मनिंद्र नाथ सिंह मुन्ना। राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। दिघवारा नगर पंचायत के मुख्य बजार स्थित मालगोदाम के सामने गीता जयंती समारोह समिति द्वारा आयोजित गीता जयंती साप्ताहिक समारोह के तीसरे दिन प्रवचन करते हुए खलीलाबाद से पधारे स्वामी वैराग्यानंद परमहंस ने कहा कि गीता निष्काम कर्म का संदेश देते हुए विचलित व भ्रमित मन को रास्ता दिखलाने का काम करती है। इसके अध्ययन से इंसान को मोह से निवृति मिलती है और उसे अपने जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य का पता चलता है। उन्होंने कहा कि गीता का हर शब्द अमृत के समान है, काम, क्रोध, लोभ, पाप आदि मानवीय विकार हैं और इस सबों के परित्याग के बाद ही सुख की प्राप्ति संभव है। ये सभी मानवीय विकार पतन का कारण बनते हैं। स्वामी जी ने कहा कि ब्रह्मांड पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, मन, बुद्धि व चेतना नामक आठ तत्वों से मिलकर बना है। मानव के मन के अस्तित्व की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि मन हमेशा बदलते रहता है और यह चंचल होता है,इसे साधना,अभ्यास व आध्यात्म के द्वारा अच्छे ढंग से प्रशिक्षित किया जा सकता है। एक प्रसंग में स्वामी जी ने कहा कि हर इंसान को फल की कामना किए बिना कर्म करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि निष्काम कर्म से ही मुक्ति प्राप्त होती है।स्वामी जी ने कहा कि मानव का सबसे बड़ा हितैषी भगवान होते हैं क्योंकि भगवान किसी भी परिस्थिति में अपने भक्तों को नहीं छोड़ते हैं। इसलिए हर इंसान को निःस्वार्थ भाव से ईश्वर की स्तुति करनी चाहिए। उधर कोलकाता के प्रवचनकर्ता पंडित बशिष्ठ नारायण शास्त्री ने सांगीतिक तरीके से ईश्वर के अस्तित्व व मनुष्य के भक्ति के महत्व को रेखांकित किया।उन्होंने कहा कि ईश्वर भक्ति में स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती है और प्रेम का हर स्वरूप निष्काम व निश्चल होता है। श्री शास्त्री ने कई भजनों के सहारे श्रद्धालुओं का ज्ञानवर्द्धन किया।


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