शिमला, (एजेंसी)। हिमाचल प्रदेश में 265 करोड़ रुपये के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले की जांच केन्द्रिय जांच एजेंसी सीबीआई अब एक साथ सोलह संस्थानों की करेगी। सीबीआई ने इसके लिए चार टीमें बनाई हैं। अभी तक 11 संस्थानों की जांच पूरी हो चुकी है। यह सोलह संस्थान बचे थे। दो साल की लंबी जांच व कानूनी पेचीदिगियों के चलते सीबीआई ने शिक्षा विभाग के अफसरों व प्राईवेट शिक्षण संस्थानों की मिलिभगत से हुये 265 करोड के स्कालरशिप घोटाले की जांच पूरी नहीं कर पाई है। हालांकि अभी तक की जांच के बाद शिक्षा निदेशालय के कई अफसरों समेत संस्थानों के प्रबंधकों पर शिंकजा कसा जा चुका हैं। लेकिन करीब सोलह संस्थान अभी भी जांच के दायरे में नहीं आ पाये हैं।
सीबीआई की प्रारंभिंक जांच में सामने आया है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों, बैंक अफसरों और संस्थानों की मिलीभगत से विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति राशि हड़प ली गई। बताया जा रहा है कि कुल 27 संस्थानों ने वर्ष 2013 से 2016 के बीच करीब 265 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति राशि हड़पी है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इस मामले में आरोपियों की संपत्ति की जांच कर रहा है। सीबीआई शिक्षा निदेशालयों के अधिकारियों समेत घपले से जुड़े संस्थानों के प्रबंधकों की संपत्तियों के दस्तावेज ईडी को सौंप चुकी है।
सीबीआई की ओर से की गई जांच को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जांच एजेंसी कहीं किसी को बचाने के चक्कर में जांच को लंबी तो नहीं खींच रही । हैरानी की बात है कि तमाम सबूतों के बावजूद एजेंसी अभी तक इतने बडे घोटाले को अंजाम देने वालों तक नहीं पहुंच पाई है। हालांकि इस मामले में दो दर्जन से अधिक संस्थान जांच के दायरे में है लेकिन सीबीआई दो सालों में कुछ ही के खिलाफ ही अदालत में पहुंच पाई है। दरअसल दो साल पहले हिमाचल सरकार ने इस घोटाले की जांच केन्द्रिय जांच एजेंसी सीबीआई को सौंपी थी।
बताया जा रहा है कि सीबीआई ने शिक्षा निदेशालय से सभी 16 संस्थानों का रिकॉर्ड तलब किया है। इसमें संस्थानों को जारी की गई राशि की जानकारी दस्तावेजों सहित मांगी गई है। सीबीआई ने संस्थानों के माध्यम से जिन विद्यार्थियों के नाम पर छात्रवृत्ति घोटाला किया गया है, उनका पूरा ब्योरा भी मांगा है। शिक्षा निदेशालय को एचपीई-पास से सभी विद्यार्थियों की जानकारी मुहैया करवाने के निर्देश दिए गए हैं। बता दें कि चंडीगढ़ व हरियाणा के प्राईवेट शिक्षण संस्थान व शिमला में शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की मिलिभगत से 265 करोड़ के घोटाले को अंजाम दिया गया।
बताया जात है कि प्रदेश के शिक्षा विभाग के आला अफसरों व प्राईवेट शिक्षण संस्थानों ने एक ऐसा ताना बाना कि करीब 265 करोड़ रुपए की स्कालरशिप जो कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग के छात्रों को दी जानी थी, ऐसे छात्रों को बांट दी गई जो इसके पात्र ही नहीं थे। इस गोरखधंधे की किसी को भी कानों कान खबर तक नहीं लगी। सरकारी खजाने को शिक्षा माफिया चपेट लगाता रहा। लेकिन इस भनक तब लगी जब सरकार बदलते ही इसकी शिकायतें सीएम आफिस तक पहुंचने लगीं।
