राष्ट्रनायक न्यूज

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देवेन्द्र झाझड़िया ने कामयाबी की मंजिल तक पहुँचने के लिए काफी कड़ी मेहनत की है

राष्ट्रनायक न्यूज।
टोक्यो पैरालिंपिक में भारत के देवेंद्र झाझड़िया ने पुरुषों के जैवलिन थ्रो (भाला फेंक)- एफ46 में सिल्वर मेडल जीत कर भारत का नाम रोशन किया है। टोक्यो ओलिंपिक में उन्होंने 64.35 मीटर भाला फेंक कर चांदी का तमगा अपने नाम किया है। वहीं सुंदर सिंह गुर्जर ने इसी इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। उन्होंने 64.01 मीटर भाला फेंका। ये दोनों ही खिलाड़ी राजस्थान के हैं। जैसे ही देवेन्द्र के रजत पदक व सुन्दर गुर्जर के कांस्य पदक जीतने की सूचना मिली तो हर ओर से बधाई संदेश मिलने शुरू हो गए। देवेंद्र झाझड़िया ने टोक्यो पैरालंपिक में 64.35 मीटर का अपना सर्वश्रेष्ठ थ्रो करते हुए सिल्वर पदक जीता है। इसी के साथ ही देवेंद्र झाझड़िया के पास अब पैरालंपिक में पदकों की संख्या तीन हो गई है।

राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के चूरू जिले के देवेन्द्र झाझड़िया अब तक दर्जनों पदक अपने नाम कर चुके हैं। 2004 में एथेंस पैरालंपिक में देवेन्द्र ने 62.15 मीटर भाला फेंककर विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद देवेन्द्र ने रियो पैरालंपिक-2016 में अपना ही बनाया विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुये 63.97 मीटर भाला फेंककर नया विश्व रिकॉर्ड बनाया था। कतर की राजधानी दोहा में सम्पन्न हुये आईपीसी 2015 विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) में भारत की ओर से देवेन्द्र झाझड़िया ने रजत पदक जीत कर भारत का मान बढ़ाया था। यह स्पर्धा पैरालंपिक के बाद विश्व की सबसे बड़ी प्रतियोगिता मानी जाती है। इससे पूर्व झाझड़िया ने 2013 में फ्रांस के लियोन शहर में आईपीसी विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने फ्रांस के लियोन में सम्पन्न हुयी विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जैवलिन थ्रो में 57.04 मीटर दूरी तक थ्रो कर स्वर्ण पदक जीता था। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में लगातार भारत की तरफ से पदक जीतने वाले देवेन्द्र एकमात्र खिलाड़ी हैं।

आठ साल की उम्र में बिजली के करंट का शिकार होकर अपना एक हाथ गंवा देने वाले देवेंद्र झाझड़िया के लिए यह हादसा कोई कम नहीं था। दूसरा कोई होता तो दुनिया की दया, सहानुभूति तथा किसी सहायता के इंतजार और उपेक्षाओं के बीच अपनी जिंदगी के दिन काटता लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था और उसके बचे हुए दूसरे हाथ में उस संकल्प की शक्ति देखने लायक थी। देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। कुदरत के इस अन्याय को ही अपना सम्बल मानकर हाथ में भाला थाम लिया और एथेंस पैरालंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर वो करिश्मा कर दिखाया जिसका ख्वाब हर कोई देखता है।

दराजस्थान में चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के छोटे से गांव जयपुरिया की ढाणी में एक साधारण किसान रामसिंह के घर 10 जून 1981 को जन्मे देवेंद्र किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया। गांव के जोहड़ में देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया। कॉलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जैवलिन थ्रो और शॉट पुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जैवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी।

देवेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरूआत हुई 2002 के बुसान (दक्षिण कोरिया) एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ। इसके बाद 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जैवलिन थ्रो, शॉट पुट और ट्रिपल जम्प तीनों स्पधार्ओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले। देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया जब उन्होंने 2004 के एथेंस ग्रीस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। 2006 में मलेशिया के कुआलालमपुर में आयोजित फेसपिक गेम्स में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। 2007 के वर्ल्ड गेम्स में रजत पदक व 2009 के वर्ल्ड गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था। देवेंद्र झाझड़िया ने दुबई में संपन्न छठी फैजा इंटरनेशनल चैंपियनशिप की भाला जैवेलियन थ्रो स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता।

