किसान औन-पौन भाव में बेच रहे हैं सब्जियां, सारण के सब्जी उत्पादकों की लागत पूंजी भी वापस नहीं हो पा रही है
राणा परमार अखिलेश।दिघवारा
छपरा (सारण) कैरोना ब्रेक डाउन में सबकुछ ब्रेक है। डिस्टेंश मेनटेनेश को लेकर पुलिस बल परेशान है,शरारती तत्वों की पिटाई पुलिसिया लाचारी बन गई है। वहीं जब ग्रामीण बाजारों, पेठिया, चौक-चौराहों के सब्जी विक्रेताओं की चांदी है और सब्जी उत्पादकों को समर्थन मूल्य को कौन कहे लागत पूंजी भी वापस नहीं हो पा रही है। जिला मुख्यालय में कटहरी बाग से लेकर शहर के बीच से निकलने वाली सड़के थोक सब्जी आढ़तों से भरी पडी है। उसी प्रकार दिघवारा मे करीब डेढ दर्जन सब्जी आढ़तें हैं, दरियापुर के खानपुर सोनपुर के बाकरपुर, परसा, पोझी, लहलादपुर, अमनौर, गड़खा में आढतें हैं, जहाँ पल्लेदारों, डंडीदारों और खरीदारों में डिस्टेंश मेनटेनेश का प्रयास तो कर रहे है। लेकिन क्रेताओं में सस्ती से सस्ती क्रय व मंहगा विक्रय की होड़ लगी हुई है। नाजीर के तौर पर दिघवारा की आढ़तें पहलें मुख्य बाजार में लगतीं थी। डिस्टेंश मेनटेनेश नहीं हुए और गुप्तेश्वर महादेव मंदिर रोड में तीन दिनों तक लगी किन्तु चौथे दिन कतिपय लोगों की हाथापाई ने पुलिस को आने का निमंत्रण दे दिया।बहरहाल, पुलिसकर्मियों ने जमकर लाठियाँ बजाईं और प्रशासन ने किसानों, सब्जी विक्रेताओं व आढ़तों के संचालकों के हितों को ध्यान में रखते हुए फोरलेन पर लगाने का फरमान जारी किया। बहरहाल, गत शुक्रवार से सब्जी आढतें फोरलेन पर लग रही हैं ।
सनद रहे कि दिघवारा का सैदपुर, दियारा क्षेत्र अकिलपुर, रामदासचक, सलहली, शंकर पुर, बंगला पर, दुधिया तथा दरियापुर प्रखंड के सज्जनपुर मटिहान, भैरोपुर, मानपुर, मुजौना, सखनौली, सुअरा, अदमापुर, कमालपुर रानीपुर मकईपुर छोटामी, रामगढ़ा, मिर्जापुर आदि गांव सब्जी उत्पादकों का गांव है। जो सिर्फ सब्जी से हुए आय पर गेहूँ चावल, दाल, तेल, कपड़े आदि खरीदते हैं । कैरोना ब्रेक डाउन ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया है। किसी प्रकार लागत पूंजी निकल जाए इस चक्कर में औन-पौन भाव में सब्जियां बेंच रहे हैं । खरीददार भी अब पटना, मुजफ्फरपुर, बलिया, देवरिया से नहीं आ रहें हैं और समय निर्धारित है। सुबह 7 बजे से 10 बजे तक आढतें खाली हो जानी चाहिए। ऐसे में सस्ती सब्जी खरीदने के लिए लोगों का आना जारी है । डिस्टेंश मेनटेनेश के लिए आढ़त संचालकों द्वारा बार-बार खबरदार किया जा रहा है। किंतु कोई माने तब तो। इधर पुलिस-प्रशासन ने चेतावनी दी है कि यदि डिस्टेंश मेनटेनेश नहीं हुए तो जबरन फोरलेन भी खाली कराना पडेगा। यदि ऐसा हुआ तो सब्जी उत्पादक सब्जियों को कहाँ बेचेंगे? क्या सरकार उसकी भरपाई करेगी? दरियापुर प्रखंड के दरियापुर बाजार व खानपुर में लग रही सब्जी आढतें भी खस्ता हाल में हैं तो परसा का माडर, बहमाडर, पोझी के किसान बउधा नदी और गंडक नदी के दोनों तरफ ककड़ी, करैला, लौकी, भिंडी, नेनुआ, बिन्स, बरबट्टी, खीरा, तरबूज,खरबूज आदि उत्पादन करते हैं । उधर पानापुर दियारे की सब्जियां मशरक बाजारों से लेकर इसुआपुर, नगरा, खोदाई बाग तक आती थी। वैसे ही लहलादपुर, रिवीलगंज, मांझी का सब्जी उत्पादक दियारा क्षेत्र अपने किसानों को लाभ नहीं दे पा रहा है। बहुतेरे किसान तो हरी सब्जियां अपने पशुओं को चारा के रूप में खिला दे रहे हैं ।
दुग्ध उत्पादकों के दूध विक्रय की समस्या : सब्जी उत्पादकों की तरह दूध उत्पादकों को कैरोना ब्रेक डाउन ने आर्थिक कमर तोड़ दी है। डेरी के टैंकर भी क्रीम मापकर औन-पौन दाम पर दूध ले रहे है। चाय, मिठाइयों की दुकानें लाॅक अप है। लिहाजा, दूध विक्री समस्या है। मगर सब्जी उत्पादकों और दूध उत्पादकों में अंतर यह है कि दूध से दही और घी निकाल रहे हैं, पनीर मिल्क पार्लर बेंच रहे हैं किन्तु सब्जी उत्पादकों के सामने समस्या है क्या करें हरी सब्जियों का?
आढ़तों की भूमिका: सब्जी उत्पादक सब्जियों को निजी वाहनों, साइकिल, सिर पर लेकर आढ़तों तक पहूंचते हैं। क्योंकि सब्जी उत्पादक सब्जियों की खेती के लिए आढ़तों के संचालकों पर निर्भर हैं, पूँजी वहीं से मिलती है। लिहाजा, जिस आढ़त से पूंजी मिली है, उत्पादित सब्जियां वहीं जाती है। उनकी सब्जियों का मूल्य निर्धारण भी खरीदारों की मौजूदगी में बोली लगाकर होती है। सब्जियों के तौल के पूर्व डंडीदारों द्वारा बानगी निकाली जाती है और खरीददारों को आढ़तों को 10 से 15 प्रतिशत अदा करनी पड़ती है। कैरोना ब्रेक डाउन में अब बोली पर भी ताले जड़ दिए हैं। फिर भी आढ़तों में सुबह 7 बजे से 11 बजे तक खरीददारों की भीड़ मुंह में गमछा लपेटे दिख रही है। पिकअप वैन, टैक्टरों से मार्केट सब्जियां जा रही है। आढ़तों में पटल 10 रूपये लेते है और बाजारों में 30-40 रूपये प्रति किलोग्राम बेंचते है। लौकी का क्रय मूल्य 8-10 रूपये तो बाजार मे 15-20 रूपये इसी प्रकार धनिया पत्ता, से लेकर भिंडी करेला आदि औन-पौन दाम पर पैकार खरीदते हैं और डेढा दूगना दाम पर बेंच रहे हैं । सवाल उठता है कि क्या सरकार केसीसी माफ कर देगी या आढत संचालक लोन माफ कर देंगे । सब्जियों के उत्पादन से गेहूं चावल दाल का स्टाॅक बना पाएंगे सब्जी उत्पादक?


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