जाते हैं सभी, पर कदमों के निशां हर किसी की नजर नहीं आती।जाते हैं सभी, पर उनमें कुछ ही अपनी यादे छोड़ जाते हैं। जाते हैं सभी, लेकिन सब के लिये आखें नम नहीं होती। कुछ ही होते हैं जिनके जाने के बाद अनायास मुँह से निकल जाता है, काश कुछ दिन और रहते।
छपरा (सारण)। जी दोस्तों, लता जी भी चली गयीं। यानी संगीत की एक दुनिया भी उनके साथ चली गयी। गायक तो बहुत हैं, हुए भी हैं बहुत, शायद कोई ‘ लता जी ‘ युगों के बाद पैदा होती हैं।यह मानने से भला कौन इनकार करेगा कि वों सम्पूर्णता में स्वयं संगीत थी। मुझे याद है , उन्होंने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, जब भी मैं गाती हूँ, मैं पूर्ण रुपेण वहीं हो जाती हूँ, जिसके लिये मैं गा रही होती हूँ। फिल्म बैजू बावरा का वो गीत, “मोहे भूल गये सांवरिया” गाते गाते उनकी हिचकियाँ बंध गयी थी, तो गीत को दोबारा रिकौर्डिंग करना पडा़ था। गीत संगीत के इस बाजारीकरण के दौर में लता जी से, आज के गायकों को जो सीखना चाहिये वो यह कि उन्हें फुहर गाने गाना बिल्कुल पसंद नहीं था। ” मैं क्या करुँ राम मुझे बुढा़ मिल गया “, गाने के बाद उन्होंने जो अपराधबोध की भावना का इजहार किया था वो अनुकरणीय है। आज वो सब कुछ असम्भव सा लगता है।आज का युग है- फूहर गीत गाओ, पैसा कमाओ। अपसांस्कृतिक नगमें गाने के आफर आते थे लेकिन लता जी की सांस्कृतिक नैतिकता उसे ठुकरा देती थी। हालाँकि परिवार में उस समय पैसों की भारी किल्लत थी। आर्थिक तंगी के उस दौर को भी उन्होंने देखा है, जब एक होली में उनके परिवार में ठीक से कपडा़ भी नहीं सिलवा पाया था।
क्या आप जानते हैं लता जी कुआँरापन के बावजूद सिन्दुर भी लगाती थीं। जब पूछा गया तो उनका जवाब था, ” मैं संगीत के लिये ही सिंदूर करती हूँ”। संगीत के प्रति समर्पण का ऐसा अजीम मिसाल दुर्लभ है। कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाली पीढियाँ एक संगीत तपस्वी के रुप में उन्हें याद करेंगी।त्रिकाल सत्य है इन्तकाल ।दिल दर्द से भर जाता है जब हम पाते हैं कि फिल्मी दुनिया का वो लेयर अब समाप्ति की ओर है जिसने कला, साहित्य और संस्कृति को बे अदबी से बचाये रखा।रफी, किशोर, मुकेश, हेमंत, साहिर, शकील, मदन मोहन, रवि,ख्याम और कई नाम हैं, सभी चले गये।और आज उस पीढी़ की एक सुरीली आवाज , जिसे भारत रत्न से नवाजा गया था, ने भी आँखों बन्द करलीं। यानी स्वर कोकीला दूर कहीं दूर परवाज भर ली।
आईये, इस संगीत की देवी को विदा करें और श्रद्धांजलि के पुष्प अर्पित करें। अलविदा लता जी। शत शात नमन
लेखक:- अहमद अली


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