देवेंद्र की कामियाबियों पर उन्हें 3 दिसम्बर 2004 को राष्ट्रपति ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उन्हे सम्मानित किया था। 2004 में महाराणा प्रताप राज्य खेल पुरस्कार मिला। 29 अगस्त 2005 में वह अर्जुन अवार्ड से नवाजे गए। 2005 में उन्हें पीसीआई उत्कृष्ट खिलाड़ी पुरस्कार मिला। 2014 में पद्मश्री और पैरा स्पोर्ट्स पर्सन आॅफ द ईयर अवार्ड मिला। 2016 में जीक्यू मैगजीन की ओर से वह बेस्ट प्लेयर के अवार्ड से नवाजे गये। 29 अगस्त 2017 को खेलों में देश का सबसे बड़ा मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड उन्हें मिला।

भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और अपनी मां जीवणी देवी को अपना आदर्श मानने वाले देवेंद्र की झोली आज पदकों-पुरस्कारों से भरी पड़ी है और देवेंद्र कामयाबी के इस आसमान पर खड़े होकर भी अपनी मिट्टी को सलाम करते हैं। खेलों के सिलसिले में दर्जनों देशों का सफर कर चुके देवेंद्र को सुकून तब मिलता है जब वे गांव आने के बाद अपने खेल जीवन की शुरूआत में कर्मस्थली बनी गांव के जोहड़ की मिट्टी में अभ्यास करते हैं। मई 2007 में विवाह सूत्र में बंधे देवेंद्र की जीवन-संगिनी मंजू भी कबड्डी की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रह चुकी हैं। साधारण परिवेश और अभावों की बहुलता से अपने हौसले के दम पर संघर्ष कर इतिहास रचने वाले राजस्थान के नूर और युवा पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत देवेंद्र झाझड़िया को भारत सरकार की ओर से राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री अवार्ड भी दिया जा चुका है। देवेंद्र ने अपनी यह उपलब्धि अपने माता-पिता को समर्पित करते हुए कहा कि इससे समाज के तमाम नि:शक्तों का हौसला बढ़ेगा और नि:शक्तों के प्रति लोगों की धारणाओं में बदलाव आएगा।

कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ऑनलाइन बातचीत में देवेंद्र झाझड़िया ने कहा था कि जब मेरी स्पर्धा भालाफेंक को पैरालंपिक 2008 में शामिल नहीं किया गया था, उस वक्त मैंने सोचा था कि ठीक है यह 2012 में शामिल हो जायेगा। लेकिन जब 2012 में यह फिर शामिल नहीं हुआ तो मैंने सोचा कि मैं खेल छोड़ दूं। तब मेरी पत्नी मंजू ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए और मैं 2016 तक खेल सकता हूं। इसलिए मैंने अपनी योजना बदल दी। 2013 में मुझे पता चला कि भालाफेंक स्पर्धा को रियो पैरालंपिक में शामिल किया गया है। फिर मैंने गांधीनगर के भारतीय खेल प्राधिकरण केन्द्र में अभ्यास शुरू किया और 2016 रियो में अपना दूसरा स्वर्ण पदक जीता था।

देवेन्द्र झाझड़िया का मानना है कि ग्रामीण इलाकों में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं मगर वे प्रतिभायें सुविधाओं के अभाव में आगे नहीं आ पाती हैं। खिलाड़ियों के लिये आधुनिक सुविधायुक्त मैदानों की कमी व अच्छे कोच भी नहीं हैं। उनका मानना है कि राजस्थान सरकार को हरियाणा की तरह खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा गुजरात की तर्ज पर खेल महाकुंभ का आयोजन करना चाहिये ताकि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को आगे आने का मौका मिल सके।

रमेश सर्राफ धमोरा

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