मौजूदा सरकार ने शिमला पुलिस से जांच करवाई तो पता चला कि केंद्र और प्रदेश सरकार की विभिन्न स्कालरशिप योजनाओं की राशि के आवंटन में 265 करोड़ की राशी उन लोगों को बांट दी गई जो इसके पात्र ही नहीं थे। तमाम राशी हिमाचल व चंडीगढ़ के प्राईवेट शिक्षण संस्थानों को बांटी गई। इसके विपरीत सरकारी संस्थानों के छात्रों को महज 20 प्रतिशत राशि ही मिली। शिक्षा विभाग के अधिकरयों की आपसी मिलिभगत से सब होता रहा। पुलिस ने जांच रिर्पोट गृह विभाग को सौंपी व उसके बाद सरकार ने जांच को सीबीआई के हवाले किया।
इस बहुचर्चित स्कालरशिप घोटाले में हिमाचल प्रदेश के निजी शिक्षण संस्थानों के नाम भी उजागर हुए हैं। यहां तक कि शातिर निजी शिक्षण संस्थानों ने बाहरी प्रदेशों के बैंकों में छात्रों के खाते खोल दिए थे। वर्ष 2013 से 2017 के बीच यानी चार साल में 265 करोड़ क ी स्कॉलरशिप बांटी गई, जिसमें से 80 फीसदी निजी शिक्षण संस्थानों ने ही निगल ली। दरअसल, 2013 से शिक्षा निदेशालय ने स्कालरशिप राशि के आवंटन में निजी शिक्षण संस्थानों को तरजीह दी। सरकारी संस्थानों के आवेदन आने के बावजूद पहले निजी संस्थानों के आवेदन वेबसाइट पर अपलोड किए गए। पहले आओ पहले पाओ के आधार पर स्कालरशिप राशि जारी होती थी। सरकारी और निजी संस्थानों के लिए अलग-अलग बजट की व्यवस्था नहीं थी। इसका लाभ उठाते हुए कुछ निजी शिक्षण संस्थानों ने शिक्षा विभाग के अफसरों और कर्मचारियों की मिलीभगत से सरकारी खजाने को चपत लगाई। साल 2015-16 के दौरान सरकारी संस्थानों में पढ?े वाले विद्यार्थियों को स्कालरशिप नहीं मिलने के मामले सामने आने के बाद सरकार ने स्कालरशिप राशि को सरकारी और निजी संस्थानों के लिए बांटा था। सबसे पहले मामला वर्ष 2016 यानी पूर्व की वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में सामने आया था। लेकिन जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
बताया जा रहा है कि निजी शिक्षण संस्थानों ने प्रदेश के 25 हजार छात्रों की स्कालरशिप निगल ली हैं। निजी शिक्षण संस्थानों में दाखिले के दौरान फर्जी दस्तावेजों और छात्रों के आधार नंबर से कई फर्जी खाते बना लिए थे। सबसे अधिक बैंक खाते हरियाणा में थे। इसके साथ ही बैंक खाते में मोबाइल नंबर भी एक ही व्यक्ति के नाम था। इसके साथ-साथ शिक्षा विभाग द्वारा की गई जांच के दौरान यह भी पाया गया कि एडमिशन फॉर्म में अन्य छात्रों के फोटो लगे थे। सूत्रों के मुताबिक चंडीगढ़ स्थित एक शिक्षण संस्थान ने हिमाचली छात्रों की स्कॉलरशिप डकारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस संस्थान ने 800 सीटों पर 3100 छात्रों को दर्शा दिया था।
आरोप है कि नौ शिक्षण संस्थानों को फर्जी तरीके से खोलकर आरोपियों ने करीब 8800 छात्रों के नाम पर 30 करोड़ से अधिक की छात्रवृत्ति को हड़पा। इनमें 4 संस्थान नाहन, ऊना, कांगड़ा और चम्बा में स्किल डिवैल्पमैंट नामक सोसायटी के नाम से चलाए जा रहे थे। इसी तरह जिला कांगड़ा के तहत एक आईटीआई और अन्य स्थानों पर नाइलेट के नाम से 4 शिक्षण संस्थान खोले गए थे। इनके 8 शिक्षण संस्थानों को करीब 29.80 करोड़ और 1 आईटीआई को करीब 50 लाख रुपए जारी हुए थे।


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