राष्ट्रनायक न्यूज

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शहरों के साथ-साथ गांव-कस्बों से भी समाप्त हो गई डोली प्रथा

छपरा

छपरा

  • डोली की जगह लक्ज़री गाड़ियों में हो रही है, दुल्हन की विदाई
  • पुराने प्रथा को समाप्त होते देख बुजुर्ग लोग चिंतित

संजय कुमार सिंह। राष्ट्रनायक न्यूज।

बनियापुर (सारण)चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रूत आई..। लड़की की विदाई के समय बजने वाला यह गीत अब सिर्फ यादें बन कर रह गई है। दो से तीन दशक पूर्व गांवों के लोग अपनी बेटियों को शादी के बाद डोली में ससुराल के लिए कुछ इसी अंदाज में विदा करते थे। मगर बदलते युग में ढलते हुए आज गांव-कस्बों में भी डोली प्रथा करीब-करीब समाप्त हो गई है। आज के आधुनिक युग में यह प्रथा फैशन के अनुरूप लग्जरी गाड़ियों में तब्दील होकर रह गई है। क्षेत्र में अब ना तो डोली नजर आती है और ना ही कहार। इस धंधे से जुड़े ज्यादातर लोग जमाने के अनुरूप अपना व्यवसाय बदल परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। बदलते जमाने और वैज्ञानिक युग के कारण गांवों से बहुत सी प्रथा समाप्त हो गई है। जो अब सिर्फ पुरानी फिल्मों में ही देखने को मिलेंगी।फिल्म में डोली पर दुल्हन की विदाई का दृश्य को डोली, बहु- बेगम, रजिया सुल्तान, जानी- दुश्मन आदि फिल्मों में बखूबी चित्रण कर दर्शकों का ध्यान आकृष्ट कराया गया था। जिसका दर्शकों ने खूब प्रशंसा किया था। वही बदलते जमाने के अनुकूल धीरे- धीरे गांव से यह प्रथा समाप्त होकर कुछ दशकों तक यह प्रथा कुछ विशेष जातियों में रहा। फिर उसके बाद यह प्रथा गांव समाज से पूरी तरह विलुप्त हो गई। अब वैज्ञानिक दौर आ जाने से दुनिया के बदलते परिवेश में गांव के लोग भी अछूते नही रहे। इस दौर में गांव वाले भी अपनी बेटी की शादी रचाने के बाद लग्जरी गाड़ियों में विदा करने में गर्व महसूस कर रहे है। वहीं ग्रामीणों की माने तो डोली प्रथा बीते जमाने की एक कहानी बनकर रह गई है।

क्या कहते है, बुजुर्ग लोग:

बुजुर्ग मदन सिंह,बाबूलाल राय,परशुराम सिंह आदि ने बताया कि आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता के अनुकूल अपने-आपको को ढालने में लगी है। जिसके चलते डोली प्रथा सहित कई पौराणिक परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही है। जो समाज के लिये अच्छा संदेश नही है। प्रत्येक समाज की अपनी एक परंपरा होती है।जो अतीत को संजोए रखती है।

क्या कहते है, युवा पीढ़ी:

युवा पीढ़ी के राणा कुमार,विक्की कुमार, धूमल पराशर, आदि ने बताया कि जमाने के अनुसार हमें भी बदलना चाहिए। तभी हम शहरवासियों की तरह दिख पाएंगे। वैसे आज की युवा पीढ़ी पौराणिक परंपराओं में उतना विश्वास नही रख पा रहे है। जितना कि उनके बुजुर्गो द्वारा विश्वास किया जाता है। आज हर कोई फैशन की ओर एक कदम आगे बढ़ान चाह रहा है। फैशन के इस दौड़ में क्या,शहर क्या देहात कोई भी किसी से पीछे दिखना पसंद नही करता है। युवाओं ने एक स्वर में कहा कि युग बदल गया है। ऐसे में जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिये हमें भी बदलना ही होगा।

क्या कहते है, डोली उठाने वाले कहार:

कन्हौली निवासी ईश्वर राम, सुनरदेव राम, महेश राम ने बताया कि हमारे पूर्वजों के समय से ही डोली प्रथा चली आ रही थी। जिससे लग्न के समय में रोजगार भी उपलब्ध होता था। साथ ही समाज मे प्रतिष्ठा भी मिलती थी।मगर अब एक से बढ़कर एक लग्जरी गाड़िया गांव- देहात तक भी पहुँच चुकी है। जहाँ युवा वर्ग की पहली पसंद डोली की जगह गाड़िया बन चुकी है।ऐसे में डोली प्रथा गुजरे जमाने की यादें बनकर रह गई है।