- लैटरल ऐंट्री” आरक्षण समाप्त करने की एक और साजिश है
- लैटरल एंट्री के जरिए अबतक हो चूका 60-62 बहाली
- 13 प्वाइंट रोस्टर एक ज्वलन्त उदाहरण है जिसके चलते खास कर एस सी और एस टी से आने वाले नौजवानों को विश्वविद्यालयों के शिक्षक बनने से किया गया था “
लेखक: अहमद अली
विगत लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने नरेंद्र मोदी सरकार पर दो बड़े आरोप लगाए थे। एक संविधान विरोधी दूसरा आरक्षण विरोधी। लैटरल एंट्री के मामले ने विपक्ष के आरोपों को पूरी तरह सही साबित कर दिया है। खैर, अब तो यह वापस ले लिया गया है और विरोध- प्रतिरोध की आवाजे़ फिलहाल थम गई हैं।सरकार को बैकफुट पर लाने में मजबूत विपक्ष का मुखर विरोध की मेरुदंड जैसी भुमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता ।साथ ही यह भी स्पष्ट रुप से प्रकाश में आ गया कि जिस विचारधारा के तहत यह सरकार चल रही है या पिछले दिनों चली थी,उसी की यह एक बानगी थी।यह भी स्पष्ट है कि यदि पहले वाली संख्या होती तो आज भी सरकार तानाशाहीपूर्ण रवैया से बाज नहीं आती ।विगत तीन दिन का घटनाक्रम यह टास्क भी निर्धारित कर गया कि संविधान रक्षक ताकतों को अभी भी सजग रहने की आवश्यकता है।वर्तमान सरकार में मनुवादियों और कार्पोरेट परस्तों की भारी भड़कम जमात है। यही कारण है कि उनकी नीतियाँ हिमाकत भरी लहजे में यह बोल उठती हैं कि आरक्षण के हकदार जमात में काबिल लोग नहीं होते। सचमुच, लैटरल एंट्री के जरिए वो यही कहना भी चाहते हैं। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि उच्च या सर्वोच्च पदों पर अनुभवी और काबलियत से लबरेज लोग होने चाहिए।पर यह सोच लेना नाईंसाफी से बढ़कर आरक्षण को समाप्त करने का एक बहाना मात्र है कि काबिलियत केवल ब्राह्मणवाद के पोषक तत्वों में ही होती है।आईना दिखाना होगा उन्हें, बाबा साहब अम्बेडकर, महात्मा फूले, पेरियार, अबुल कलाम आजाद और न जाने कितने उच्च कोटि का मस्तिष्क इसी बहुजन समाज ने दिया है।आज भी इस जमात में योग्य , दक्ष , विद्वान और अनुभवी लोगों की कमी नहीं है। सत्य यह है कि उनके विकास में हर कदम पर रोडे़ अटकाए जाते हैं।
13 प्वाइंट रोस्टर एक ज्वलन्त उदाहरण है जिसके चलते खास कर एस सी और एस टी से आने वाले नौजवानों को विश्वविद्यालयों के शिक्षक बनने से महरुम किया गया था। पिछली मोदी सरकार ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (MANF) को समाप्त कर अर्थ विहीन अल्पसंख्यक बच्चों को उच्च शिक्षा से महरुम कर दिया। बताते चलें कि इस योजना के माध्यम से उन्हें 25000 से 30000 तक वजीफा मिल जाया करता था।
आई पी एस और आई ए स की बहाली लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा कई परीक्षाओं( मौखिक और लिखित) से गुजरने के बाद होती है जो पूर्णतः संविधान सम्मत है।इसे समझने के लिये संविधान के आर्टिकल 315 और 323 का अध्ययन किया जा सकता है।पायेंगे कि हमारे संविधान निर्माताओं ने बहुत ही सूक्ष्म पारदर्शी तरीके से यह व्यवस्था दी थी कि नौकरशाही का गठन कैसे हो।कितने सदस्य होंगे,
