राष्ट्रनायक न्यूज। तीस साल पहले जब मैंने पत्रकारिता शुरू की थी, तब यह बहुत लोकप्रिय पेशा नहीं था। इसमें वेतन मामूली था और कोई आपको पहचानता नहीं था। उच्च शिक्षित और अभिजात परिवारों के कम ही लोग पत्रकारिता में आते थे। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि हमें सिखाने वाले बेहतरीन और समर्पित लोग थे, जो उच्च पेशेवर नैतिकता में विश्वास रखते थे। लेकिन आज का परिदृश्य बहुत ही अलग है, जहां खासकर टेलीविजन एंकरों को मीडिया के सितारों की तरह देखा जाता है। उन्हें लाखों रुपये वेतन दिए जाते हैं, जो किसी भी कंपनी के एक सामान्य सीईओ से अधिक होता है। टेलीविजन पर दिखने के कारण उनकी व्यापक पहचान होती है और सार्वजनिक जगहों पर उनके आसपास भीड़ जुट जाती है। टीवी चैनल भी इन एंकरों को तरजीह देते हैं, क्योंकि उनसे उनके चैनलों को उच्च रेटिंग मिलती है। सोशल मीडिया ने इन पत्रकारों को और प्रसिद्ध बनाया है, जिनमें से अनेक पत्रकार ब्लॉग लिखते हैं।
पाकिस्तान में एक बार फिर आज मीडिया सरकार के निशाने पर है। स्वतंत्र मीडिया को अंकुश में रखने के लिए सरकार द्वारा नए कानून प्रस्तावित किए जा रहे हैं। अब लाया गया पाकिस्तान मीडिया विकास प्राधिकरण अध्यादेश तो पत्रकारों के खिलाफ जैसे युद्ध की घोषणा है। अंग्रेजी दैनिक डॉन का संपादकीय कहता है, ‘लागू होने पर यह जबर्दस्त सेंसरशिप के जरिये प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आलोचना और विरोध की आवाजों को खामोश कर देगा, और केवल लचीले मीडिया को ही जीवित रहने की अनुमति देगा। सूचनाओं (कथाओं) को नियंत्रित करने का यह नग्न प्रयास लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की तार्किकता की अंतड़ियां निकाल देगा, जो जनहित के प्रहरी के रूप में सत्ता की ज्यादतियों और कामकाज पर नजर रखता है।’
वरिष्ठ और लोकप्रिय पत्रकार व जियो टेलीविजन के एंकर हामिद मीर के साथ हुआ सुलूक इस आशंका को सच साबित कर सकता है, जिन्हें हाल ही में उनके शाम के कार्यक्रम ‘कैपिटल टॉक’ करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। दरअसल हाल ही में हामिद मीर अन्य पत्रकारों के साथ इस्लामाबाद स्थित नेशनल प्रेस क्लब के सामने असद अली तूर के समर्थन में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। असद अली तूर का अपना वीब्लॉग है, जिसमें वह अक्सर सुरक्षा प्रतिष्ठान की आलोचना करते हैं। पिछले दिनों तीन लोगों ने तूर के घर में घुसकर उन्हें बेरहमी से पीटा और कहा कि वे इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) से हैं।
उस घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर उपलब्ध है, इसके बावजूद अभी तक किसी की अपराधी पहचान नहीं हुई है, न ही किसी अपराधी को गिरफ्तार किया गया है। मीडिया वॉचडॉग फ्रीडम नेटवर्क पाकिस्तान ने हाल ही में बताया कि इस्लामाबाद देश के पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक शहर बन गया है। हामिद मीर ने प्रेस क्लब में अपने भाषण में किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन यह शीशे की तरह साफ था कि वह आईएसआई के बारे में बात कर रहे थे। अपने बगल में खड़े तूर की ओर इशारा करते हुए हामिद मीर ने कहा था, ‘वे हमारे घरों में घुसकर हम पर हमला कर सकते हैं, लेकिन हम उनके घरों के अंदर नहीं जा सकते, क्योंकि हमारे पास बंदूकें और टैंक नहीं हैं। लेकिन हम आपको बता सकते हैं कि उनके घरों में क्या चल रहा है। एक जनरल की पत्नी ने उस पर गोली चलाने के लिए उसकी पिस्तौल का इस्तेमाल क्यों किया?’ हामिद मीर की इन टिप्पणियों ने सुरक्षा प्रतिष्ठान को इतना नाराज कर दिया कि उन्हें तुरंत आॅफ एयर करने के आदेश दे दिए गए।
हामिद मीर ने मीडिया को बताया, ‘मैंने पिछले हफ्ते इसलिए बोलने का फैसला किया, क्योंकि बस बहुत हो चुका है। पिछले एक साल में पत्रकारों के खिलाफ धमकी और हमले के 148 मामले दर्ज किए गए हैं। मीडिया पर भारी सेंसरशिप है, जिनमें आवाजों को बीप करना, अचानक शो बंद करना और रहस्यमय तरीके से चैनलों का गायब होना जैसे हथकंडे शामिल हैं।’ मीर ने अपने भाषण में हमलावरों को चेतावनी दी थी कि अगर वे पत्रकारों के घरों में हमला करते रहे, तो पत्रकार समुदाय भी चुप नहीं बैठेगा। हामिद मीर को मानवाधिकार कार्यकतार्ओं और कानूनी बिरादरी से भी भारी समर्थन मिला है। यह सिर्फ इस जियो टीवी एंकर की बात नहीं है।
सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा मीडिया पर जोर-जबर्दस्ती के खिलाफ इसलिए भी भारी गुस्सा है, क्योंकि इमरान खान सरकार बेबसी से सब कुछ देख रही है और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा रही। हामिद मीर समझते हैं कि जियो और जंग ग्रुप पर सुरक्षा प्रतिष्ठान का जबर्दस्त दबाव है, इसलिए उन्हें ऑफ एयर कर दिए जाने पर हैरानी नहीं है। ‘जब जियो न्यूज के प्रबंधन ने मुझे यह कहने के लिए बुलाया कि वे मुझे ऑफ एयर करने के लिए दबाव का सामना कर रहे हैं, तब मैंने उन्हें दोष नहीं दिया। आखिर खुद चैनल मालिक मीर शकील-उर-रहमान को भी सलाखों के पीछे 241 दिन बिताने पड़े थे, और तब हू्मन राइट्स वॉच ने ‘राजनीति से प्रेरित’ बताकर उस घटना की निंदा की थी। ‘मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से यह पूछना चाहता हूं कि क्या उन्हें 14 साल पहले मुझसे किया गया वह वादा याद है कि जब मैं प्रधानमंत्री बनूंगा, तब पत्रकार समुदाय का समर्थन करूंगा? क्या वह अब पत्रकारों के साथ खड़े होंगे, जैसा उन्होंने तब किया था, या वह प्रेस की स्वतंत्रता के दुश्मनों का पक्ष लेंगे’, हामिद मीर कहते हैं।
नए कानून में न्यायपालिका के बजाय सरकार द्वारा एक न्यायाधिकरण लाने का प्रस्ताव है, जो यह तय करेगा कि पत्रकारों द्वारा क्या कहा जा सकता है और क्या नहीं। यही नहीं, किसी भी सामग्री को बिना सूचना या सुनवाई के प्रतिबंधित किया जा सकता है और दोषियों को तीन साल तक की जेल और लाखों रुपये का जुमार्ना लगाया जाएगा। कुल मिलाकर, पाकिस्तान का मीडिया इन दिनों मुश्किल में है। न केवल सरकार, बल्कि सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा भी उस पर लगातार हमले किए जा रहे हैं।


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