राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

सारण : लोक गीत परंपराएं इतिहास बनने के कागार पर, अब चैता-चैती की गूंज नहीं सुनाई दे रही ग्रामीण चौपालों में

सारण : लोक गीत परंपराएं इतिहास बनने के कागार पर, अब चैता-चैती की गूंज नहीं सुनाई दे रही ग्रामीण चौपालों में

राणा अखिलेश परमार
छपरा (सारण)। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत बुधवार से हो गई। वहीं चैत्र माह में बिहार के पश्चिमी व उत्तर प्रदेश के पू्र्वांचल के जिलों में लोक गायन चैत-चैती की परंपरा विलुप्त होती नजर आ रही है। शिक्षाविद प्रो. राजगृह सिंह व प्रो. अजीत कुमार सिंह के अनुसार आंचलिक क्षेत्रों की आंचलिकता लोक गीतिक परंपराओं में ही लोक संस्कृति को जीवंत बनायी हुई थी। किंतु, लोक गीतिक परंपराएं बाजारवाद की बलि चढ़ रही हैं। बरसाती, कजरी, जांतसारी, सोहर, झुमर, धानरोपनी, संझा-पराती की भांति होली के बाद चैता चैती के ताल अब ग्रामीण चौपालों में नहीं गूँजते। बहरहाल, इतिहास बनने के कागार पर हैं, लोक गीतिक परंपराएं। झाल के झंकार, नाल-ढोलक आदि के अलावा ताल व तासा हुर्का पर ‘आहो रामऽ चइते मासे” धमार की धमक नहीं सुनाई पड़ते।

आईए जानते हैं क्या है चैता-चैती 

प्रसिद्ध भोजपुरी के लोकगायक अरूण अलबेला बताते है कि भारतीय संस्कृति में सर्वमान्य विक्रम संवत का प्रथम माह चैत्र है। इस माह में गाए जाने वाले लोक गीत भोजपुरी जनपदों में चैता-चैती कहे जाते हैं। चैता-चैती के पांच भेद हैं, जो पश्चिमी बिहार, झारखंड व पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी जनपदों में गाए जाते हैं। इन पांच भेदों में गौरी चैता, भीम चैता, घांटो चैता, दोआबा चैता और चैती प्रमुख हैं। ढोलक, नाल, तासा, हुर्का, झाल, करताल, गोपीचंद, पखावज, कलार्नेट, कैसियों, तबला आदि से लैस झलकुटिया मंडलियों के मुख्य गायक व्यास या मुलगैन के संगतकार सजिदें मौसम के अनुसार रामायण, फगुआ-फगुई, बरसाती, कजरी आदि गायन में सुर पर टेक लगाते हैं। अब यह लोकगीत आॅडियो-वीडियों पर ही सुना व देखा जा सकता है।

चैता का सांगीतिक शास्त्रीय विधान

दिघवारा स्थित रामजंगल सिंह कॉलेज के संस्थापक अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह व मनींद्र नाथ सिंह के अनुसार व्यास शैली के तहत कई लोक गाथाओं को स्वरबद्ध करने वाले ठाकुर उदय नारायण सिंह, संगीताचार्य स्वर्गीय गिन्नी जी पांडेय, साहित्य व संगीत के मर्मज्ञ विद्वान डॉ. राजेश्वर सिंह राजेश, राष्ट्रपति के सम्मानित लोक गायक सुरेश सिंह, रामेश्वर गोप आदि चैता और चैती को एक ही राग के दो स्वरूप मानते हैं। चैता विलंबित स्वर से शुरू होकर ताल चांचर फिर कहरवा, दीपचंदी और ताल धमार के साथ ताल गिरता है। जबकि चैती द्रूत स्वर में गायी जाती है। सहित्य व संगीताचार्य नागेन्द्र कुमार वर्मा के अनुसार चैता-चैती राग यमन से शुरू होता है। 14 मात्रा ताल दीपचंदी के तहत शुरू होती है-‘ बिहरेली अंबिका भवानी हो रामऽ आमी नगर मे’ राग सारंग थाट के अन्तर्गत आता है।

You may have missed