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लॉकडाऊन में आर्थिक समृद्धि की नई गाथा पेश कर रहे हैं रामगढ़ा के किसान, गांव में रोज सुबह लगती हैं सब्जी मंडी, 500 क्विंटल होती है खरीद-बिक्री

लॉकडाऊन में आर्थिक समृद्धि की नई गाथा पेश कर रहे हैं रामगढ़ा के किसान, गांव में रोज सुबह लगती हैं सब्जी मंडी, 500 क्विंटल होती है खरीद-बिक्री

  • कृषि विभाग का किसान पाठशाला व अन्य योजनाओं से अधिकतर किसान है वंचित
  • गड़खा-मानपुर रोड में रामगढ़ा गांव में सड़क के किनारे हीं लगती हैं सब्जी मंडी
  • प्रतिदिन लाखों रूपये मूल्य के सब्जियों की होती हैं खरीद-बिक्री
  • प्रतिदिन 500 क्विंटल से अधिक सब्जियों होती हैं बिक्री
  • सीवान, छपरा, गड़खा, मकेर, मढ़ौरा, मशरक सहित अन्य स्थानों के व्यापारी गांव में आकर खरीदते हैं सब्जियां
  • प्रतिदिन सुबह छह बजे से किसानों की सज जाती सब्जी की दुकाने
  • प्रशासनिक स्तर पर व्यापारियों की सुरक्षा के लिए नहीं की हैं कोई व्यवस्था
  • रामगढ़ा सब्जी मंडी में आस-पास के करीब आधा दर्जन से अधिक गांव के किसान आते हैं सब्जी बेचने
  • अभी तक प्रशासनिक स्तर नहीं किया गया है निबंधन

गड़खा से मुरारी स्वामी की रिपोर्ट

छपरा(सारण)। जिले के गड़खा प्रखंड में रामगढ़ा गांव के किसान कभी मौसमी खेती पर आश्रित रहते थे। लेकिन इसबार कोरोना लॉकडाउन ने सबकुद बदल दिया है। गांव से दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए जाने वाले प्रवासी मजदूरों ने स्वयं में रोजगार के संसाधन ढ़ुढ़ लिया है। रामगढ़ा गांव सहित आस-पास के करीब आधा दर्जन से अधिक गांव के लोगों ने कृषि विभाग के बिना सहयोग से ही खेती को ही अपने रोजगार का संसाधन बनाकर उदाहरण प्रस्तुत किया है। गांव के लोग पारंपरिक खेती के बजाये अब नकद खेती को बढ़ावा देकर आर्थिक उपार्जन कर रहे है। लॉकडाउन से पहले किसान रामबाबू राय, श्यामबाबू राय, बालेश्वर पांडेय, सुरेन्द्र राम सहित अन्य प्रवासी लोगों ने अपने खेतों में पारंपरिक खेती को छोड़ नई तकनिक से खेती करने के लिए प्रेरित करने का कार्य शुरू किया और सब्जी की फसल लगाना शुरू किया। इससे नकद आमदनी होने लगी। इसको देखकर गांव के अन्य किसानों से सब्जी की खेती शुरू की और अब गांव के अधिकतर किसान पारंपरिक खेती को त्याग कर केवल सब्जी की ही खेती कर रहे है। इसको देखकर आस-पास के मिर्जापुर, दिघरा, बह्मस्थान, प्रतापपुर सहित आर्धा दर्जन से अधिक गांव के लोगों ने सब्जी की खेती कर रहे है। सबसे आश्चर्य की बात है कि इन किसानों के उपज को बेचने के लिए बाजार पर निर्भर नहीं होना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों की माने तो रामगढ़ा समेत आस-पास के आधा दर्जन गांव के किसानों के फसलों को व्यापारी प्रतिदिन लाखों रूपये की खरीद कर ले जा रहे है।

सीवान, छपरा, गड़खा, मकेर, मढ़ौरा, मशरक सहित अन्य स्थानों के व्यापारी गांव में आकर खरीदते हैं सब्जियां

लॉकडाउन ने लोगों की जीवनशैली ही बदल दिया है। किसान अब बिना सरकारी सहायता के लिए आत्मनिर्भर हो रहे है। स्वयं की परिस्थितियों के देखते हुए नकदी खेती को बढ़ावा दिये है। जिसका परिणाम भी देखने का मिल रहा है। इनके खेतों के पैदावार को देखते हुए सबसे पहले गड़खा के व्यापरियों ने खरीदारी शुरू की, अब छपरा, सीवान, मढ़ौरा, मकेर, मशरक, सोनहो, भेल्दी सहित अन्य जगहों के व्यापारी गांव में ही आकर सब्जी के पैदावार की खरीदारी कर रहे है। इससे इन किसानों को अब दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी नहीं करना पड़ रहा है।

गड़खा-मानपुर रोड में रामगढ़ा गांव में सड़क के किनारे हीं सुबह छह बजे सज जाती है सब्जी मंडी

