राष्ट्रनायक न्यूज।
गुज़र गया आजादी का 75 वाँ सालगिरह, जिसे आजादी का अमृत महोत्सव की संज्ञा दी गयी थी। गौर किजिये, इस अमृत महोत्सव के संपूर्ण काल में जितनी चर्चा सावरकर को एक महान स्वतंत्रता सेनानी और बलिदानी के रूप में स्थापित करने हेतु की गयी, उतनी चर्चा जंगे आजादी में अपना सर्वत्र न्योछावर कर देने वाले अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की नहीं की गई। और यह कोई अंजाने में नहीं बल्कि योजना बद्ध था। जी हाँ, उन्हीं सावरकर को, जिन्होंने काला पानी से आजाद होने के लिये अँग्रेजों के पास पाँच मर्तबा माँफी नामा भेजा था। यहाँ तक कहा, ” मुझे एक बिगडै़ल बेटा समझकर माँफ कर दिया जाय”। खैर, वायसराय ने उन्हें माँफ कर दिया। वो जेल से बाहर आये। गोरों से आजीवन वजीफा भी प्राप्त करते रहे और सर्वप्रथम द्वी राष्ट्र की थ्युरी गढ़ कर अँग्रेजों के ‘फूट डालो – राज करो ‘ नीति के लिये रास्ता सुगम भी बनाया। आर.एस,एस. की नज़रों में यही उनकी वीरता भी है। ऐसा लगा; वर्तमान शासक वर्ग का उद्देश्य यही है कि वतन की आजादी के संघर्ष-काल के कलंक को कैसे छुपाया जाए। शासक वर्ग द्वारा पोषित मीडिया भी सरकार के इशारों पर ही बहस के एजेंडे तय करते दिखे। सारा माहौल ” हर घर तिरंगा – घर घर तिरंगा” में ही सराबोर कर दिया गया। प्रत्येक घर पर राष्ट्रीय झंडा लहरे, इससे भला कौन इनकार कर सकता है ! पर तिरंगे में अंतर्निहित देशभक्ति और शहादत को भी सतह पर लाना चाहिए था। इस कार्य को वर्तमान शासक ने हाशिए पर धकेल दिया। तिरंगा हमारा प्यारा राष्ट्रीय ध्वज है। इसकी शान में अनगिनत कविताएं, गीत और कसीदे लिखे गए हैं। फिर भी इस सच्चाई को लाख कोशिशों के बावजूद छुपाया नहीं जा सकता कि एक तरफ ” विजयी विश्व तिरंगा प्यारा- झंडा ऊंचा रहे हमारा ” जिसे जवाहर लाल नेहरु ने झंडा गीत की संज्ञा से नवाजा। जिसको कानपुर निवासी, महान स्वतन्त्रता सेनानी श्याम लाल गुप्ता जेल में बैठे रच रहे थे। तो दूसरी तरफ ज़रा सावरकर की आवाज भी सुन लिजिये – ” हिंदू किसी भी कीमत पर वफादारी के साथ अखिल हिन्दू ध्वज यानी भगवा ध्वज के सिवा किसी और ध्वज को सलाम नहीं कर सकते ” । गोलवलकर ने तो इसे अशुभ ही करार दे दिया। कहते हैं , ” भारत का झंडा एक ही रंग का और भगवा होना चाहिए। ‘तीन’ शब्द तो अपने आप में अशुभ है और तीन रंगों वाला ध्वज निश्चय ही बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा और देश के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा “।
” भगवा रंग वाला ध्वज ही एकमात्र ऐसा ध्वज है, जो हिंदुस्तान में राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए और हो सकता है। जो लोग भाग्य के प्रभाव से सत्ता में आए हैं, वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगा दे दें, लेकिन इसका कभी भी सम्मान और स्वामित्व हिंदुओं के पास नहीं होगा ” ये हैं श्यामा प्रसाद मुखर्जी के शब्द। ये तीनों आर.एस.एस. के महारथी हैं। जिस आर एस एस का स्वर तिरंगा झंडे का अपमान से भरा हुआ है, उसके पूर्व अखिल भारतीय प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के ह्रदय में तिरंगा प्यार का दरिया! बेहतर वही जानते हैं, कोई बेबसी है, जनता का तिरंगा ध्वज के प्रति मोहब्बत के सामने उनका समर्पण है या फिर वही काला दाग मिटाना। भारत के संविधान और लोकतंत्र के प्रति भी यदि उनका रवैया सकारात्मक हो जाय तो देश की बर्बादी रुक सकती है। पिछले दिनों एक धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान करने वाले यती नरसिंहानंद सरस्वती ने हर घर तिरंगा फहराने का विरोध करते हुए हर घर भगवा फहराने का प्रचार किया।आजादी के 75 वें साल गिरह के इस उत्सवी माहौल में ये नफरत का धुआँ छोड़ने से बाज नहीं आये।कहते हैं, ये झंडा बंगाल के सलाउदीन नामक एक मुसलमान तैयार कर रहा है, इसलिये इसे खरीदना पाप है।
यह वक्तव्य शायद राष्ट्रीय झंडे का उनकी नजर में अपमान नहीं है। यदि होता तो कार्रवाई भी बाकी नहीं रहती।
खैर, इन्तजार किजिये। शंकाएँ दूर हो जायेगी।
(लेखक के अपने विचार है।)
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