कौन अध्यक्ष होगा कितनी परीक्षाएँ होंगी वगैरह।सरकार लैटलर ऐंट्री के माध्यम से सीधी भर्ती के लिये विज्ञापन जारी कर खुल्लम खुल्ला संविधान के विरोध पर उतर आई थी।संविधान में यह व्यवस्था इसीलिये कायम की गयी थी ताकि कोई भी सरकार अपनी निहित राजनैतिक स्वार्थ के लिये कोई मनमानी न कर सके जैसा कि मोदी सरकार करने जा रही थी। 17 अगस्त 2024 को यू पी एस सी ने 24 मंत्रालयों के लिये 45 पदों की भर्ती का जो विज्ञापन जारी किया था वह 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उपसचिव पदों पर भरती के लिए था। उसमें एस सी,एस टी या ओबीसी के लिये आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी।नीजी क्षेत्र के तथाकथित अनुभवी लोगों को लेकर सीधी भरती करनी थी। स्पष्ट है कि आरक्षण पर प्रहार की यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था। इन 45 पदों में आरक्षण की व्यवस्था होती तो कम से कम 22 या 23 नौकरशाह ओबीसी, एसटी और एससी वर्ग से आते।तर्क दिया जा रहा है कि विभिन्न क्षेत्रों से 15 वर्षों का अनुभव प्राप्त लोगों को चयनित किया जा रहा है। तो क्या एस सी-एस टी – ओबीसी जमात अनुभव से खाली है ? 2018 में 9 भर्तियाँ लैटरल एंट्री के माध्यम से हुई उसमें एक भी उस जमात का व्यक्ति नहीं है।यही नहीं अब तक लगभग 60-62 भर्तियाँ हो चुकी है, उनमें भी नहीं।फिर यह आरोप क्या गलत है कि मोदी सरकार आरक्षण को अघोषित तरीके से खत्म कर रही है ? विज्ञापन वापसी पर किसी खुशफहमी का शिकार होना भूल होगी क्योंकि
यह सरकार वापसी के बदले इसमें आरक्षण भी तो लागू कर सकती थी!यहाँ मोदी सरकार की हठधर्मिता का साफ तौर पर प्रदर्शन है। बेबाकी के लिये प्रसिद्ध भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक बार जोधपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भाषण देते हुए ठीक ही कहा था, “हमारी सरकार आरक्षण को इस स्थिति में पहुंचा देगी कि उसका होना या न होना एक समान होगा”। मोदी सरकार की कार्य शैली से यह पूर्णतया स्पष्ट है।यथा, 2014 में सरकार बनते ही नये पदों का सृजन बन्द कर देना।नयी नौकरियों की घोषणा लगभग समाप्त कर देना।धडा़धर निजीकरण को बढा़वा देना।सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को नीजी हाथों में सौंपना। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों का काम आउट सोर्सिंग करना अर्थात एन जी ओ के हवाले करना और ठिकेदारी पर्था लागू कर देना। फिर यह “लैटरल एंट्री”।केन्द्र सरकार की ये सारी नीतियाँ आरक्षण को एन् केन् प्रकारेण आरक्षण समाप्त करने वाली ही तो है !
लैटरल ऐंट्री एक सुगम रास्ता है सरकार समर्थक अफसरों को नीती निर्धारण स्थल तक पहुँचाने की।थोडा़ सरल भाषा में इसको ऐसे समझते हैं;यह सरकार इसके जरीये साम्प्रदायवाद – कार्पोरेट-मनुवाद- ब्राह्मणवाद पक्षी तत्वों को चुन चुन कर बडे़ ओहदों तक पहुँचाती। इससे जनता को लूटने वाली कार्पोरेट नीतियों को लागू करना आसान हो जाता।जिस विचारधारा का पोषक है यह सरकार वैसी मानसिकता वाले लोग धरल्ले से चुने जाते।यानी चप्पे चप्पे पे अपने समर्थकों को बैठाने की फिराक में थी यह मोदी निजाम।
अभी तो फिलहाल यह बला टल गयी है, पर भविष्य में शोषित पीड़ित अवाम को सतर्क, जागरुक और आन्दोलन के लिये तैयान रहने की सख्त जरुरत है।मौजूदा दौर की यही नजा़कत है
” ज़रा कम सो, लूटेरे ताक में हैं लूट लेने की।
वरना जब आँखे खुलेगी रोते ही सो जाओगे “।।
(लेखक के अपने विचार है।)
cpimahamadali@gmail.com
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