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मकर संक्रांति पर जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का है विशेष महत्व

मकर संक्रांति पर जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का है विशेष महत्व

“मकर संक्रांति पर विशेष” 
  • “सहस्रकिरणोज्ज्वल। लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ।।”
  • भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः। विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे।।”
“भावार्थ: हे देवदेवेश ! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं। हे कोणवल्लभ ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है। विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने नमस्कार है।”वाले आप भगवान भास्कर को हमारा
छपरा (के. के. सिंह सेंगर/जयप्रकाश सिंह/वीरेश सिंह)। मकर संक्रांति हमारे देश का प्रमुख पर्व है। यह पूरे भारत और नेपाल में भी किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है। इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। जैसे:
  • मकरसंक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू ।
  • ताई पोंगल/उझवर तिरुनल : तमिलनाडु।
  • उत्तरायण : गुजरात व उत्तराखण्ड।
  • माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व पंजाब।
  • भोगाली बिहु : असम।
  • शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी।
  • खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार।
  • पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल।
  • मकर संक्रमण : कर्नाटक।
  • लोहड़ी : पंजाब।
विभिन्न नाम भारत के बाहर:
  • बांग्लादेश : पौष संक्रान्ति
  • नेपाल : माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’ ‘खिचड़ी संक्रान्ति’
  • थाईलैण्ड : सोंगकरन
  • लाओस : पि मा लाओ
  • म्यांमार : थिंयान
  • कम्बोडिया : मोहा संगक्रान
  • श्रीलंका: पोंगल, उझवर तिरूनल।
उतर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है।
बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -” तिल, गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।” इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।”
  • तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं।
  • असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।
  • राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
मकर संक्रान्ति का महत्व:
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है:
“माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम्। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥”
(अर्थात् मकर संक्रांति के दिन जो व्यक्ति कम्बल और शुद्ध घी को दान के रूप में देता है वह व्यक्ति अपने जीवन-मरण के सम्बन्ध से मुक्त होने के बाद अर्थात् अपनी मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करता है।)
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है।
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व:
मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, और विशेषकर गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था।
संक्रांति के दिन सम्बन्धों में मिठास लाने की परम्परा है:
“तिलवत् स्निग्धं मनोऽस्तु वाण्यां गुडवन्माधुर्यम्।तिलगुडलड्डुकवत् सम्बन्धेऽस्तु सुवृत्तत्त्वम्।।”
(अर्थात् मकर संक्रांति पर तिल समान हम सभी के मन स्नेहमय हो, गुड़ समान हमारे शब्दों में मिठास हो और जैसे लड्डू में तिल और गुड़ कि प्रबल घनिष्ठता है वैसे हमारे संबंध हों।”
संक्रांति नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर तथा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व है। इस अवसर पर सूर्य के बढने वाले तेज की तरह एक दूसरे के स्वास्थ्य और समृद्धि बढने की कामना की जाती है:
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते। तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।”
(अर्थात् जैसे मकर राशि में सूर्य का तेज बढता है, उसी तरह आपके स्वास्थ्य और समृद्धि में बढोतरी की हम कामना करते हैं।)
तो आइये, आत्मोद्धारक और जीवन-पथ प्रकाशक पर्व मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर सभी के स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करें।
(लेखक श्री जय प्रकाश सिंह मूलतः बिहार के सारण जिला के निवासी हैं व वर्तमान में शिमला में आईजी, पुलिस के रूप में तैनात हैं।)
प्रस्तुति: के. के. सिंह सेंगर/वीरेश सिंह