- विश्व निमोनिया दिवस के अवसर पर बचाव की दी गयी जानकारी
- राज्यस्तर से वेबिनार के माध्यम से लॉन्च सह उन्मुखीकरण बैठक आयोजित
- पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 14 से 15% मौतें निमोनिया के कारण
- वर्ष 2025 तक निमोनिया के कारण होने वाली मौतों में कमी लाने का लक्ष्य
छपरा,12नवंबर। बच्चों एवं माताओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए कई पहल किए गए हैं। संस्थागत प्रसव एवं यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम जैसे कई स्वास्थ्य कार्यक्रम मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की बुनियाद को मजबूत कर रहे हैं। प्रत्येक वर्ष 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। इसके पीछे निमोनिया को लेकर सामुदायिक जागरूकता बढ़ाना है। निमोनिया की सही समय पर पहचान न होने से शिशुओं को बेहतर इलाज प्राप्त होने में देरी हो जाती है, जो बच्चों के लिए जानलेवा भी साबित हो जाता है। निमोनिया के लक्षणों की सही समय पर पहचान होने से निमोनिया के कारण बच्चों में होने वाली मौतों में कमी लायी जा सकती है। बच्चों में होने वाले न्यूमोनिया दर में कमी लाने एवं समुचित उपचार के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा (सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन टू न्यूट्रीलाइज निमोनिया सक्सेसफुली (सांस) कार्यक्रम का आरंभ किया गया। इस क्रम में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा निर्देश दिया गया कि 12 नवंबर 2021 से विश्व निमोनिया दिवस से 28 फरवरी 2022 तक सांस अभियान आयोजित किया जाना है। विदित हो कि प्रतिवर्ष 15 नवंबर से 21 नवंबर तक नेशनल न्यू बोर्न वीक मनाया जाता है स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इस वर्ष नेशनल न्यू बोर्न वीक का थीम “सेफ्टी क्वालिटी एंड न्यूट्रिन केयर बर्थ राइट ऑफ एवरी न्यू वन” निर्धारित किया गया है। सांस अभियान 2021 तथा नेशनल न्यू बोर्न वीक के दौरान की जाने वाली गतिविधियों के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के लिए शुक्रवार को राज्य स्तर से वेबिनार के माध्यम से लांच उन्मुखीकरण बैठक आयोजित किया गया।
‘सांस’कार्यक्रम बच्चों को निमोनिया से दिलाएगी राहत:
सिविल सर्जन डॉ जेपी सुकुमार ने बताया कि निमोनिया के कारण बच्चों में होने वाली मौतों को सरकार ने गंभीरता से लिया है। इसको लेकर केंद्र सरकार द्वारा सांस (सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन टू न्यूट्रीलाइज निमोनिया सक्सेसफुली) कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य निमोनिया के दंश से बच्चों को सुरक्षित करना है । बिहार के दो जिलों में इसकी शुरुआत हो चुकी है एवं आने वाले समय में अन्य जिलों में भी इसका क्रियान्वयन किया जायेगा।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 14 से 15% मौतें निमोनिया के कारण:
डीपीएम अरविंद कुमार ने बताया कि यदि बिहार में शिशु मृत्यु दर एवं नवजात मृत्यु दर की बात की जाए तो पिछले कुछ वर्षों में इसमें कमी भी आई है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के मुताबिक बिहार की शिशु मृत्यु दर 3 अंक घटकर राष्ट्रीय औसत के बराबर हो गयी है। वर्ष 2017 में बिहार की शिशु मृत्यु दर 35 थी, जो वर्ष 2018 में घटकर 32 हो गयी। बिहार की नवजात मृत्यु दर पिछले 7 वर्षों से 27-28 के बीच लगभग स्थिर थी। लेकिन वर्ष 2018 में 3 पॉइंट की कमी आई है। बिहार की नवजात मृत्यु दर जो वर्ष 2017 में 28 थी, वर्ष 2018 में घटकर 25 हो गयी। यह एक सकारात्मक संकेत हैं। पांच साल से कम आयु के बच्चों में 14 से 15% मौतें सिर्फ़ निमोनिया के कारण हो जाती है। इसलिए निमोनिया प्रबंधन पर ध्यान देना काफी जरूरी है। इसके लिए प्रोटेक्ट, प्रीवेंट एवं ट्रीट मोड पर अधिक बल देने की जरूरत है। निमोनिया से बचाव के लिए पीसीवी का टीका निमोनिया से बच्चों को प्रीवेंट कर सकते हैं। वहीँ हाउस होल्ड स्तर पर वायु प्रदूषण में कमी लाकर निमोनिया को प्रीवेंट किया जा सकता है, साथ ही एंटीबायोटिक एवं ऑक्सीजन थेरेपी से निमोनिया को ट्रीट किया जा सकता है।
वर्ष 2025 तक निमोनिया के कारण होने वाली मौतों में कमी लाने का लक्ष्य:
पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए निमोनिया गंभीर रोगों में शामिल है। आईएपीपीडी (इन्डियन एसोसिएशन ऑफ़ पार्लियामेंटेरियनस ऑन पापुलेशन एंड डेवलपमेंट) ने वर्ष 2025 तक 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से होने वाली मृत्यु दर को प्रति 1000 जीवित जन्म 3 से भी कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वहीं वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2025 तक निमोनिया की गंभीरता में 75% कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य एवं पोषण दोनों बच्चे को निमोनिया से सुरक्षित रखने में भूमिका निभाते हैं। निमोनियाका टीका (पीसीवी) एवं नवजात संक्रमण प्रबंधन के द्वारा 30% बच्चों की जान बचायी जा सकती है। वहीं स्तनपान निमोनिया का उचित उपचार एवं स्वच्छ पेय जल के माध्यम से 36% शिशुओं को सुरक्षित किया जा सकता है।


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