ठीक ही कहा गया है: “रस्सी जलने के बाद भी उसका ऐंठन नहीं जाती “!
नीतीश सरकार के कृषि एवं सहकारिता मंत्री तथा भाजपा नेता अमरेंदर सिंह ने आज एक साक्षात्कार में कहा कि प्रधानमंत्री किसानों को समझाने में कामयाब हो जायेंगे और ये कृषि कानून फिर लाया जायेगा।एक तरफ प्रधानमंत्री वापस लेते हैं और उन्ही की पार्टी का दूसरा नेता बोलता है, कानून फिर आयेगा।आपको याद दिला दें , ये वही मंत्री हैं जिन्होंने पिछले साल आन्दोलनकारियों को किसान नहीं दलाल और देश विरोधी की संज्ञा दिया था।इतना ही नहीं उनका ये भी बयान सुनने मे आया कि विदेशों से पैसा आ रहा है, पी एम मोदी के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिये
कृषि मंत्री का,आज का उपरोक्त बयान यह साबित करने के लिये काफी है कि दाढी़ में अवश्य ही तिनका
छुपा हुआ है।किसान नेताओं की शंका, कि प्रधानमंत्री की घोषणा उनके अन्य जुमलों की तरह एक नया जुमला साबित हो सकता है, स्वभाविक ही है ।आप भी ज़रा याद कर लिजियेगा पूराने जुमलोंं को।अभी तो गोदी मिडिया की बेचैनी भी देखने के लायक है।चिल्लाना शुरु कर दिये हैं – मोदी जी ने देश के सामने जब यह वादा कर लिया कि तीनों कृषि कानून वापस ले लिये जायेंगे , तो फिर धरना पर बैठे रहने का क्या औचित्य है! ऐसा लगता है , जैसे किसान उनके माथे पर बैठे हुए हैं। ये सभी दलाल मिडिया वास्तव में अब डैमेज कंट्रोल में लग गये हैं।
जिस किसान आन्दोलन को ये लोग तुच्छ समझते थे और घमंड की काली पट्टी उनके आँखों पर पडी़ हुई थी, वही आन्दोलन आज उनके लिये राजनैतिक कब्र खोददा हुआ दिखाई देने लगा है।पिछले महीने 22 उपचुनावों में मात्र 8 जीतना, फिर उत्तरप्रदेश में गद्दी के नीचे से जमीन खिसकती हुई दिखाई देना, उनकी आँखों की नीद उडा़ दिया है और दिल बेचैन हो उठा है।
याद है ? पहली बार मोदी जी जब संसद में प्रवेश कर रहे थे तो दरवाजे पर इन्होंने माथा टेका था।किसको पता था, कि उसी संसद में ये लोकतंत्र की ताबरतोड़ हत्या करेंगे और करते जायेंगे! ये तीनों कृषि कानून पारित कराने में, लोकतंत्र का गला जिस बेरहमी से दबा दिया गया था, वह एक तानाशाहियत के सिवा और क्या था ! इतिहास की सच्चाई आज सर चढ़ के बोल रही है कि जनतंत्र के कातिलों को जनता आज नहीं तो कल धूल चटा ही देती है।यही डर सता रहा है आज हुक्मरानों को। नजीजतन पीछे हटने को मजबूर हैं वो।कृषि मंत्री चाहे जितना गाल बजा लें।भविष्य उनका ही जय करेगा जिन्होंने पिछले एक साल से लोकतंत्र की रक्षा में ऐतिहासिक कुर्बानियाँ दीं तथा हिमालय की तरह अडिग रहे।
(लेखक के अपने विचार है)
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