संजीव शर्मा। राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। छपरा में जन्म लेकर दुनिया भर में भक्ति एवम ज्ञान को प्रकाशित करने वाले अद्वितीय प्रतिभा के धनी परमहंस प्रभुदयाल स्वामी जी महाराज का तीन दिवसीय समाधि शताब्दी समारोह गुरुवार से शुरू हो गया। सालों पहले छपरा शहर के दहियावां मुहल्ले से निकल कर पाकिस्तान के टेरी नामक स्थान पर उन्होंने अपना आश्रम बनाया था। वहां योग तथा साधना का ज्ञान देने वाले स्वामी परमहंस दयाल जी आज से एक सौ तीन वर्ष पहले नौ जुलाई 1919 को पाकिस्तान के टेरी में ही समाधि ले ली थी। इस दौरान स्वामी परमहंस दयाल जी ने बह्म विद्यालय एवं आश्रम की स्थापना कर अपने पंथ को आगे बढ़ाया और अपने अनुयायियों को इसे और आगे ले जाने का निर्देश दिया था। वर्तमान में इस पंथ से जुड़े 80 आश्रम भारत में संचालित हो रहे हैं। स्वामी परमहंस दयाल जी का प्रभाव था कि बह्म विद्यालय एवं आश्रम का विस्तार देश विदेश में हुआ और भारत के कई राज्यों में आश्रम बनते गये। स्वामी जी के समाधि शताब्दी वर्ष पर पर देश के कई स्थानों से हजारों संन्यासी और श्रद्धालु भक्त छपरा मांझी के नंदपुर स्थित आश्रम में जमा हुये। पूर्व से प्रस्तावित कार्यक्रम के तहत स्वामी जी के ननिहाल मांझी के नंदपुर से शनिवार की सुबह पांच बजे से पदयात्रा शुरू होगा। पंथ के वर्तमान गुरू स्वामी सत्यानंद जी महाराज की अगुवानी में संन्यासी और भक्तो का हुजूम नंदपुर मांझी से चलकर दोपहर बाद कोपा, देवरियां, बह्मपुर, दहियावां से होकर छपरा के रौजा स्थित आश्रम पहुंचेगा।
भक्तों के लिए रौजा आश्रम में बना है बड़ा पंडाल:
छपरा के रौजा स्थित आश्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित संन्यासी और भक्तों के विश्राम के लिये आश्रम में बड़ा वाटर प्रूफ पंडाल बनाया गया है। वही आश्रम में एक प्रवचन पंडाल के साथ श्रद्धालुओं के भोजन व अन्य सुविधा के लिये भी बड़ा पंडाल बनाया गया है। तीन दिवसीय कार्यक्रम में प्रत्येक दिन संध्या स्वामी सत्यानंद जी महाराज का प्रवचन और भजन कीर्तन हो रहा है। इस दौरान श्रद्धालु और अन्य लोगों के बीच परमहंस दयाल जी की जीवनी और उनके जीवन यात्रा को विस्तार से बताया जा रहा है। आश्रम में पहुंचे श्रद्धालु भी कार्यक्रम में पहुंचे संन्यासी व श्रद्धालु भक्तों की सुविधा के लिये सेवा भाव से जुटे हुए है।
पहले अध्यात्म फिर सांसारिक सुख:
शुक्रवार को माँझी के नंदपुर स्थित ब्रह्मविद्यालय के सभागार में आयोजित सत्संग कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने मृत्यु शैया पर पड़े रावण से ज्ञान की सीख लेने पहुंचे लक्ष्मण संवाद की विशद ब्याख्या की। उन्होंने कहा कि रावण ने अपनी भूल स्वीकारते हुए कहा था कि मानव को पहले अध्यात्म का वरण करना चाहिए ततपश्चात सांसारिक सुखों को हासिल करने के प्रति उसे उन्मुख होना चाहिए। यह सब कुछ जानते हुए भी मैंने सांसारिक सुख हासिल करने की होड़ में अधयातम को पीछे छोड़ दिया। यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। यही मानव के लिए सबसे बड़ी सीख है। साथ ही उसी भूल का परिणाम है कि तीनों लोकों का विजेता रावण मानव जीवन के मूल उद्देश्य से भटक कर अपने कुल के नाश का कारण बनकर खुद म्रत्यु शैया पर पड़ा हुआ है।


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