विश्वमोहन चौधरी”सन्त”की रिपोर्ट।
अहसास कलाकृति एवं द क्रियेटिव आर्ट थियेटर वेलफेयर सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में मुंशी प्रेमचन्द की चर्चित कहानी ‘‘मंदिर‘ की नाट्य प्रस्तुति की गई। नाटक का निर्देशन कुमार मानव ने किया। कहानी का नाट्य रूपांतरण ब्रहम्मानन्द पांडेय ने किया एवं कार्यक्रम निर्देशक सैयद अता करीम थे। कार्यक्रम की शुरूआत उद्घाटनकर्ता अभिमन्यु दास, अवर सचिव, निगरानी विभाग, बिहार सरकार, मुख्य अतिथि अखिलेश कुमार, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, सोशित समाज दल तथा विशिष्ट अतिथि इंजिनियर रामानुज गौतम एवं कला पुरुष एवं वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन चौधरी संत ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। नाटक मंदिर में जहाँ एक तरफ ऊँच-नीच, छुआछूत की समस्या और सवर्णों द्वारा दलितों को मंदिर में प्रवेश करने के अधिकार से वंचित किए जाने की समस्या को बखूबी दिखाया गया साथ ही एक माँ के सीने में, अपनी संतान के प्रति पल रहे अतुलनीय वात्सल्य भाव और ममता को भी बड़े मार्मिक तरिके से प्रस्तुत किया गया। नाटक में दिखाया गया कि बालक जियावन गंभीर रूप से बीमार है। इस दुनिया में उसकी माँ के अलावा उसका कोई नहीं है। बेटे का बुखार नहीं उतरने से चिंतित और दुखी माँ सुखिया, एक दिन स्वप्न में अपने मृत पति को देखती है, जो उसे बेटे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ठाकुर जी की पूजा करने की सलाह देता है। गरीब सुखिया अपने हाथों के कड़े बेचकर पूजा की सामग्री इकट्ठा करके, पूजा करने के लिए मंदिर में जाती है, परन्तु पुजारी के साथ गाँव के लोग उसे मंदिर में प्रवेश करने से रोक देते हैं। नाटक के चरमोत्कर्ष पर पहुंचने पर सुखिया चोरी-चोरी मंदिर में प्रवेश करना चाहती है, परन्तु पकड़ी जाती है। अंततः ग्रामीण, सुखिया और जियावन पर प्रहार करना शुरू कर देते हैं। जियावन की मौत हो जाती है और पुत्र शोक में विलाप करती और उपस्थि लोगों को हत्यारा समझकर कोसती हुयी सुखिया भी दुनिया से विदा हो जाती है। नाटक में सुखिया का पात्र निभा रही भारती नारायण ने दर्शकों को आंदोलित किया अपने चरित्र को जिवंत कर दिया। पुजारी की भुमिका में नाटक के निर्देशक कुमार मानव ने अपने दमदार अभिनय कौशल का परिचय दिया। जियावन की भूमिका मयंक कुमार एवं अन्य भूमिका में बलराम कुमार, विजय कुमार चौधरी, भुनेश्वर कुमार, राजकिशोर पासवान, हिमांशु कुमार, मंतोष कुमार ने भी अपनी छाप छोड़ी। प्रकाश परिकल्पना ब्रह्मानन्द पांडेय, रूप सज्जा माया कुमारी, मंच परिकल्पना बलराम कुमार, संतोष कुमार, पार्श्व ध्वनि मानसी कुमारी तथा वस्त्र विन्यास अनिता शर्मा ने किया।
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