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म्यांमार में तख्तापलट करने वाले जनरल मिन आंग लाइंग अपनी क्रूरता के लिए हैं पूरी दुनिया में चर्चित

म्यांमार में तख्तापलट करने वाले जनरल मिन आंग लाइंग अपनी क्रूरता के लिए हैं पूरी दुनिया में चर्चित

नई दिल्ली, (एजेंसी)। म्यांमार में एक बार फिर से सेना ने तख्तापलट कर दिया। म्यांमार की सेना द्वारा तख्तापलट कर स्टेट काउंसलर आंग सान सू को नजरबंद कर दिया गया है। आंग सान सू के साथ भारत के रिश्ते बेहद करीबी बताए जाते हैं। ऐसे में म्यांमार में लागू एक वर्षीय अपातकाल को लेकर भारत का बयान आना लाजिमी है। भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से म्यांमार की घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए हालात पर नजर रखने की बात कही है। म्यांमार में अनिश्चितता के हालात के पीछे सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग का हाथ बताया जा रहा है। मिन आंग लाइंग सेना के कमांडर इन चीफ हैं और अपनी क्रूरता के लिए पूरी दुनिया में चर्चित हैं। जनरल मिन आंग लाइेग: म्यांमार में एक दशक पहले तक सेना का ही शासन चलता था। 50 सालों तक सेना के कब्जे में देश होने के बाद पिछले साल नवंबर में चुनाव हुए। जिसमें एनएलडी पर बड़े आरोप लगे। जब म्यांमार लोकतंत्र की ओर अग्रसर था उसी वक्त जनरल मिन ने सेना का जिम्मा संभाला। जिसके बाद धीरे-धीरे एक राजनेता और सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में खुद को परिवर्तित करना शुरू कर दिया। म्यांमार की सेना ने अगस्त 2017 में रखाइन प्रांत में एक अभियान चलाया जिसनें रोहिंग्या मुस्लिमों को निशाना बनाया गया। जिसके बाद आलम ये रहा कि करीब 5 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों को देश छोड़ पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण लेना पड़ा। उस वक्त जनरल मिन की सेना पर रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से रेप और यौन हिंसा के भी संगीन आरोप लगे और इसके कई सबूत भी पेश किए गए। रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार के बाद जनरल मिन के फेसबुक प्रोफाइल को बंद कर दिया गया था। म्यांमार में सेना के लिए आरक्षित 25 फीसदी सीट: म्यांमार में लोकतंत्र स्थापित होने के बाद भी असली ताकत हमेशा सेना के पास ही रही। अप्रत्यक्ष रूप से आर्मी म्यांमार की पहली शक्ति बनी रही। 2008 के सैन्य मसौदा संविधान के तहत म्यांमार की कुल सीटों का 25 फीसदी सेना के पास है। इसके अलावा प्रमुख मंत्री पद भी सेना के लिए आरक्षित है। काउंसलर आंग सान सू: नजरबंद की गईं काउंसलर आंग सान सू म्यांमार की आजादी के नायक रहे जनरल आंग सान की बेटी हैं। 1948 में ब्रिटिष शासन से आजादी मिलने से पहले जनरल आंग सान की हत्या कर दी गई थी। उस वक्त आंग सान सू महज दो वर्ष की थीं। सान सू को दुनिया भर में मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली महिला के रूप में देखा गया। साल 1991 में नजरबंदी के दौरान ही उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। नवंबर 2015 में आंग सान सू की पार्टी नेशनल फॉरडेमोक्रेसी पार्टी ने एकतरफा चुनाव जीता।