राष्ट्रनायक न्यूज।
कभी उत्तर प्रदेश की हरियाणा सीमा से पूरब की और बढ़िए तो आपको लगेगा जैसे-जैसे हम पूरब की ओर चलते हैं, धरती उतनी ही अनुदार होती जाती है। ऐसा क्यों है, इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है। वही धरती वही लोग पर जहां पश्चिम में पग-पग पानी डग-डग धानी है, वहीँ पूरब में इन दिनों दूर-दूर तक हरियाली के दर्शन नहीं होते। दिल्ली से वाराणसी तक की अपनी यात्रा में मुझे कानपुर के बाद खेत सूखे दिखे। जबकि इतनी ही गर्मी मेरठ और सहारनपुर तथा मुरादाबाद मंडल में भी है, लेकिन वहां कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि यहां के किसान को अपनी कृषि से अरुचि है।
सुदूर अमृतसर से लेकर पूरा पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी में किसान का कैरेक्टर अलग है। इस पूरे क्षेत्र में खेती की जमीन अलग दिखती है पर आगरा, इटावा और कानपुर के बाद आप जैसे ही फतेहपुर, इलाहाबाद और वाराणसी, चंदौली एवं मिजार्पुर की तरफ बढ़ते हैं, वहां जमीन में हरियाली कम सूखा ज्यादा रहता है। हालांकि यहां भी नदियां हैं, झीलें हैं, पोखर हैं लेकिन नहीं है, तो बस कृषि। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां का किसान कामचोर है अथवा वह आलसी है। दरअसल असली बात यह है कि अंग्रेजों के समय से सरकारों ने यहां की नदियों के पानी को नियंत्रित नहीं किया। पानी बरसा, नदियां उफनाईं और पानी बह गया। यह दुर्भाग्य है इस भारत के पूरब का।
असली समस्या यह है कि चूंकि उत्तर भारत में नदियों का बहाव पूरब की तरफ है, इसलिए जैसे-जैसे वे पूरब की तरफ बढ़ेंगी उनके बहाव की गति तीव्र होती जाएगी। ऐसे में अगर बांधों, नहरों आदि से नदियों के पानी का संकुचन नहीं किया गया, तो सारा पानी निरर्थक बह जाएगा। ऐसा शायद यहां की धरती के ढाल की वजह से होता है। ऐसी स्थिति में तीव्र गति से बह रहे पानी को यदि रोका नहीं जाता, तो वह खेती की जमीन को भी अनुर्वर ढाल में बदल देगा। दुर्भाग्य है कि यहां ऐसा ही हो रहा है।
गंगा और यमुना भी क्रमश: अलीगढ़ और आगरा से आगे बढ़ते ही जमीन को काटना शुरू कर देती हैं। साथ ही इनकी सहायक नदियों का पानी भी इनकी तीव्रता और कटाव को तेज करता है। एटा के करीब अलीगंज के कछार गंगा के इस कटाव और तीव्रता को बताते हैं, तो आगरा से आगे बढ़ते ही यमुना अपना विकराल रूप ले लेती है। यही वजह है कि इटावा से कालपी के बीच यमुना के दोनों किनारों में तीन-तीन किमी का इलाका बियाबान है। न पानी, न हरियाली, न जमीन में नमी। इस वजह से यहां पर मीलों लंबा बियाबान है और पहाड़ जैसे कगार। जमीन उपजाऊ नहीं है और बेहद गरीबी भी है। यही वजह है कि यहां अपराध का ग्राफ ऊपर ही रहता है।
मालूम हो कि यही वह इलाका है, जहां की दस्यु समस्या से पूरा प्रदेश करीब 70 वर्षों तक जकड़ा रहा। दस्यु मानसिंह से लेकर निर्भय गूजर तक पूरा इटावा और जालौन समेत करीब 200 मील का क्षेत्र ग्रसित रहा था। आज भी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह क्षेत्र अब दस्यु मुक्त है। ऐसा ही हाल गंगा किनारे अलीगंज का रहा। दस्यु छविराम को लोग भूले नहीं हैं। सरकार का ध्यान अपराध नियंत्रण पर तो रहा, लेकिन उसके मूल को समझने की कोशिश कभी नहीं की। अगर यहां पर नहरों और बांधों के जरिये फालतू बह जाने वाले पानी को बांधने की कोशिश की जाती, तो यहां का किसान खुशहाल होता और वैसी गरीबी न होती जिस वजह से किसानों को बड़े जमींदारों और महाजनों की कुटिल नीतियों में नहीं फंसना पड़ता। कर्ज और सूखे के दुश्चक्र में उलझा किसान या तो खुदकुशी करता है अथवा बंदूक लेकर इन नदियों के बीहड़ में कूद जाता रहा है।
पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी की हरियाली का राज यहां की नहरें, डैम और बिजली घर हैं। पर यूपी के पूर्वी इलाके में नहरें नहीं हैं। सूखी जमीन को हरी-भरी बनाने के लिए जरूरी है कि चाहे जैसे हो पानी को अपने कंट्रोल में लो। सरकार को चाहिए कि यहां भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरह नहरें बिछाए। पानी मिलेगा, तो जमीन उपजाऊ हो जाएगी और जमीन उपजाऊ हो जाएगी, तो किसान खुशहाल होगा। जिनके पास कृषि की जमीन नहीं है, उनको रोजगार मिलेगा और अच्छी मजदूरी मिलेगी। अगर सरकार ऐसा ठान ले तो कोई शक नहीं कि यह इलाका भी वेस्ट की तरह बेस्ट न हो जाए। पानी, बिजली और सड़क के साथ-साथ सरकार को इनका नियमन बहुत जरूरी है। यूपी के इस पूर्वी इलाके का स्वास्थ्य सुधारने के लिए सरकार को पूरी सर्जरी करनी होगी तभी यह इलाका समृद्ध हो सकेगा।
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