- सोनपुर अनुमंडलीय अस्पताल में एक दर्जन से अधिक मरीजों को हुआ इलाज
- चिकित्सकीय परामर्श के साथ-साथ दी गयी आवश्यक दवाएं
- सहयोगी संस्था के प्रतिनिधियों ने बनायी है पेशेंट सपोर्ट ग्रुप
- फाईलेरिया भी है नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजिज
राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। फाइलेरिया उन्मूलन के दिशा में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा अभियान चलाया जा रहा है। फाइलेरिया मरीजों को बेहतर चिकित्सकीय सेवा मिल सके उसके लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इसी कड़ी में गुरूवार को सोनपुर अनुमंडलीय अस्पताल में फाइलेरिया से ग्रसित करीब एक दर्जन से अधिक मरीजों का उपचार किया गया और आवश्यक चिकित्सकीय परामर्श दिया गया। इस दौरान हाथी पांव के मरीजों की ड्रेसिंग की गयी। डॉ. सौम्या के द्वारा सभी मरीजों को चिकित्सकीय परामर्श दी गयी। इस बात की जानकारी दी गयी कि किस तरह से रात में सोने से पहले पैर की सफाई करना है। समय पर दवा का सेवन करना है। इससे बचाव के लिए विशेष सावधानी बरतनी है। डॉ. सौम्या के द्वारा मरीजों को एल्बेंडाजोल, डीईसी, कैल्शियम टैबलेट, अमोक्सीक्लीन, बेटाडीन क्रीम आदि आवश्यक दवा का वितरण किया गया।
पेशेंट सपोर्ट ग्रुप बना सहारा:
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की सहयोगी संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के सहयोग से पेशेंट सपोर्ट ग्रुप बनाया गया है। जिस ग्रुप के माध्यम से मरीजों को उनके अधिकारी और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा दी जाने वाली सेवाओं मुहैया कराया जा रहा है। इसके साथ हीं ग्रुप के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का भी काम किया जा रहा है।
फाइलेरिया रोग से बचने का सबसे बेहतर उपाय जागरूकता:
फाइलेरिया रोग से बचने का सबसे बेहतर उपाय जानकारी है। यह बीमारी परिलक्षित होने में कम से कम 8 से 10 साल लग जाते हैं। जिसमें व्यक्ति को संभलने का मौका नहीं मिलता। इससे बचने के लिए सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम के तहत मिलने वाली डीईसी व अल्बेंडाजोल की दवा भी फाइलेरिया को होने से रोकने में कारगर है। इसलिए वर्ष में एक बार डीईसी और अल्बेंडाजोल की गोली अवश्य खाएं।
फाइलेरिया नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज में है शामिल:
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा फाइलेरिया को नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज में शामिल किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 20 से अधिक प्रकार की बीमारियों को नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज की श्रेणी में रखा गया है। जनजागरूकता के अभाव में इन बीमारियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। वहीं भारत ने इन रोगों के उन्मूलन को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए वर्ष 2030 तक नेग्लेक्टेड ट्रोपितकल डिजीज को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज से जुड़े सभी रोगों को खत्म करने के लिए जनजागरूकता पर बल दिया गया है।


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