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कोसल महाजनपद का अंग रहा है, सारण

कोसल महाजनपद का अंग रहा है, सारण

  • महाप्रभु श्रीराम के पावन पद रज से पवित्र छपरा कार सेवा से लेकर जल व मिट्टी भेज चुका है, अयोध्या
  • भूमि पूजनोपरान्त दीपोत्सव की तैयारी

राणा अखिलेश परमार। दिघवारा 
छपरा(सारण)। सारण से अयोध्या का संबंध पुरातन काल से रही श्रद्धा व विश्वास के साथ शिवात्मक रहा है। छपरा के दहियावां में दधीचि आश्रम, सिंगहीं में पुत्रोष्ठी यज्ञ पुरोहित विभांडक तनय श्रृंगी आश्रम प्रमाण हैं कि रामावतार के पूर्व महाजनपद काल में अयोध्या, गोंडा,गोरखपुर, देवरिया के साथ सारण कोसल महाजनपद का अंग रहा है । बहरहाल, भगवान श्री राम के पावन चरण रज से पवित्र छपरा कार सेवा से लेकर जल व मिट्टी भेज चुका है, भूमि पूजनार्थ अयोध्या ।
श्री राम का सारण प्रवेश दंडकारण्य क्षेत्र बक्सर में ताड़का -सुबाहु बध के बाद सारण्यक क्षेत्र में प्रवेश कर अहिल्या उद्धार, (रिवीलगंज) घोघहा नदी ( मशरक) दधीचि आश्रम (दहियावां) गंगा ,सोन व सरयू संगम चिरांद में स्नान, मेषध आश्रम ,श्रृंगी आश्रम ( सिंगहीं) अंबिका स्थान, आमी, हरिहर क्षेत्र, सोनपुर होते हुए विदेह राज की सीमा वैशाली के हरिपुर प्रवेश यह प्रमाणित करता है कि महाप्रभु के चरण चिन्ह पड़े हैं सारण में । विशेष कर गौतम स्थान व रमचौरा,हरिपुर (हाजी पुर) में चरण चिन्ह अंकित है। नोट्स ऑन तुलसीदास, शिवनंदन सहाय कृत ‘मानस सटिक’,पंडित रामचंद्र द्विवेदी कृत ‘तुलसी ग्रंथावली ‘ पंडित रामदास गौड़ रचित ‘ तुलसी साहित्य रत्नाकर के अलावा 1964 मे जयपुर राजकीय पुस्तकालय से प्राप्त ताल पत्र पर लिखित नाभादास के पद प्रमाणित करते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास ने जहाँ जहाँ प्रभु के चरण रज मिले वहाँ वहाँ पहुँचकर शीश नवाए- ” चित्रकूट से चलि के तुलसी हरिपुर आए।’
राम बरात का छः दिन पड़ा पड़ाव छपरा पड़ा नाम

शोधार्थियों के अनुसार राम बरात का सारण में प्रवेश गोरखपुर होते हुए काँट ब्रह्मपुर, गायघाट, बेला पतौर( रघुनाथ पुर),कटेयां ,मैरवां होते हुए सारण में छः स्थानों पर पड़ाव पड़ा । लोककवि भिखारी ठाकुर के अनुसार-
” एक दूई दिवस बरात रात के जहं तहं करत अड़ाव।
छपरा नाम पड़ल तबहीं से छव दिन पड़ल पड़ाव ।”
बहरहाल, राम व रघुवंश के प्रति आस्था की जड़े सारण में गहरी है। बाबर के सिपहसालार मीर बांकी द्वारा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित राम मंदिर को ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद का निर्माण (1528) का विरोध भी सारण के शूर वीरों ने किया है ।77 बार मुक्ति संग्राम में में अनाम सारण अंतिम संग्राम 6 दिसम्बर 1992 में भी भूमिका अदा की है। नयागांव हासिलपुर पंचायत के वरियारचक के पंडित रामचंद्र परमहंस जो राम मंदिर के महंत थे ,पंडित हरिनारारणाचार्य, दरियापुर बेला अभी भी राममंदिर से जुड़े हैं । सारण के हरिहर क्षेत्र, अंबिका स्थान, आमी, चिरांद, गौतम स्थान से मिट्टी व जल राम मंदिर निर्माण व भूमि पूजन के लिए रामभक्तों ने भेजा है। बहरहाल, बाबरी मस्जिद इतिहास बन गया और राम मंदिर का भव्य निर्माण का श्री गणेश हो रहा है।

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