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बिहार में दलित सीटों का समीकरण, दलित वोट बैंक सत्ता की दिशा और दशा दोनों तय करने की ताकत रखता है

बिहार में दलित सीटों का समीकरण, दलित वोट बैंक सत्ता की दिशा और दशा दोनों तय करने की ताकत रखता है

कशिश भारती की रिपोर्ट

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर वोटों की राजनीति शुरू हो गई है। सभी राजनीतिक दलों की नजर दलित वोट बैंक पर है। जानकारी के अनुसार बिहार विधानसभा में कुल आरक्षित सीटें 38 हैं। 2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि, जेडीयू को 10, कांग्रेस को 5, बीजेपी को 5 और बाकी चार सीटें अन्य को मिली थी। इसमें 13 सीटें रविदास समुदाय के नेता जीते थे। जबकि 11 पर पासवान समुदाय से आने वाले नेताओं ने कब्जा जमाया था। 2005 में जदयू को 15 सीटें मिली थीं और 2010 में 19 सीटें जीती थी। बीजेपी के खाते में 2005 में 12 सीटें आईं थीं और 2010 में 18 सीटें जीती थी। आरजेडी को 2005 में 6 सीटें मिली थीं जो 2010 में घटकर एक रह गई थी। 2005 में 2 सीट जीतने वाली एलजेपी ने तो 2010 में इन सीटों पर खाता तक नहीं खोला और कांग्रेस का भी यही हाल था। ऐसे में 2015 में सबसे ज्यादा सीटें जीतने को लेकर सभी राजनीतिक दलो का नजर दलित वोट बैंक पर है, जिन्हें अपने-अपने तरीके से दलितों काे आकषिर्त करने में लगे हुए है। बता दें कि बिहार में दलित 16 फीसदी दलित मतदाता हैं, जो 22 जातियों में बंटा हुआ है। सारे दलित वोट को मिला दें तो कमोबेश यादव वोट बैंक से कम ताकत नहीं रखता है। दलित कोटे के वोट का 70 फीसदी हिस्सा रविदास, मुसहर और पासवान जाति का है। ऐसे में सूबे में दलित वोट बैंक सत्ता की दिशा और दशा दोनों तय करने की ताकत रखता है।

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