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शिक्षकों के मृत्यु पर भी कूटनीतिक दांंवपेंच खेल करने से बचे:-चन्देल

शिक्षकों के मृत्यु पर भी कूटनीतिक दांंवपेंच खेल करने से बचे:-चन्देल
हड़ताली शिक्षक भी अब यूँ मौन होकर मरते नहीं रहेंगे

छपरा (सारण)- : शिक्षक नेता विश्वजीत सिंह चन्देल ने कहा कि बिहार में जहाँ कोरोना वैश्विक महामारी के कारण बिहार के एक व्यक्ति की मौत होने के बाद प्रशासन के हाथ पाँव फूल रहे हैं।वहीं बिहार के चार लाख शिक्षक हड़ताल पर डटे हुए हैं और इस बीच सरकारी मुलाजिमों के लगातार दमन के कारण अधिकांश आंदोलनकारी हड़ताली शिक्षक हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज तथा पैसे के अभाव में इलाज न कराने के कारण असमय काल के गाल में समाते जा रहे हैं। पूरे बिहार के 50 से अधिक शिक्षकों का असामयिक निधन वेतन के अभाव में समुचित इलाज नहीं करवा पाने के कारण एवं सरकार के द्वारा दमनात्मक कार्रवाई किए जाने के कारण हृदयाघात के साथ भुखमरी से हो गया है।उसके बाद भी बिहार सरकार अपने अड़ियल रवैये पर अड़ी हुई है और शिक्षक संघ से वार्ता करके हड़ताल को समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर रही है।प्रधानमंत्री द्वारा लॉक डाउन के कारण सभी सरकारी एवं निजी संस्थान से बार बार अनुरोध किया जा रहा है कि सभी सरकारी एवं निजी संस्थान के लोग अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं रोकें। प्रतिमाह अपने सभी कर्मचारियों का वेतन दें चाहे वे उपस्थित हों अथवा अनुपस्थित हों भुगतान करते रहें। फिर भी इस सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और विगत जनवरी 2020 से ही इस सरकार द्वारा सभी नियोजित शिक्षकों का वेतन भुगतान बंद किए हुए है। बिहार के शिक्षक हड़ताल पर हैं और माननीय शिक्षा मंत्री हड़ताल तोड़ने हेतु पहल करने के बजाए शिक्षकों के साथ कूटनीतिक दांंवपेंच का खेल खेलते जा रहे हैं और शिक्षकों को व्हाट्सएप एवं ई मेल के माध्यम से हड़ताल से वापस आने की अपील कर रहे हैं जो कि हास्यास्पद प्रतीत होता है।शिक्षा मंत्री को विडिओ कांफ्रेंसिंग के माध्यम से शिक्षक संगठनों से वार्ता करना चाहिए ना कि कूटनीति का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ कूटनीतिक दांंव खेलना चाहिए।हड़ताली शिक्षक भी अब यूँ मौन होकर मरते नहीं रहेंगे बल्कि समय आने पर लोकतांत्रिक ढंग से करारा जवाब दिया जाएगा सरकार के एजेंडे में न हीं शिक्षा है न हीं शिक्षक ।2015 में जब सरकार ने कबूल किया कि 3 महीने के अंदर नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त नियमावली लागू कर देंगे, तो आज 5 वर्षों के बाद भी सेवाशर्त नियमावली क्यों नहीं बन पाया?लोकतंत्र में सारी समस्याओं का निदान वार्ता के द्वारा संभव होता है। इसलिए नियोजित शिक्षकों को वार्ता द्वारा न्यायोचित मांगो पर विचार कर हड़ताल को समाप्त कराएँ उन्हें मरने के लिए नहीं छोड़े अपने अभिभावक धर्म का पालन करें।