विनम्र श्रद्धांजलि! अपसंस्कृति के विरुद्ध खडी़ एक मौसीकी़ को…
लेखक: अहमद अली
शारदा जी को इस अहम योगदान के लिये अवश्य ही याद किया जायेगा कि उन्होंने कभी भी अपसंस्कृति को प्रश्रय नहीं दिया। जब वो गायकी के क्षेत्र में जनता के बीच कदम रख रही थीं, वो कैसेट का दौर था,तो सहुलियत हुई एक सधी हुई अनुशासित आवाज़ को जन-जन तक पहुँचने में।उन्होंने परम्परागत , धार्मिक और श्रृंगारिक गीतों तक अपने आपको सीमित रखा और लोकप्रियता की ऊँचाईयों तक पहुँचने में कामयाबी भी हासिल की।ऐसे तो उन्हें बचपन से ही गायकी पसन्द थी पर आम जन के बीच जब वो सांस्कृतिक क्षेत्र में कदम रखने जा रही थी, इस पितृसत्तात्मक परिवेश में उन्हें कई संघर्षों से गुज़रना पडा़ था। पिता का साथ मिला फिर पति ने भी उनकी ख्वाहिश की इज्ज़त की।उन्हें भी धन्यवाद देना चाहिये। नतीजा भी साकारात्मक रहा और नयी पीढी़ के लिये प्रेरणादायी भी।हमलोग बचपन में विंद्यवासीनी देवी को रोडियो के माध्यम से सुनते थे।बडा़ ही रोचक आवाज थी।फिर शारदा जी का दौर आया जिन्होंने कभी भी सांस्कृतिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया।
काश, आज की युवा पीढी़ कुछ भी शारदा जी से सीख पाती! आज सोसल मिडिया के दौर में पैसों के लिये जो कचडा़ मचाया हुआ है, क्या आप पूरे परिवार के साथ बैठ कर उसे सुन सकते है ? क्या लड़के,क्या लड़कियाँ, व्युज
बढा़ने की हवस ने उन्हें अंधा बना दिया है। वो अपने सामाजिक और सांस्कृतिक दायित्व को भी भूला बैठे हैं।हालांकि आज भी कुछ हैं,जिन्होंने अपने आपको गंदगी से महफूज रखा है,पर उंगलियों पर गिनने लायक ही हैं।साधुवाद है उन्हें।
मुझे शारदा जी की आवाज़ बहुत भाती है।मैं हमेशा सुनता हूँ उन्हें।राजनीति मेरे जीवन का मुख्य क्षेत्र है।
गायक होते होते मैं फिसल गया ।मरहूमा की गायनशैली का मैं हमेशा प्रशंसक रहा हूँ।उनका जाना मुझे भी दर्द में डूबो गया।
तहे दिल उनके स्मृतियों को सलाम
और
विनम्र श्रद्धांजलि
(लेखक के अपने विचार है।)
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