बुंदेलखंड की दीवाली के बाद मौन पूजा का है विशेष महत्व
दीवाली के दूसरे दिन गत दिनांक 15 नवम्बर 2020 सेे शुरू मोनिया मिलन महोत्सव अगले दो तीन दिन तक बुंदेलखंड में चहलकदमी मचाए रखता है । देवारी पूरे महीने तक होती रहती है। ये बुंदेलखंड का सबसे बड़ा महोत्सव है, जिसमे पूरे बुंदेलखंड के हर गांव गांव में मौन चराने का प्रचलन है। हर साल की तरह इस साल भी बुंदेलखंड के राठ, मुस्करा, बसवारी ,सरीला, गहरौली, न्यूरिया, इमलिया, चिल्ली, उमरी, चरखारी, बिवार ,मौदहा , हमीरपुर ,कब्राई महोबा, ललितपुर, झांसी आदि में लोगों ने दीवाली पर्व पर मौन व्रत रखा भगवान श्री कृष्ण की ये विशेष पूजा होने के कारण मोर के पंख का मूठा बनाकर लोग अपने साथ मन्दिरों में ले जाते है फिर उस मूठे की पूजा होती है ।
कवि जीतेन्द्र कानपुरी ने बताया कि इस दिन गाय की पूजा आवश्यक मानी गई है , ये समझो की बछिया पूजन की परम्परा कई पीढ़ियों से चली आ रही है । पूजा सुबह दस बजे से शुरू होती है फिर इसके बाद पद यात्रा करते हुए लोग सभी मंदिरों में पहुंचकर प्रसाद चढ़ाते हुए देर शाम को घर अपने खेरे पर पहुंचते है वहां पहुंचने के बाद बछिया पूजन इसके बाद घर के सदस्य व्रत वालों को माखन मिश्री खिलाकर व्रत तोड़वाते है।
वास्तव में दीवाली में मनुष्य के अन्दर के भावों में बहुत से परिवर्तन होते है। एक पॉजिटिव सोच के साथ लोग दिन भर भूखे प्यासे और बिना बोले दस या बीस किलोमीटर तक पैदल यात्रा करते है। जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है। कवि जीतेन्द्र कानपुरी का कहना है कि मै खुद एक साल इस व्रत को कर चुका हूं । वास्तव में कुदरती शक्ति सी आ जाती है। दिन भर पैदल चलने के बाद भी बच्चा हो या बूढ़ा हो वो थकता नहीं है। ऐसे परंपराएं अनोखी परंपराएं है। इन परम्पराओं से किसी को कोई नुक्सान नहीं बल्कि उपवास से शरीर और मन स्वस्थ होकर शरीर को लाभ ही पहुंचाता है। मौनियों की भीड़ और यहां की देवारी एक महोत्सव की तरह लगती है जिसकी वास्तविक झलक बुंदेलखंड में ही देखने को मिलती है। ऐसी परम्पराओं को जिन बुजुर्गों ने जीवित रखा उनको मै बार बार प्रणाम नमन वंदन करता हूं। आशा करता हूं जब तक धरती रहेगी ऐसे महोत्सव हमेशा ही चलते रहेंगे।


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