राष्ट्रनायक न्यूज

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राघवेन्द सरकार के पद -रज से पवित्र है, सारण, त्रेता द्वापर व कलियुग में भी प्रमंडल की भूमि पावन हुई है भगवान के श्रीचरणों से

राणा परमार अखिलेश,

दिघवारा (सारण)-अरण्यक संस्कृति का पुरोधा सारण की पुण्य भूमि त्रेया युग में श्री राम, द्वापर में श्री कृष्ण और कलि काल में बुद्ध व महावीर के चरण चिह्नों से पावन हैं । अल्लामा इकबाल के’ इमामे-हिंद राम,’कैफी आजमी के बादशाहे-अयोध्या के पूर्व भक्तिकाल के प्रातः स्मरणीय गोस्वामी तुलसीदास के परब्रह्म परमेश्वर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के चरण -रज से पावन व पवित्र है,सारण। बहरहाल, यही कारण है कि राम कथा सहित्य पूरे सारण प्रमंडल में लोक व्यापी है।

रामकथा पर शोध करने वाले विद्वानों के अनुसार ताड़का, सुबाहु बध के बाद ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के यज्ञ संपन्न हुए और महाप्रभु श्री राम लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र सहित दंडकारण्य से सारण्य (सारण) में चरण रखा ।गौतम स्थान (रिवीलगंज) में अहिल्या उद्धार कर छपरा दधिचि आश्रम (दहियावां), मेषध आश्रम ( चिरांद) अंबिका स्थान (आमी) ,हरिहर क्षेत्र (सोनपुर) होते हुए मिथिला की सीमा हरिपुर ( हाजीपुर) पहूंचे थे।जहाँ वैशाली नरेश सुमति ने उनका स्वागत किया था। हरिपुर- रामभद्रपुर में सिद्धि यज्ञ हुआ था ,जो अभी रमचौरा नाम से जाना जाता है।
छः दिन सारण में राम वरात का पड़ाव, नामाकरण छपरा: लोककवि भिखारी ठाकुर ने छपरा संज्ञा के पीछे राम बरात के छः दिवसीय पड़ाव को रेखांकित करते है-‘ एक दूई दिवस बरात के,जँह तहँ करत आड़ाव।

छपरा नाम पड़ल तबहिं से छव दिन पड़ल पड़ाव

सारण में राम बरात का पड़ाव कहाँ कहाँ छः दिवसीय पड़े? यह तो लोककवि ने चिन्हित नहीं की।किन्तु शोध-प्रज्ञों ने इतना तो स्पष्ट कर दिया है कि अयोध्या से गोरखपुर होते हुए राजा दशरथ, कुमार भरत और शत्रुध्न सहित काँट ब्रह्मपुत्र, गायघाट, बेला पतौर (रघुनाथ पुर), कैथी, कटेयां, दुबौली, मैरवां, कदंब ऋषि आश्रम (कदना गड़खा) दधिचि आश्रम ( दहियावां-छपरा) मेषध आश्रम (चिरांद) शृंगी आश्रम (सिंगही) अम्बिका स्थान, आमी, हरिहर क्षेत्र,सोनपुर, हरिप्रिया, वैशाली आदि को चिन्हित किया है। *

गोस्वामी तुलसीदास पद चिन्हों को नमन करते गए थे जनकपुर: ग्रियर्सन कृत ‘नोट्स आॅन तुलसी दास,शिवनंदन सहाय रचित ‘ मानस सटिक,श्याम सुन्दर दास की ‘मानस की भूमिका ‘ पंडित रामचंद्र द्विवेदी रचित ‘तुलसी ग्र॔थावली, पंडित राम दास गौड़ रचित ‘तुलसी साहित्य रत्नाकर ‘ तथा 1964 में जयपुर राजकीय पुस्तकालय में प्राप्त ताल पत्र पर लिखित कविता ” चित्रकूट से चलिकै तुलसी हरिपुर आयो,रामचौरा मह प्रेम मगन हरि दर्शन पायो।” से विद्वान आचार्य डाक्टर राजेश्वर सिंह राजेश, दंडी डाक्टर महेश्वरानंद (महेश चंद्र राय शर्मा) ,शिक्षा विद् व पूर्व जिप अध्यक्ष ब्रजकिशोर सिंह, जेपीयू के पूर्व सिनेटर ब्रजकिशोर सिंह आदि उक्त पद का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि पूरा उत्तर बिहार भगवान राम के चरण चिह्नों से पावन हैं ।

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