जनरल (सेवानिवृत्त) एसजी वोम्बटकेरे की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है।

लकड़ी काटने को कहा गया हो और उसने पूरा जंगल काट दिया: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह की कानून की तुलना एक ऐसे बढ़ई से की जा सकती है, जिससे एक लकड़ी काटने को कहा गया हो और उसने पूरा जंगल काट दिया हो। सीजेआई ने कहा कि एक गुट के लोग दूसरे समूह के लोगों को फंसाने के लिए इस प्रकार के (दंडात्मक) प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि कोई विशेष पार्टी या लोग (विरोध में उठने वाली) आवाज नहीं सुनना चाहते हैं, तो वे इस कानून का इस्तेमाल दूसरों को फंसाने के लिए करेंगे।

गांधी जी और स्वतंत्रता संग्रमा का जिक्र: कोर्ट ने कहा कि विवाद इस बात को लेकर है कि क्या ये कॉलोनियल है। अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, गोखले और अन्य को चुप कराने के लिए इसी तरह का कानून इस्तेमाल किया था। इसी कानून के जरिए आजादी के आंदोलन को दबाने की कोशिश की गई थी। क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे हमारे देश के कानून की किताब में होना चाहिए?

75 वर्ष से कानून की किताब में बरकरार रखने पर रउ ने जताया आश्चर्य, कहा- हम परखेंगे वैधता: पीठ ने पिछले 75 वर्ष से राजद्रोह कानून को कानून की किताब में बरकरार रखने पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि हमें नहीं पता कि सरकार निर्णय क्यों नहीं ले रही है, जबकि आपकी सरकार (अन्य) पुराने कानून समाप्त कर रही है। इसने कहा कि वह किसी राज्य या सरकार को दोष नहीं दे रही, लेकिन दुर्भाग्य से क्रियान्वयन एजेंसी इन कानूनों का दुरुपयोग करती है और कोई जवाबदेही नहीं है। अदालत ने कहा कि हम इस कानून की वैधता को हम परखेंगे।

देशद्रोह या राजद्रोह क्या है?

अब थोड़ा अंग्रेजी के शब्द सिडिशन और हिंदी में कहे तो राजद्रोह के बारे में जान लेते हैं। सिडिशन शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है राजद्रोह। हमारे देश में राजद्रोह को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में शामिल किया गया है।

देशद्रोह की धारा 124ए क्या कहती है?

देश के खिलाफ बोलना, लिखना या ऐसी कोई भी हरकत जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो वो देशद्रोह कहलाएगी। अगर कोई संगठन देश विरोधी है और उससे अंजाने में भी कोई संबंध रखता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है तो उस व्यक्ति पर भी देशद्रोह का मामला बन सकता है। अगर कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर मौलिक या लिखित शब्दों, किसी तरह के संकेतों या अन्य किसी भी माध्यम से ऐसा कुछ करता है। जो भारत सरकार के खिलाफ हो, जिससे देश के सामने एकता, अखंडता और सुरक्षा का संकट पैदा हो तो उसे तो उसे उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है।

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