# बाबा फरीद, बुल्लेशाह, रहीम, रसखान की सरजमीं पर तबलीगी की जरूरत ही क्या?
राणा परमार अखिलेश।
छपरा (सारण)– जब मिट्टी की मस्जिदें थी तब मुसलमान पक्के सच्चे वतन परस्त थे और आज पूरी दुनिया में इस्लाम की बदनामी का सबब क्या है? भारत बाबा फरीद, बुल्लेशाह, अमीर खुसरो, वारिस पिया,याहिया मनेरी की सरजमीं है और यहाँ तबलीग और तबलीगी मरकज की जरूरत ही क्या है?उक्त बातें बिहार प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष मौलाना व अल्लामा तूफैल अहमद खां कादरी ने कहीं। रामनवमी पर दिए गए अपने संदेश में प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष ने कहा कि बहाबी, देवबंदी और तबलीगी कहलाने वाले मुल्क की गंगा-जमुनी तहजीब को मिटाना चाहते है,जो किसी भी कीमत पर मुमकिन नहीं है । उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि 1857 का पहली जंगे-आजादी कौम व मुल्कपरस्त मुसलमानों ने अपने भाइयों हिन्दओं के साथ कंधा से कंधा लगा कर लड़े थे। आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के जेरे- सदारत में लड़ी गई लड़ाई में बेगम हजरत महल, बेगम नूर महल, झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के साथ गुलाम गौस खाँ, ओरछा के सिपहसालार नत्थे खाँ, बिहार के शहाबादी शेर बाबू वीर कुंवर सिंह के साथ पीर अली व धरमत बेगम एक नजीर हैं । उस वक्त तबलीगी तो थे नहीं । बरेलवी सच्चे मुल्क परस्त ,कौम परस्त व कौल के पक्के मुसलमान रहे हैं और आज भी हैं । निजामे-मुस्तफा, दारूले- हिंद व गजबा-ए-हिंद के हिमायती कभी भी अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे । खाड़ी मुल्क कई हिस्सों में हैं वहाँ निजामे-मुस्तफा क्यों नहीं कायम हुए। जिन्नावादी अपना नाम वामपंथी रखे हुए हैं और 1947 के बाद से ही काॅग्रेस इनकी सह पर वोट की रोटी मुसलमानों के तंदुर पर सेंकती आयी है। एक सवाल के जवाब में मौलाना कादरी ने कहा कि विदेशी तबलीगी मौलानाओं पर सरकार की नज़र है और कानूनन कार्रवाई होगी । उन्होंने कहा कि हम फिर से अपने पुरखों की तरह रघुवीर चाचा, रामवीर भैया , जुम्मन चाचा, बुधिया दीदी आदि रिश्ते कायम करें ।क्योंकि हमारे पुरखे और उनके पुरखे एक हैं ।मैं पहले बबुआन(राजपूत) हूँ फिर देश भक्त मुसलमान हूँ ।
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