लेखक अहमद अली। राष्ट्रनायक न्यूज
छपरा (सारण)। यह एक पूरानी कहावत है। मुझे याद आ गयी, जब मैंने समाचारपत्रों यह देखा कि अखिलेश यादव ने लोकसभा से इस्तीफा दे कर, पूरा समय उत्तरप्रदेश में ही देने का फैसला किया है। मैं सोंच रहा हूँ, देर से लिया गया यह एक सही फैसला है। मुझे बेचैन कर रही है यह बात भी कि ऐसा निर्णय लेने में आखिर देर क्यों हुई? क्या वहाँ के हालात से, या अभी जो अखिलेश तर्क दे रहे हैं, पहले वाकिफ नहीं थे? यदि नहीं थे, तो इसे क्या कहेंगे? अदूरदर्शिता ही न! विधानसभा में रहने का मतलब लगातार, पूरे प्रदेश की जनता के बीच रहना, मनोवैज्ञानिक तौर पर एक दम सही है। एक लोकसभा का प्रतिनिधित्व पूरे प्रदेश का तो हो नहीं सकता।आप सपा के अध्यक्ष भी हो। पार्टी पर अच्छी पकड़ भी है। यु पी में सपा का व्यापक जनाधार भी है, इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। पर असफलता के बाद इससे भी इन्कार नहीं कि जीत की तैयारी अधूरी एवं अदूरदर्शी थी। खुशफहमी आपके पूरे जमात पर हावी थी, यह भी स्पष्ट नज़र आ रहा था।खैर मैं यहाँ चुनाव विश्लेषण नहीं कर रहा हूँ। सिर्फ इतना कहना है कि असफलताओं की झोली में शिक्षा का भंडार भी होता है। भविष्य में वही आदमी सफल होता है जो उससे सीख ग्रहण करता है। हार के कई कारण होते हैं। मैं उनके विस्तार में नहीं जा कर केवल एक तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ कि सपा, धर्रनिरपेक्ष वोटों के ध्रुवीकरण करने में भी नाकाम रही। यदि अभी से ही उन सभी ताकतों को एक मंच पर लाने की कोशिश हो, तो भविष्य में सफलता की राहें आसान हो सकती हैं। अन्त में बस यही, “देर आयद दुरुस्त आयद “


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