कोरोना को मात देकर फिर से मरीजों की सेवा में जुटे वार्ड अटेंडेंट
- इमरजेंसी वार्ड में गंभीर मरीजों की सेवा में दे रहें अपना महत्वपूर्ण योगदान
- ड्यूटी के दौरान कोरोना के चपेट में आ गये थे अभिषेक और मृत्युंजय
- सामाजिक भेदभाव से नहीं मानी हार
राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
छपरा (सारण)। वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ जंग में स्वास्थ्य विभाग के कर्मी अपने कर्तव्यों को बखूबी निभा रहे हैं। ऐसे में मरीजों की सेवा करने के दौरान कई चिकित्सक कर्मी भी इसके चपेट में आ गये हैं। सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के वार्ड अटेंडेंट कोरोना को मात देकर फिर मरीजों की सेवा में जुट गये हैं। ड्यूटी के दौरान सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड अपनी सेवा दे रहे वार्ड अटेंडेंट अभिषेक पाठक और मृत्युंजय कुमार सिंह उर्फ छोटू सिंह भी कोरोना के चपेट में आ गये थे। 18 जुलाई को दोनों की रिपोर्ट पॉजिटिव पायी गयी। जिसके बाद उन्हें आइसोलेशन सेंटर में भर्ती कराया गया। दस दिन आईसोलेशन सेंटर में रहने के बाद दोनों ने कोरोना को मात दे दिया। 28 जुलाई को दोनों को आईसोलशन सेंटर से डिस्चार्ज कर दिया गया। होम क्वारेंटाईन की अवधि पूरा करने के बाद फिर से मरीजों की सेवा में जुट गये हैं। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में चिकित्सकों के कदम से कदम मिलाकर चल रहे वार्ड अटेंडेंट भी किसी कोरोना योद्धा से कम नहीं है। इमरजेंसी वार्ड में आने वाले हर गंभीर मरीजों के उपचार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहें हैं।
सामाजिक भेदभाव का करना पड़ा सामना:
कोरोना से संक्रमित तमाम लोगों को महामारी से ज्यादा सामाजिक भेदभाव का डर सता रहा है। ऐसे में कोरोना योद्धा के प्रति भी लोगों के मन में भेदभाव पैदा हो रहा है। कोरोना से जंग जीत कर लौटे वार्ड अटेंडेंट अभिषेक पाठक और मृत्युंजय कुमार सिंह बताते हैं उनके गांव में लोगों ने उनके साथ भी भेदभाव किया। उनके संक्रमित होने की सूचना को सोशल मीडिया के माध्यम से भी प्रचारित किया गया। मृत्युंजय कुमार सिंह बताते हैं वह जब कोरोना से ठीक होकर घर लौटे तब उनके साथ भेदभाव करना गांव और आस-पड़ोस के लोगों ने शुरू कर दिया। लोग जब उनके घर के पास से गुजरते थे तो उनके चेहरे पर एक अजीब सा भाव होता था। लोग मृत्युंजय कुमार सिंह के घर के पास से बहुत तेजी से गुजर जाते थे। मृत्युंजय कुमार सिंह आगे बताते हैं कि उनके पड़ोसियों ने भी भेदभाव किया। जिस चपाकल से वह पानी लेने जाते था वहां से लोग भाग जाते थे। उस चपाकल को लोग छूना भी छोड़ दिये थे। अभिषेक पाठक के साथ भी गांव व आस-पास के लोगों ने भेदभाव किया। जिससे उन दोनों को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन इन सब बातों को दरकिनार करते हुए दोनो वार्ड अटेंडेंट फिर से अपने कर्तव्यों को बखूबी निभा रहें है।
परिवार के सदस्य और दोस्तों ने बढ़ाया हौसला:
जब अभिषेक पाठक और मृत्युंजय कुमार सिंह कोरोना के चपेट में आ गये और दोनों आईसोलशन सेंटर में भर्ती थे। तब उनके परिवार के सदस्य और दोस्तों ने काफी सहयोग किया। वीडियो कॉल के माध्यम से दोस्त और परिवार लोग उनसे बात करते थे और दोनों का हौसला बढ़ाते थे। उनके दोस्त उन्हें आईसोलेशन सेंटर में भी खाने-पीने की चीजे पहुंचाते थे और हमेशा यह भरोसा दिलाते थे कि वे जल्द हीं ठीक हो जाएंगे. इसमें उन्हें अपने सहकर्मियों का भी काफी सहयोग मिला।
अब बरत रहें पूरी सावधानी:
वार्ड अटेंडेंट अभिषेक पाठक और मृत्युंज कुमार सिंह अब ड्यूटी के दौरान पूरी सावधानी बरत रहें हैं। मरीजों को छूने से पहले गल्ब्स और मास्क का उपयोग हमेशा कर रहे हैं। साथ ही अस्पताल आने वाले व्यक्तियों को मास्क के उपयोग के बारे में जानकारी दे रहें है तथा मास्क पहनने के लिए प्रेरित कर रहें है। इमरजेंसी वार्ड में हर तरह के मरीज आते हैं, इसलिए यहां सावधानियां बहुत जरूरी है। किस व्यक्ति को कोरोना है यह पता लगाना मुश्किल है। इसलिए सभी नियमों का पालन करते हुए अपनी ड्यूटी कर रहें है।
भेदभाव पर लोगों को सलाह:
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने भी दिशा निर्देश जारी कर कोरोना उपचाराधीन लोगों के साथ हो रहे भेदभाव पर आम लोगों को सलाह दी है:
• मरीजों और उनके परिवार के सदस्यों का तिरस्कार न करें, उनका सहयोग करें
•कोरोना वायरस से ठीक होकर घर लौटे लोगों का मनोबल बढ़ाएं, उनसे दूरी न बनाएं
•संक्रमण से प्रभावित लोगों के नाम, उनकी पहचान, उनके घर का पता सोशल मीडिया पर साझा न करें।
•जो लोग संक्रमण से स्वस्थ हो गए हैं, उनके बारे में सकारात्मक बातें लोगों को बताएं ताकि उनमें डर खत्म हो।
•कोरोना संक्रमण के फैलाव के लिए किसी समुदाय या किसी इलाके को जिम्मेदार न ठहराएं।
• जिनका उपचार चल रहा है उन्हें संदिग्ध के रूप में नहीं बल्कि कोरोना को हराने वाले के रूप में देखें।


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