राष्ट्रनायक न्यूज।
सहरसा। गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का संबोधन मुख्य ट्रस्टी डॉ अरूण कुमार जायसवाल ने यूट्यूब लाइव प्रसारण के माध्यम किया ।उन्होने कहा-जिन्दगी के एक मुकाम पर इन्सान बेवश और लाचार हो जाता है।वह किसी का हो भी सकता है नहीं भी हो सकता है और किसी को खो भी नहीं सकता है।हर मुकाम पर इन्सान बेवश हो जाता है।अगर विवेक हो तो इन्सान बेबस नहीं होगा।आपकी उपलब्धियाँ आपकी पड़ेशानी सकारात्मक और नकारात्मक जो आपके अंदर पैदा होती है वह अपने आप विचित्र संयोग का परिणाम है।चाहे आपका प्रारब्ध या चाहे आपका पुरूषार्थ हो।आपकी रुचियाँ होती है या आपकी प्रवृत्तियां होती है।आपका सहयोग होता है आपका विरोध होता है, तो यह विवशता अहंकार की होती है।डॉ जयसवाल ने कहा कि प्रकृति संकेत देती है,या तो हम समझ नही पाते या समझने में आनाकानी करते हैं।इसी का परिणाम है कि आज हमलोग वेवस हैं,लाचार,हताश, निराश और असुरक्षित हैं।यही है अहंकार और स्वार्थ।अहंकार और स्वार्थ के कारण हीं इन्सान लाचार हताश और निराश रहता है।ऐसे में सभी समस्याओ का हल ईश्वर शरणागति में है।उन्होंने कहा आप साधक बनिये या नहीं बनिये पर भक्त अवश्य बनिये।उन्होंने जिज्ञासा प्रश्न ऋग्वेद में भगवान राम और कृष्ण का चर्चा क्यों नहीं है? समाधान देते हुए कहा-ऋग्वेद में ना तो कहीं भगवान राम और न हीं कृष्ण का उल्लेख है।जबकि भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का उल्लेख है।अन्य देवी देवता का भी उल्लेख है।भगवान राम भगवान विष्णु का अवतार हैं। इसलिए राम प्रक्रिया का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं है।इसलिए राम भगवान का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं है। वैसे आप मान सकते हैं राम का उल्लेख है वे विष्णु के अवतार हैं। ऋग्वेद दार्शनिक है।श्रृष्टि का दर्शन है,दार्शनिक मंत्र है।यह सच है कि भगवान राम विष्णु के अवतार हैं।राम चरित मानस में लिखा है लेकिन ऋग्वेद में नहीं है।पौराणिक कथा का प्रसंग अलग है लेकिन वेद का सूत्र अलग है।इसलिए दोनों का प्रसंग अलग है।उक्त आश्य की जानकारी गायत्री शक्तिपीठ के मीडिया प्रभारी श्यामा नन्द लाल दास ने दी ।


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