100 साल से यूं ही खड़ा है इतावली पुनर्जागरण शैली का नायाब और भव्य नमूना
पटना(बिहार)। बिहार विधानसभा का भवन रविवार को सौ साल का हो जाएगा। सात फरवरी 1921 को विधानसभा के मौजूदा भवन का उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने किया था। 100 साल पहले इस भवन में कालांतर में कुछ विस्तार भी हुए, लेकिन इसकी मूल संरचना पर कोई असर नहीं पड़ा। निर्माण के मामले में अब भी यह कई नायाब नमूने को सहेजे हुए है, जो इसे विशिष्ट श्रेणी में खड़ा करता है। बिहार के विधायिका इतिहास को देखें तो साल 1920 का इतिहास में खास स्थान है। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया अधिनियम 1919 के तहत ह्यबिहार एवं उड़ीसाह्ण को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला जो 1920 में साकार हुआ। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलते ही बिहार में राज्यपाल की नियुक्ति हुई। इसके पहले बिहार में उपराज्यपाल हुआ करते थे। बिहार के पहले राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा हुए। अलग राज्य बनने पर एक परिषद सचिवालय की जरूरत महसूस की गई तो 1920 में एक इमारत (मौजूदा विधानसभा भवन) बनाई गई।
एएम मिलवुड की ओर से तैयार इस भवन में उस समय विधान परिषद की कार्यवाही चलने लगी। लेकिन साल 1935 के अधिनियम से जब बिहार विधानमंडल को दो भागों विधानसभा और विधान परिषद, में बांट दिया गया तब परिषद वाले भवन को ही विधानसभा के संचालन के लिए दे दिया गया। जबकि इससे सटे विधान परिषद के लिए अलग से नई और छोटी इमारत बनाई गई। इस दृष्टि से देखें तो बिहार विधानसभा के मौजूदा भवन को बने 100 साल हो गए। विधानसभा के मुख्य भवन की डिजाइन वास्तुविद एएम मिलवुड ने तैयार किया था। इतावली पुनर्जागरण शैली (रेनेंसा आर्किटेक्चर) में बनी यह इमारत कई मायनों में खुबसूरती को समेटे हुए है। इसमें समानुपातिक गणितीय संतुलन के साथ ही सादगी और भव्यता का समन्वय है। लंबे-लंबे गोलाकार स्तम्भ और अर्धवृताकार मेहराब इसकी विशेषता है जो प्राचीन रोमन शैली से प्रभावित है। इस आयताकार भवन में समरूपता का विशेष ख्याल रखा गया है। भवन के अगले हिस्से में जो प्लास्टर है, उसमें एक निश्चित अंतराल पर कट-मार्क है जो इसे बेहद खूबसूरत बनाते हैं और दूसरी संरचनाओं से इसे अलग भी करते हैं। विशेषज्ञ इसे इंडो सारसेनिक शैली का उदाहरण मानते हैं। बिहार विधानसभा का सभा कक्ष आयताकार पर ब्रिटिश पार्लियामेंट से अलग अर्धगोलाकार के शक्ल में बना है।
विधानसभा का मूल कक्ष सभा भवन जहां सदन का संचालन होता है, इसकी आंतरिक संरचना 60 फीट लंबी और 50 फीट चौड़ी है। इसका विस्तार इमारत के दोनों मंजिलों में है। प्रेस प्रतिनिधि के साथ-साथ दर्शकों के लिए ऊपरी मंजिल में गैलरी की व्यवस्था है। 1952 में पहले विधान सभा कार्यकाल में 331 सदस्य सभाकक्ष में बैठा करते थे। साल 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में विधानसभा सदस्यों की संख्या 324 हो गई और एक मनोनीत सदस्य पूर्ववत बने रहे। बाद में जब साल 2000 में बिहार का विभाजन होकर झारखंड बना तो विधानसभा के 324 से घटकर 243 सदस्य अभी इसमें बैठा करते हैं। विधानसभा के अगले हिस्से की लंबाई 230 फीट है, जबकि विधानमंडल की कुल लंबाई 507 फीट है। वहीं सभा की चौड़ाई 125 फीट है। विस्तार के बाद बने परिसर में तीन हॉल हैं। इसके मध्य भाग में 12 कमरे हैं। सभाध्यक्ष के कार्यालय कक्ष की लंबाई-चौड़ाई 18 गुन 20.9 फीट है। सबसे बड़ा कक्ष मुख्यमंत्री के लिए है। सीएम कक्ष की लंबाई व चौड़ाई 18 गुने30 फीट है। नेता प्रतिपक्ष के लिए पहले तल्ला पर कक्ष बना है जिसकी लंबाई-चौड़ाई 18 गुने 20 फीट है। सभा सचिव व संसदीय कार्य मंत्री के कार्यालय कक्ष की लंबाई-चौड़ाई भी 18 गुने 20 फीट ही है।


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