- अचीवर्स जंक्शन पर भोजपुरी के गौरव डॉ. प्रभुनाथ सिंह पर आयोजित स्मृति परिचर्चा में विद्वानों ने रखे विचार
राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
छपरा (प्रो. अजीत कुमार सिंह)। भोजपुरी के गौरव और भोजपुरी आंदोलन को मजबूती से धार देने वाले मशहूर आंदोलनकर्मी, राजनेता व साहित्यकार सारण जिले के मांझी प्रखंड के मुबारकपुर गांव निवासी डा प्रभुनाथ सिंह की 12वीं पुण्य तिथि पर सोशल मीडिया के अचीवर्स जंक्शन ने एक कार्यक्रम आयोजित कर परिचर्चा करायी।स्मृति परिचर्चा में देश के जाने माने भोजपुरी साहित्यकार डॉ. ब्रजभूषण मिश्र, डॉ. जयकान्त सिंह जय व प्रसिद्ध रंगकर्मी व फिल्मकार उमेश सिंह ने स्व. डॉ प्रभुनाथ सिंह की सामाजिक, राजनीतिक व साहित्यिक जीवन के साथ भोजपुरी आंदोलन को दिये योगदान की विस्तार से चर्चा की। डॉ. प्रभुनाथ सिंह के विश्व भोजपुरी सम्मेलन के स्थापना काल से वर्षों तक भोजपुरी के संवैधानिक लड़ाई लड़ने सहित मांझी प्रखंड के ही नचाप गांव निवासी रंगकर्मी व फिल्मकार उमेश कुमार सिंह ने अपना विचार रखते हुए कहा कि डॉ. प्रभुनाथ सिंह द्वारा दी गई भोजपुरी आंदोलन की धार को ही हाईजैक कर लिया गया। आंदोलन को हाईजैक कर अपना राजनैतिक व व्यक्तिगत स्वार्थ लोगों ने साधा। फिर आंदोलन को ही भटका दिया।
उमेश सिंह ने प्रभुनाथ सिंह के दिल्ली प्रवास शुरुआत करने के दौरान मसहूर साहित्यकार डॉ. केदारनाथ सिंह के साथ मिल कर दिल्ली में भोजपुरी के साहित्यिक, अकादमिक व सांस्कृतिक आंदोलन करने की विस्तार से चर्चा की। इन महान विद्वान की सलाह पर भिखारी ठाकुर के विभिन्न नाटकों का अपने निर्देेशन और अभिनय से दर्जनों मंचन कर दिल्ली जैसे महानगर मेें भोजपुरी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान करने वााले उमेश सिंह ने कहा कि डॉ. प्रभुनाथ सिंह ने संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए पहले सांस्कृतिक, साहित्यिक व आकादिमक आंदोलन छेड़ा। जिसका नतीजा था कि भोजपुरिया संसार, विश्व भोजपुरी सम्मेलन की पत्रिका भैरवी आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। इग्नू व बिहार-यूपी के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भोजपुरी की पढाई प्रारंभ हो गई। देश के कोने-कोने में विश्व भोजपुरी सम्मेलन का सफल आयोजन कर डाॅ प्रभुनाथ सिंह ने भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा मिलने के दरवाजे तक पहुंचा दिया। परंतु राजनैतिक बिल के तहत एक सांसद की जीत सुनिश्चित कराने के लिए आडवाणी ने मिथिला भाषा को दर्जा दिलवा दी और भोजपुरी को नजरअंदाज कर दिया। श्री सिंह ने कहा कि एक भोजपुरिया प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर का भोजपुरी के प्रति उदासीनता और विरोध ने संविधान के चौखट से भोजपुरी को लौटा दिया। फिर भी प्रभुनाथ ने हार नहीं मानी। उमेश सिंह ने परिचर्चा में प्रभुनाथ सिंह के भोजपुरिया आंदोलन के कई रहस्यमय जानकारी लोगों से शेयर की।
उमेश जी ने कहा कि हम बिना पोलिटिकल बिल के यह लड़ाई नहीं जीत सकते हैं। इसके लिए भोजपुरी क्षेत्र से जुड़े सांसदों को अपना राजनैतिक बिल का प्रदर्शन करना होगा। रंगकर्मी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और भोजपुरिया सांसद व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से अभी भी उम्मीद है। हम लोगों को मिलकर अपने अधिकार की बात कर डॉ. प्रभुनाथ सिंह के सपनों को पूरा कर सकते हैं और यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। परिचर्चा में ऑन लाइन जुड़े देश-विदेश के भोजपुरी प्रेमियों ने उमेश सिंह से फिर एक बार आंदोलन शुरू करने की अपनी बात कर साथ देने का संकल्प लिया। परिचर्चा में प्रसिद्ध भोजपुरी साहित्यकार डॉ. (प्रो) जयकान्त सिंह जय ने डॉ. प्रभुनाथ सिंह के साहित्यिक जीवन के साथ उनके राजनैतिक संघर्ष को बहुत ही रोचक ढंग से भोजपुरी हिन्दी मिश्रित शब्दों में बातें रखी। उनकी प्रसिद्ध रचना कहां गईल मोरे गांव रे को भी प्रो. जयकान्त ने सुनाया। वहीं संचालन कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ब्रजभूषण मिश्र ने भी डॉ. प्रभुनाथ सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला।



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