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पाकिस्तान में हादसे के बीच बुद्ध, पुरातत्वविदों की टीम ने एक विशाल परिसर का पता लगाया

पाकिस्तान में हादसे के बीच बुद्ध, पुरातत्वविदों की टीम ने एक विशाल परिसर का पता लगाया

हाल ही में पाकिस्तान समेत हमारे तीन पड़ोसी देशों में हादसे हुए। ये तीनों देश दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य हैं। सबसे पहले पाकिस्तान में त्रासदी हुई, जहां तीन पर्वतारोहियों ने 8,611 मीटर ऊंचे पहाड़ के-2 पर सर्दियों में चढ़ाई शुरू की थी और अब लापता हैं। प्रकृति बहुत क्रूर हो सकती है, चाहे वह पहाड़ों, समुद्रों या मैदानों पर हो, और इसका असर सभी जगह देखा जा सकता है। गौर करने वाली बात है कि के-2 एकमात्र ऐसी चोटी है, जिस पर सर्दियों में चढ़ाई कभी संभव नहीं हुई, इसलिए अनुभवी पर्वतारोहियों के लिए भी यह सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

अधिकांश पर्वतारोही बोतलबंद आॅक्सीजन के बिना, जो आमतौर पर 8,000 मीटर से ऊपर की चोटियों के शिखर तक जाने के लिए आवश्यक है, शीर्ष चोटी पर पहुंचना चाहते हैं। के-2 की ऊंचाई समुद्र तल से 8,611 मीटर है, और जो 8,848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा पहाड़ है। यह उत्तरी पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बाल्टिस्तान के बीच चीन-पाकिस्तान सीमा पर स्थित है। जब ये तीन पर्वतारोही गायब हुए, तो अत्यंत खराब मौसम के कारण बचाव अभियान के तहत उनकी तलाश रोक दी गई। हाल ही में चार नेपाली शेरपाओं ने के-2 को नापने का प्रयास करते हुए सर्दियों में अधिकतम 26,000 फीट ऊंची चढ़ाई का पिछला रिकॉर्ड तोड़ा और आखिरकार शिखर तक पहुंचे। पाकिस्तानियों की नजरें अब उत्तराखंड में हुई त्रासदी पर हैं, जिसमें दर्जनों लोगों की मृत्यु हुई और सौ से ज्यादा लोग लापता हैं। जैसे ही उत्तराखंड त्रासदी की खबर यहां पहुंची, पाकिस्तानियों ने ट्वीट करना शुरू कर दिया और लापता लोगों के लिए दुआ करते हुए शुभकामनाएं भेजने लगे।

पाकिस्तान विदेश कार्यालय ने तुरंत भारत को एक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने मौतों पर शोक जाहिर किया और उम्मीद जताई कि लापता लोग जल्दी मिल जाएंगे। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित होने वाले शीर्ष देशों में पाकिस्तान और भारत, दोनों शामिल हैं। और अब भूटान की राजधानी थिंपू के दक्षिण-पश्चिम में निमार्णाधीन वांगचू पुल के ध्वस्त होने की खबर आई है, जिसमें कई लोग मारे गए और कई अन्य के लापता होने की सूचना है। हालांकि ये सभी दुखद खबरें थीं, लेकिन इस हफ्ते पाकिस्तान में कुछ सुखद खबरें भी सुनने को मिलीं। सबसे बड़ी खबर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से आई, जहां पुरातत्वविदों की एक टीम ने एक विशाल बौद्ध परिसर का पता लगाया है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि यह कुषाण युग से संबंधित है।

बौद्ध परिसर का सटीक स्थान स्वात जिले के नाजीग्राम इलाके में है। यह परिसर मिंगोरा शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर नाजीग्राम इलाके में आबा साहिब चीना गांव में स्थित है। यह एक ऐसे क्षेत्र में एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है, जहां पहले से ही उत्खनन में प्राचीन बुद्ध मूर्तियों सहित बौद्ध संस्कृति से जुड़ा बहुत कुछ मिला है और जो अब पाकिस्तान के अंदर सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। इस स्थल पर काम कर रहे एक विशेषज्ञ ने कहा कि इस स्थल का महत्व रोम से प्रकाशित होने वाली ईस्ट ऐंड वेस्ट जर्नल जैसी ऐतिहासिक पत्रिकाओं में इटली के प्रसिद्ध पुरातत्वविदों के लेखन में दर्ज किया गया है।

यह पूरा इलाका चार से छह किलोमीटर के दायरे में फैला है, लेकिन विशेषज्ञों ने 94 कनाल पर प्रारंभिक खुदाई शुरू कर दी है। इससे पर्यटन में बढ़ोतरी होगी, जो विदेशी पर्यटकों, खासकर बौद्धों को आकर्षित करेगा। जब पाक तालिबान ने इस क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया था, तब अशांति के कारण पर्यटन का कामकाज ठप हो गया था। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मालाकंद मंडल में कुल मिलाकर 150 बौद्ध स्थल हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कुषाण युग पहली शताब्दी में था और आज जिस क्षेत्र में कुषाण युग के शिलालेख पाए गए हैं, वह आधुनिक काल के अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर उत्तरी भारत में साकेत और वाराणसी के निकट सारनाथ तक फैला था।

इस क्षेत्र का परीक्षण करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले उन्होंने ऐसे बौद्ध स्थल की खोज नहीं की थी, जहां एक क्षेत्र में सभी चार स्तूप मिले हों। पाए गए पूजा स्थल काफी दिलचस्प हैं, जहां बौद्ध प्रतिमाएं और मठ भी शामिल हैं। एक विशाल हॉल और आवासीय इकाइयां भी मिली हैं। हालांकि पाकिस्तान में पाए गए सभी बुद्ध प्रतिमाओं में उपवास करते बुद्ध की मूर्ति सबसे शानदार है, जिसे प्रसिद्ध लाहौर संग्रहालय में रखा गया है और जो विशेष रूप से विदेशी पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है। यह एक दुर्लभ प्राचीन वस्तु है। लाहौर संग्रहालय के मुताबिक इसकी खुदाई सीकरी में कोनोल एचए डीन द्वारा की गई थी, जो गांधार काल की मूर्ति है और इसे 1984 में संग्रहालय को दान किया गया। सीकरी स्तूप तीसरी से चौथी शताब्दी का एक और बौद्ध स्थल है।

उपवास करते बुद्ध की मूर्तिकला में मानवीय दुखों का समाधान पाने के लिए बुद्ध के संघर्ष में उनके नायकत्व को बहुत ही गतिशील तरीके से दशार्या गया है। बोधगया में ज्ञानोदय के बाद बुद्ध ने ध्यान किया और उनचालीस दिनों के लिए उपवास किया था। यह सोचकर सचमुच आश्चर्य होता है कि यह वही देश है, जहां महान बौद्ध धर्म का इतना बड़ा इतिहास है, बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा प्रतीक उनकी शिक्षाएं हैं। बुद्ध ने सिखाया कि ज्ञान, दया, धैर्य, उदारता और करुणा मनुष्य के महत्वपूर्ण गुण हैं। लेकिन आज की दुनिया बदल गई है। पाकिस्तान बदल गया है और ये महत्वपूर्ण गुण, जो कभी इस भूमि का हिस्सा हुआ करते थे, अब नहीं हैं। अधिकांश धर्म भी सिद्धांत में बुद्ध के इन उपदेशों को मानते हैं, लेकिन व्यवहार में कोई भी इनका पालन नहीं करता है।