राष्ट्रनायक न्यूज।
रोम जल रहा था और नीरो (राजा ) बाँसुरी बजाने में मगन था। यह पूराना हो गया।आने वाली पीढी़ अब यह याद करेगी कि कोरोना से लोग मर रहे थे और राजा रैलियों में मस्त था, क्योंकि लोगों की जान से प्यारा था उसका, चुनाव जीतना। जी हाँ आपने ठीक ही समझा। मेरा इशारा पश्चिम बंगाल चुनाव की ही है।
आज देश कोरोना से त्राही माम, त्राही माम चिल्ला रहा है। आक्सीजन, दवा, सैफ्टी किट आदि की किल्लत ने चारों तरफ हा हा कार मचा रखा है।श्मशानों में चिता जलाने की जगह नहीं है। शवदाह गृह में भी भीड़ लगी हुई है। घंटों इन्तजार करना पर रहा है,तब जाकर नम्बर आता है। अस्पताल भर गये हैं। अस्पतालों में जगह नहीं मिलने के कारण भी इलाज के इन्जार करते करते लोग दम तोड़ रहे हैं। चारों तरफ से आवाजें आ रही है- मुझे बचा लो, मुझे बचा लो। कोई सुनने वाला भी नहीं है।
सत्ता के विरोधी भी और सत्ता के समर्थक भी, दोनों मर रहे हैं बे फिक्र हैं ‘ तो दो आदमी ।देश का प्रधानमंत्री और गृह मंत्री। इन दोनों के लिये चुनाव और सत्ता की कीमत जनता की जान से कई गुणा अधिक है। जी हाँ पश्चिम बंगाल में चुनाव है। सभी दलों का चुनावी रैली करना स्वभाविक ही था। वायरस के बढ़ते हुए कहर के मद्देनज़र सी पी आई (एम) ने घोषणा कर दिया कि वो चुनाव प्रचार के लिये रैलियों के बजाय घर घर जाकर तथा सोशल मिडिया के माध्यम से प्रचार करेगा। अभी भी भाजपा ओर त्रिणमूल काँग्रेस, दोनों की रैलियों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सत्ता के हवस का नजारा देखना है तो आज पश्चिम बंगाल में देखा जा सकता है। क्या आपने ऐसा प्रधानमंत्री देखा है जो, इस महामारी से बचाव के लिये लम्बा चौरा प्रवचन फेंकता है और अपनी रैलियों में अपने ही सुझाओं की बडी़ बेशर्मी से धज्जियाँ उडा़ता है ? नहीं देखा है! तो दिल्ली नहीं बंगाल में देख लिजिये।गृहमंत्री के विषय में क्या कहना। कानून व्यवस्था तो उन्हीं के इशारे पर उठता बैठता है। दो गज दूरी, मास्क है जरुरी, बोल बोल कर माथा चाटने वाले तो आज कल उन्हीं के चहेते हैं। शायद भेंट नहीं हुई हो।चुनाव आयोग भी खामोश है। भला खामोश भी क्यों न रहे! चुनावी रैलियाँ मालिकों का जो ठहरा।
मैं एक टेलिविजन डीबेट सुन रहा था।ऐंकर के एक सवाल पर भाजपा प्रवक्ता ने जवाब दिया कि कुम्भ में जितने भी श्रद्दालू स्नान कर रहे हैं, सबको जाँच से गुजारा गया है। स्नान करने की इजा़जत केवल निगेटिव वालों को ही मिल रही है। तो फिर स्कूल कालेज क्यूं बन्द कर दिया ? शैक्षणिक संस्थानों में भी तो यह तरीका अपनाया जा सकता था। कई सवाल हैं जो सता नशीनों की कुर्सियों के चक्कर लगा रही है। उसे क्या पता , वहाँ कान बहरे और आँख अंधे हैं।दिल है तो केवल सत्ता के लिये।
2020 में साहेब को ट्रम्प के स्वागत और मध्यप्रदेश की सरकार गिराने से फुर्सत मिला तो अफसरों जैसा लौकडाउन का फरमान जारी कर दिया। हजारों लोगों की जानें गयी एवं लाखों का रोजगार छिन गया। फिर भी आपदा को अवसर में बदलने का क्रम जो उनका जारी हुआ, आज तक है।
पश्चिम बंगाल चुनाव बीतने दिजिये। रैलियों से मोहलत मिलने दिजिये।फिर सुनियेगा लच्छेदार भाषण और देखियेगा ऐसे आँसू, जिससे घरियाल भी शर्मा जाये। अभी यहीं बुदबुदाते रहिये – जनता मर रही है और उन्हें रैलियाँ सूझ रही है।
लेखक, अहमद अली
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