राष्ट्रनायक न्यूज

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अफगानिस्तान: तालिबान के कब्जे के बाद हाहाकार, कहां जाएं अफगान शरणार्थी

राष्ट्रनायक न्यूज।
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भयंकर हाहाकार मचा हुआ है। वहां से ज्यादातर अफगान नागरिक भी देश छोड़कर कहीं और बसना चाह रहे हैं। उन्हें अफगानिस्तान में अब अपने बीबी-बच्चों के साथ एक मिनट भी रहना सही नहीं लग रहा है। अफगानिस्तान से हिंदू और सिख समुदायों के लोग भी भारत आ रहे हैं। उन्हें यहां पर सम्मान के साथ शरण मिल रही है। पर अफगानिस्तान के मुसलमानों को इस्लामिक देश अपने यहां शरण देने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। सबने इन्हें अपने यहां शरण देने या शरणार्थी के रूप में जगह देने से सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से मना कर दिया है।

अपने को इस्लामिक देशों का नेता मानने वाले पाकिस्तान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की और बहरीन जैसे देश या तो चुप हैं या फिर उन्होंने अपनी अफगानिस्तान से लगने वाली सरहदों को ज्यादा मजबूती से घेर लिया है। चौकसी बढ़ा दी है, ताकि कोई घुसपैठ न कर सके। ले-देकर सिर्फ शिया ईरान ही इन अफगानियों की मदद के लिए आगे आया है, जहां पहले से ही लगभग साढ़े तीस लाख सुन्नी अफगान शरणार्थी रहते हैं। अफगानिस्तान से ईरान की तीन तरफ से सीमा मिलती है। शिया शासित ईरान का भारी संख्या में सुन्नी शरणार्थियों को शरण देना वाकई काबिले-तारीफ है। अफगानिस्तान संकट में पाकिस्तान का काला चेहरा खुलकर सामने आ रहा है। उसने अपनी अफगानिस्तान से लगने वाली सरहदों पर सेना तैनात कर दी है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कह रहे हैं कि हमारे यहां तो पहले से ही लाखों अफगान शरणार्थी मौजूद हैं। हम अब और शरणार्थियों को पनाह नहीं देंगे। तो फिर पाकिस्तान खुद को सारी दुनिया के मुसलमानों का रहनुमा क्यों मानता है?

अफगानिस्तान संकट के बहाने पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को समझना आसान होगा। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों के हक के लिए सारी दुनिया के मुसलमानों का आए दिन खुलकर आह्वान करता है। वह संयुक्त राष्ट्र से लेकर तमाम अन्य मंचों पर भारत को घेरने की भी नाकाम कोशिश करता है। पर पाकिस्तान यह तो बताए कि वह क्यों नहीं अफगानिस्तान के मुसलमानों को अपने यहां शरण देता? क्या कुछ हजार मुसलमान और आने से पाकिस्तान में भुखमरी के हालात पैदा हो जाएंगे?

पाकिस्तान बांग्लादेश में रहने वाले अपने बेसहारा उर्दू भाषी बिहारी मुसलमान नागरिकों को भी अपने यहां लेने को तैयार नहीं है, जिन्होंने 1971 के बांग्ला देश की आजादी की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना का खुलकर साथ दिया था और अभी शरणार्थी शिविरों में जिंदगी काट रहे हैं। पाकिस्तान को मालूम है कि सिर्फ ढाका में एक लाख से अधिक बिहारी मुसलमान शरणार्थी कैंपों में नारकीय जिंदगी गुजार रहे हैं। बिहारी मुसलमान 1947 में देश के बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे। जब तक बांग्लादेश नहीं बना था, तब तक तो इन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। पर बांग्लादेश बनते ही बंगाली मुसलमान बिहारी मुसलमानों को अपना जानी दुश्मन मानने लगे।

बिहारी मुसलमान पाकिस्तान जाना भी चाहते हैं, पर पाकिस्तानी सरकार इन्हें अपने देश में लेने को कतई तैयार नहीं है। जब भारत ने अनुच्छेद 370 को खत्म किया, तो तुर्की और मलयेशिया भी पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाकर बातें कर रहे थे। वे भारत की निंदा भी कर रहे थे। लेकिन दुनिया भर में फैले 57 इस्लामिक देशों के संगठन आॅर्गनाइजेशन आॅफ इस्लामिक कोआॅपरेशन (ओआईसी) के ईरान को छोड़कर शेष सदस्य अफगानिस्तान के शरणार्थियों की मदद के लिए मानवीय आधार पर आगे नहीं आ रहे हैं। ये सिर्फ इस्राइल या भारत के खिलाफ ही बोलना या बयान देना जानते हैं। अगर आप करीब से इस्लामिक देशों के आपसी संबंधों को देखेंगे, तो समझ आ जाएगा कि इन सबकी एकता दिखावे भर के लिए है। याद करें कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार के सबसे करीबी पड़ोसी बांग्लादेश ने शरण देने से साफ इन्कार कर दिया था। बहरहाल, अफगानितान संकट ने ओआईसी के खोखलेपन को भी उजागर कर दिया है।

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