राष्ट्रनायक न्यूज

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प्यासा इन्द्र मेघवाल

राष्ट्रनायक न्यूज।

छपरा (सारण)। छुआछूत क्या होती है, उस मासूम बच्चे को यह पता भी न था।प्यास लगी और मास्टर साहेब के मटके से पानी पी लिया। प्यास तो बुझ गयी,पर जान चली गयी। बेचारा बाप 23 दिन, एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक गोद में लेकर दौड़ता रहा। बेटा मौत से हार गया। अन्त में उसे अपने लाडले को कफन से ढ़कना ही पडा़। शिष्य और शिक्षक के पवित्र रिश्ते भी उस नन्हे बालक के साथ चिता पर धू धू कर जल उठे। इन्द्र मेघवाल नाम था उसका।जालौन, राजस्थान का मात्र 9 वर्ष का बालक। चिन्ता तो तब होती है, जब इस प्रकार की घटनाएँ शैक्षणिक संस्थानों से सुनाई पड़ती हैं। इस मनुवादी मानसिकता का शिकार आए दिन दलित बच्चे होते हैं। कोई बडा़ हादसा हुआ तो सभी जान गये नहीं तो बातें आया जाया हो जाती हैं। कहीं प्रकाश में आ भी गया, तो सच्चाई ढ़कने के लिये कई तह के पर्दे लगाने शुरु कर जाते हैं। यह जालौन में भी आरम्भ चुका है। पुलिस और शिक्षक घटना को दूसरी दिशा में मोड़ देने के लिये पूरा जोड़ लगा रहे हैं। जंगे आजादी में जो मजदूर वर्गीय दृष्टिकोण या विचारधारा के लोग थे उन्हें इसी की चिन्ता थी। देश आजाद तो होगा, लेकिन यदि सामंती विचारधारा से आजादी नहीं मीली, तो फिर स्वतन्त्र भारत भी नफरतों की आग में झुलसता हुआ दिखाई देगा।और इसीलिये उनका संघर्ष स्वतन्त्रता के साथ व्यवस्था परिवर्तन के लिये भी था। नफरती घटनाएँ पहले भी नज़र आती थी, पर इधर छः सात वर्षों में बाढ़ सी आ गयी है। कहा जाता है,” किसी भी देश के हुक्मरान की विचारधारा, सोंच और मानसिकता का मनोवैज्ञानिक प्रभाव आम जनमानस पर भी पड़ता है “।

डंका बजवाया गया कि भाजपा के दिग्गज नेता दलितों के यहाँ भोजन करेंगे। बाद में पता चला कि भोजन होटल से मंगवाय गया है। दलित बस्ती में एक मर्तबा युपी के मुख्यमंत्री योगी जी का भ्रमण का कार्यक्रम था।एक दिन पहले मुहल्ले में गमक वाला साबुन बंटवाया गया। ये सारा नाटक चुनाव अवधी की है। पर इन नाटकबाज नेताओं की इन हरकतों से सम्पूर्ण दलित समाज में जो हीन भावना का संचार होता है उसकी भरपाई कौन करेगा ? यही हीन भाव उनकी प्रगति की राहों में खाई समान है। अब ज़रा कुछ (सभी नहीं) दलित नेताओं की कारगुजारियों पर भी दृष्टिपात कर लें। 14 अप्रैल को अम्बेडकर की बडी़ बडी तस्वीरों पर पुष्पांजली करेंगे, उनकी प्रतिमा के सामने खडे़ होकर लम्बी चौडी़ तकरीरें देंगे। लेकिन कभी दलित उत्पीड़न का मुखालिफत की बात आयेगी तो मनुवादी नेताओं के साथ गलबहीयां करते मिलेंगे। वो भूल जाते हैं कि 25 दिसम्बर 1927 को मनुस्मृति का दहन करते हुए बाबा साहेब ने बंचितों, शोषितों और दलितों को इससे सावधान रहने को कहा था।पद और प्रतिष्ठा की लोभ ने उन्हें अम्बेडकर के आदर्शों से विमुख कर दिया है। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के साथ भी, जब शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, दर्जनों घटनाएँ घटी उनके साथ। जब उन्हें प्यास लगती, प्यास बुझाने के दौरान मनुवादी प्रताड़ना के अकसर शिकार होते थे वो। आज कई प्यासे इन्द्र मेघवाल हैं जिन्हें हड़का दिया गया है। तुम अछूत हो, प्यास लगे तो इस गलास से नहीं, उस गलास से पानी पीओ। समाज के इस कलंक को मिटाने के लिये क्या आप तैयार हैं ?

लेखक- अहमद अली