नदी और भवसागर दोनों को पार कराने वाले नाविकों का गढ़ है मांझी
- आग लगाने का तजुर्बा नही आग बुझाने वालों में सिरमौर है मांझी
राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
मांझी (सारण)। संत परम्परा के महान वाहक सन्त धरणी दास ने नदी की बीच धारा में गमछा पर आसन लगाया और धारा के विपरीत बहते हुए आसमान की गहराइयों में विलुप्त हो गए। तीन सौ वर्षों से चर्चा का विषय रही यह किवदंती आज भी मांझी लोगों की जुबान पर किस्सों की भांति तैर रही हैं। शाहजहां के शासनकाल में मांझी के कथित राजा के मुनीब रहे धरणी की आध्यत्मिक क्षमता का प्रस्तुतिकरण तब हुआ जब जगन्नाथपुरी।उड़ीसा। के मंदिर में लगी आग बुझाने के लिए मांझी बैठे मुनीम धरणी ने स्याही का दवात अथवा लोटा भर पानी राजा के महत्वपूर्ण कागजात पर उड़ेल दिया और जगन्नाथपुरी मन्दिर में लगी आग बुझ गई। राजा ने दूत भेज कर इस मामले गहराई जांच कराई और सही पाया। आहत राजा अपने मुनीम के आगे नतमस्तक हो गए। साथ ही जांच दल में शामिल राजा के सिपाही धरणी के शिष्य बन गए। टेकयित राय तथा उनके पुत्र परशुराम दास ने भी मुनीबी में जीवन यापन किया। तीसरी पीढ़ी में जन्में धरणी ने भी मुनीबी का वरण किया। सन 1626 में मांझी में जन्मे धरणी 40 वर्ष की अवस्था में एक पुत्र व एक पुत्री तथा पत्नी समेत परिवार से विरक्त होकर सन्यास ग्रहण कर लिया और कुटिया में रहकर शिष्यों सहित भजन भक्ति में लीन हो गए। गृहस्थ आश्रम में रहकर संत परम्परा का निर्वहन करने वाले मांझी के ही एक अन्य सन्त चन्द्रनाथ बाबा उनके गुरु थे। संत धरणी रचित ग्रन्थ सत्य प्रकाश और प्रेम प्रकाश सहित अनेक कवितावली देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आज भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को पढ़ाई जाती हैं। संत धरणी के महाप्रयाण की तिथि को लेकर शोधकर्ता एकमत नही हैं। संत परम्परा के महान मनीषी धरणी के नाम पर मांझी का नामकरण करने किये जाने की मांग जोर पकड़ने लगी हैं। नामकरण की मांग को लेकर संत धरणी के वंशजों के बीच अलख जगाने वाले जवाहर प्रसाद तथा शिक्षक रंजन शर्मा आदि को स्थानीय सोशल मीडिया ग्रुप का भरपूर समर्थन मिल रहा है। संत धरणी नगर का श्राइन बोर्ड लगने के बाद मांझी के बदले संत धरणी नगर परिवर्तित करने के लिए स्थानीय पंचायत समिति से प्रस्ताव पारित कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।


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