पांरपरिक खेती को छोड़कर तकनीकी एवं नकद आमदनी वाले फसलों की खेती को बढ़ावा मिलने से प्रवास सहित ग्रामीण क्षेत्र के किसानों को आमदनी का नया श्रोत बन गया है। इनके खेतों के पैदावार से प्रभावित होकर दूसरे प्रखंड एवं जिलों के व्यापारी पैदावार को खरीदने के लिए आ रहे है। मिली जानकारी के अनुसार गड़खा-मानपुर रोड पर रामगढ़ा गांव में ही सड़क के किनारे हीं सुबह छह बजे से किसानों के सब्जियों की दुकाने सज जाती है और करीब 10 बजे तक समाप्त हो जाती है। इनके पैदावार को खरीदने के लिए बड़े-बड़े आते है और पैदावार का उचित मूल्य देकर ले जा रहे है। इससे अब किसानों को दिघवारा, गड़खा या अन्य सब्जी मंडियों पर निर्भर नहीं होना पड़ रहा है।

प्रतिदिन 500 क्विंटल से अधिक सब्जियों होती हैं बिक्री

कोरोना लॉकडाउन में खेती की नई गाथा शुरू करने वाले किसानों की माने तो पहले अपने खेतों की पैदावार बेचने के लिए अन्य बाजारों पर निर्भर होना पड़ता था। अब एक-दूसरे को देखकर नकदी फसलों की खेती में काफी इजाफा हुआ है। स्थानीय किसानों की माने तो रामगढ़ा, मिर्जापुर, दिघरा, बह़्मस्थान सहित आस-पास के करीब आधा दर्जन गांव के किसानों का प्रतिदिन करीब 500 क्विंटल सब्जी का उत्पादन हो रहा है। जिसे खरीदने के लिए दूसरे जिलों सहित अन्य जगहों के व्यापरी आ रहे है।

किसान प्रत्येक मौसम के सब्जी एवं नकदी फसलों को करते है उत्पादन

गड़खा प्रखंड के रामगढ़ा सहित आधा दर्जन गांव के किसान प्रत्येक मौसम में सब्जी एवं अन्य नकदी फसलों को उत्पादन करते है। ताकि उनके जीविका चल सके। स्थानीय किसानों की माने तो प्याज, आलू, भिन्डी, नेनूआ, करेला, लौकी, हरी मिर्च सहित अन्य नकदी फसलों का उत्पादन करते है।

अभी तक प्रशासनिक स्तर नहीं मिला सहयोग और नहीं हुआ सहकारी समिति का निबंधन

जिले के गड़खा प्रखंड के रामगढ़ा गांव में किसान बिना किसी सरकारी सहायता के ही अपने विवेक से खेती कर रहे है। जिससे इन्हें प्रतिदिन नकदी आमदनी हो रही है। स्थानीय किसानों की माने तो अभी तक किसी भी सरकारी विभाग द्वारा कोई भी सहायता या नये तकनीक से खेती की जानकारी नहीं दी गई है और न हीं इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई सकारात्मक प्रयास किया गया है। नतीजा है कि किसान स्वयं अपने पैदावार से सब्जी व्यापरियों को आकर्षित किये है। किसानों का कहना है कि सुबह छह बजे से सब्जी मंडी की शुरूआत होती है, लेकिन कम जगह होने के कारण मंडी में अधिक भीड़-भाड़ रहती है। अगर स्थानीय प्रशासन सकारात्मक पहल करे तो रामगढ़ा को बड़े सब्जी मंडी के रूप में विकसित किया जा सकता है।

कृषि विभाग का किसान पाठशाला व किसान चौपाल कागजी फाइलों की बढ़ा रही है शोभा

तकनीकी खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग के द्वारा समय-समय पर किसान पाठशाला एवं किसान चौपाल का आयोजन किया जाता है। ताकि आधुनिक खेती को बढ़ावा दिया जा सके। लेकिन आश्चर्य कि बात है कि अभी तक कृषि विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारियों ने गांव में आधुनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कोई सुद नहीं लिया है। स्थानीय किसानों की माने तो सरकारी कर्मी एवं पदाधिकारी गांव में कभी नहीं आये है और न ही आना उचित समझे है। इनको लगता है कि सरकारी योजनाएं बाबूओं के कार्यालय के फाइलों में शोभा बढ़ाने के लिए ही बनायी जाती है।

गांव के सब्जी मंडी में भीड़ के कारण सता रहा कोरोना का भय

रामगढ़ा गांव के उन्नतशील किसानों ने अपने पैदावार के माध्यम से छोटे-बड़े सभी व्यापरियों को आकर्षित किया है। जिसका नतीजा है कि प्रतिदिन सुबह छह बजे से व्यापारियों एवं किसानों की भीड़ इक्कठा हो रही है। जिससे अब किसानों में भी धीरे-धीरे कोरोना वायरस का डर सताने लगा है। स्थानीय लोगों की माने तो प्रशासनिक सहयोग मिले तो गांव में अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सब्जी मंडी लगाया जा सकता है। जिससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर किसानों से व्यापारी पैदावार की खरीददारी कर सके।

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