राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

बुद्धिजीवियों ने ही कहना है (व्यंग्य)

राष्ट्रनायक न्यूज।
हमारे अड़ोस पड़ोस और दूर दराज में इतना कुछ होता रहता है और सोशल मीडिया के जागरूक जीवी अपने त्वरित उदगार, विचार मनपसंद दीवारों पर चिपका देने में देर नहीं करते। उनकी कुशाग्र बुद्धि उन्हें हर लम्हा सक्रिय रखती है। उधर अखबारों के पन्नों पर अमुक विषय पर विचार प्रकट करवाने हों तो चचार्एं आयोजित होती हैं जिनमें आम तौर पर पारम्परिक बुद्धिजीवी ही प्रकट होते हैं। ये लोग टीवी चर्चा वाले हर विषय के वही विशेषज्ञ जैसे तो नहीं होते हां समाजजीवियों के परिचित जरूर होते हैं। कुछ खास किस्म के लोगों को ही बुद्धिजीवी माना जाता है। शहर या क्षेत्र में छोटा मोटा गलत घट रहा हो, गर्मी के मौसम पानी न आ रहा हो, बरसात के मौसम में सड़कों में दर्जनों खड्डे पड़ चुके हों, महंगाई घट न रही हो तो बुद्धिजीवियों संग उपायउगाऊ परिचर्चा की जाती है।

जिन विकास स्तंभों की वजह से छोटा या मोटा गलत हो रहा होता है उनकी सदबुद्धि तो पहले ही इस्तेमाल हो चुकी होती है। लोकप्रिय स्थानीय प्रशासन का कोई फैसला पसंद न आ रहा हो, अस्पताल में डॉक्टरों की कमी हो तो बहुत लोग अपने राजनीतिक, धार्मिक, जातीय, मानवीय संबंधों के कारण कुछ कहने से परहेज करते हैं फिर अखबार वाले सोचते हैं चलो जी बुद्धिजीवियों से क्यूं न पूछ लिया जाए। जैसे बुद्धिजीवी न हुए बदनामजीवी हो गए। वे चीनी वस्तुओं के दुष्प्रभाव गिनवाते हैं उन पर रोक लगाने की मांग करते हैं, पर्यावरण हित की बात करते हैं, लेकिन उनकी बात कोई अबुद्धिजीवी नहीं सुनता।

कुछ बुद्धिजीवी स्वादिष्ट ब्यान देने में माहिर होते हैं इसलिए, आम तौर पर उनको परिचर्चा में शामिल किया जाता है। समझ में नहीं आता कि हमारे विकास पसंद, सभ्य होते जा रहे समाज में और लोग भी तो हैं। क्या वे अबुद्धिजीवी हैं या उनकी बोलती बंद है। ज्यादा पढने लिखने से तो व्यक्ति ज्यादा बुद्धिवाला माना जाता है, वह खूब कमाता है बढ़िया खाता है लेकिन वह डरपोक हो जाता है। वास्तव में उसकी बुद्धि हीनता बढ़ती जाती है। बुद्धिजीवी सलीके और समझदारी से शब्द चुन चुनकर विचार प्रकट करने में ही रह जाते हैं उधर अबुद्धिजीवी काम कर या करवाकर विजयी संतुष्ट मुद्रा में मुस्कुराते रहते हैं ।
असली बुद्धिजीवी तो वह होते हैं जिनसे किसी की भी, कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं होती। वही उचित बुद्धि को जन्म देते हैं पालते हैं और समाज में बांटते हैं। क्या अबुद्धिजीवी ही खालिस बुद्धिजीवी नहीं हैं।

संतोष उत्सुक