समुद्री तटों का पर्यावरणीय संतुलन तेजी से गड़बड़ा रहा है
राष्ट्रनायक न्यूज। हाल ही में जारी पृथ्वी-विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र बहुत अधिक प्रभावित हो रहे हैं। सनद रहे कि ग्लोबल वार्मिंग से उपजी गर्मी का 93 फीसदी हिस्सा समुद्र पहले तो उदरस्थ कर लेते हैं, फिर जब उन्हें उगलते हैं, तो कई परेशानियां पैदा होती हैं। बहुत-सी चरम प्राकृतिक आपदाओं, जैसे-बरसात, लू, चक्रवात, जल स्तर में वृद्धि आदि का उद्गम स्थल समुद्र ही होते हैं।
जब परिवेश की गर्मी के कारण समुद्र का तापमान बढ़ता है, तो अधिक बादल पैदा होने से भयंकर बरसात, गर्मी के केंद्रित होने से चक्रवात, समुद्र की गर्म भाप के कारण तटीय इलाकों में बेहद गर्मी बढ़ने जैसी घटनाएं होती हैं। भारत में गुजरात से नीचे आते हुए कोंकण, फिर मालाबार और कन्याकुमारी से ऊपर की ओर घूमते हुए कोरामंडल और आगे बंगाल के सुंदरबन तक कोई 5,600 किलोमीटर सागर तट है। यहां नेशनल पार्क व अभ्यारण्य जैसे 33 संरक्षित क्षेत्र हैं। इनके तटों पर रहने वाले करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन समुद्री मछली व अन्य उत्पाद ही हैं। पर हमारे समुद्री तटों का पर्यावरणीय संतुलन तेजी से गड़बड़ा रहा है।
‘असेसमेंट आॅफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन’ शीर्षक की यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों के प्रति आगाह करती है व सुझाव भी देती है। इसमें बताया गया है कि यदि हम इस दिशा में नहीं संभले, तो लू की मार तीन से चार गुना बढ़ेगी व इसके चलते समुद्र के जलस्तर में 30 सेंटीमीटर तक बढ़त हो सकती है। यह किसी से छिपा नहीं है कि इस सदी के पहले दो दशकों (2000-2018) में भयानक समुद्री चक्रवाती तूफानों की संख्या में इजाफा हुआ है।
रिपोर्ट बताती है कि मौसमी कारकों की वजह से उत्तरी हिंद महासागर में अब और अधिक शक्तिशाली चक्रवात तटों से टकराएंगे। ग्लोबल वॉर्मिंग से समुद्र का सतह लगातार उठ रहा है और उत्तरी हिंद महासागर का जल स्तर जहां 1874 से 2004 के बीच 1.06 से 1.75 मिलीमीटर बढ़ा, वह बीते 25 वर्षों (1993-2017) में 3.3 मिलीमीटर सालाना की दर से बढ़ रहा है। यह रिपोर्ट सावधान करती है कि सदी के अंत तक जहां पूरी दुनिया में समुद्री जलस्तर में औसत वृद्धि 150 मिलीमीटर होगी, वहीं भारत में यह 300 मिलीमीटर (करीब एक फुट) हो जाएगी। साफ है कि यदि इस दर से समुद्र का जल-स्तर ऊंचा होता है, तो मुंबई, कोलकाता और त्रिवेंद्रम जैसे शहरों का वजूद खतरे में होगा, क्योंकि यहां घनी आबादी समुद्र से सट कर बसी हुई है।
पृथ्वी मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र में हो रहे परिवर्तनों की बारीकी से निगरानी, उन आंकड़ों का आकलन और अनुमान, उसके अनुरूप उन इलाकों की योजनाएं तैयार करना समय की मांग है। भारत में जलवायु परिवर्तन की निरंतर निगरानी, क्षेत्रीय इलाकों में हो रहे बदलावों का बारीकी से आकलन, जलवायु परिवर्तन के नुकसान, बचाव के उपायों को शैक्षिक सामग्री में शामिल करने व आम लोगों को जागरूक करने के लिए अधिक निवेश की जरूरत है। इससे समुद्र तट के संभावित बदलावों का अंदाजा लगाया जा सकता है और आबादी पर आने वाले संभावित संकट से निपटने की तैयारी की जा सकती है।
समुद्र वैज्ञानिक चिंतित हैं कि सागर तल खाली बोतलों, केनों, अखबारों व शौच-पात्रों के अंबार से पटती जा रही हैं। मछलियों के अंधाधुंध शिकार और मूंगा की चट्टानों की बेहिसाब तुड़ाई के चलते सागरों का पर्यावरण संतुलन गड़बड़ाता जा रहा है। सागरों की विशालता व निर्मलता मानव जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती है। पृथ्वी के मौसम और वातावरण में नियमित बदलाव का काफी कुछ दारोमदार समुद्र पर ही होता है। समुद्र के पर्यावरणीय चक्र में जल के साथ-साथ उसका प्रवाह, गहराई में एल्गी की जमावट, तापमान, जलचर जैसी कई बातें शामिल हैं व एक के भी गड़बड़ होने पर समुद्र के कोप से मानव जाति बच नहीं पाएगी। यही कारक जलवायु परिर्वतन जैसी त्रासदी को सुरसा मुख देते हैं। इसलिए इन पर नियंत्रण कर ही सागरों को भीषण होने से बचाया जा सकता है।
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