डाॅ. बी आर अम्बेडकर की शान में गुस्ताखी
लेखक: अहमद अली
[ दिल में छूपी थी बात जो आई जुबान पर ]
[ अच्छा लगे, बुरा लगे ये आप जानिये ]
पिछले दिनों राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जिस लहजे में डा० भीमराव अम्बेडकर का अपमान किया, यह देख कर मुझे अपना पूराना शेर याद आ गया।
असल में कुछ लोग मुगालते में हैं कि आर.एस.एस. का दर्शन बदल गया है और उसका कट्टर रवैया अब नरम हो गया है।अगर आप भी ये सोंच बैठे हैं तो यकीनन आप धोखे में हैं।आर.एस.एस. आज भी वहीं है जहाँ 1925 में था।
मैं थोड़ा केवल आपको स्मरण करा देना चाहता हूँ :-
डाॅ० अम्बेडकर ने जब संसद में हिन्दू कोड बिल लाया, आर.एस.एस. ने उसका खुल कर विरोध किया था। 11 दिसम्बर 1949 को उसने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विरोध रैली आयोजित की। “हिन्दू कोड बिल “के विरोध में नारे लगाये तथा तत्कालीन प्रधानमन्त्री और डा० अम्बेडकर के पुतले जलाये गये।( रामचन्द्र गुहा, इंडियन एक्सप्रेस 10-12-2015)
इस बिल में महिलाओं की स्वायत्तता,समानता और स्वतंत्रता पर खुल कर वकालत की गयी थी, जो मनुवाद को स्वीकार नहीं है। फिर आर.एस.एस. को भी बाबा साहेब क्यों स्वीकार्य हों ? आगें बढे़ —
संविधान को आर.एस.एस. ने कभी कबूल नहीं किया। वो संविधान की जगह मनुस्मृति की वकालत हैं। अपने तर्क में आर.एस.एस. मतवालम्बियों और रहनुमाओं की तकरीर तथा लेख मिल सकता है।डा० अम्बेडकर ने संविधान में समाज के सबसे निचले पायदान पर जीवन बशर करने वालों को जो स्थान दिया है या अल्पसंख्यकों के वजूद और अधिकार की बात की है इसका विरोध तो आर.एस,एस. की बुनियाद में ही है।फिर उनके हृदय में अम्बेडकर के प्रति सम्मान क्यों हों !
25 दिसम्बर 1927 को डा० अम्बेडकर ने महाराष्ट्र के महार नामक तटीय इलाका में मनुस्मृति का दहन किया था।डा० अम्बेडकर मनुस्मृति को सामाजिक विषमता का जड़ मानते थे।उनका मानना था कि मनुस्मृति एक ऐसा हिंदू ग्रंथ है, जो जाति उत्पीड़न को संस्थागत बनाता है।निचली जातियों, विशेषकर दलितों और महिलाओं के शोषण और भेदभाव को उचित ठहराता है।
यह नज़रिया मनुवादियों की नज़र में तो बहुत बडा़ अपराध है! फिर डा० अम्बेडकर के प्रति उनके हृदय में कभी भी आदर भाव आ सकता है क्या ?
अब आप ज़रा सोंचिये।
एक ऐसा इंसान जो बंचित एवं शोषित – पीड़ित अवाम के लिये, जिसको मनुवाद ने दुत्कार दिया हो, न केवल जनता के बीच अपना विचार प्रकट करता है बल्कि उसे अपने व्यहार में भी उतारता है और अभियान चलाता है , उसे मनुवाद के पोषक तत्वों द्वारा क्या आदर मिल सकता है ? अमित शाह कौन हैं।सभी जानते हैं कि पहले वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघी हैं, फिर और कुछ।डा० अम्बेडकर या महात्मा गाँधी के आगे सर झुकाना सिर्फ और सिर्फ दिखावा और वोट के लिये है।चाहे कुछ भी हो किसी महापुरुष की शान में गुस्ताखी करने का अधिकार किसी को भी प्राप्त नहीं हो सकता।आज जनता सड़कों पर है।माँफी और इस्तीफा की आवाज बुलंद हो रही है।सौ फीसद जायजा़ है।
देखो चौराहे पे गुस्से का भयानक आलम
मुठ्ठियाँ तन रही हवा में और तन जाने दो
उनकी आवाज़ सुनो हर कदम पे शाने दो
( शाना- कंधा)
(लेखक के अपने विचार है।)


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