राष्ट्रनायक न्यूज

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पूर्ण रूप से समानता बिना नवभारत की कल्पना बेमानी है : अमित नयन

पूर्ण रूप से समानता बिना नवभारत की कल्पना बेमानी है : अमित नयन 

छपरा(सारण)। जिस तरह बहुत से दार्शनिकों और समाज सुधारकों ने हमारे देश से बहुत सी कुरुतियों और अन्याय संगत प्रथाओं का खात्मा किया। जैसे राजाराम मोहन राय ने सती प्रथा का विध्वंस किया, ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवाओं के नवजागरण और उत्थान के लिए विधवा पुनर्विवाह कानून1856 ई. में पारित करवाया। जिससे हमारे समाज की महिलाओं की स्थिति उस भयावह युग से कुछ बेहतर हुई। आज जब हम नवभारत की कामना कर रहे हैं तो उसे पूरा करने के लिए हमें विभिन्न स्तर से अपने प्रयास निष्ठावान होकर साधक की भांति करनी पड़ेगी। उनमें से अति महत्वपूर्ण विषय सामाजिक रुप से समानता एवं एकरूपता का बोध धरातल पर होना अनिवार्य है। संविधानिक रुप से समानता एवं न्यायसंगत अधिकार मिला है सभी को, लेकिन समाजिक रुप से इसे पूर्णतः स्वीकार्यता नहीं मिली है। अजीब विडंबना है यहां, परम्पराओं के अनुसार हमारे समाज के पुरुष अपनी स्त्री से संतान नहीं होने पर संतान सुख (विशेष रूप से पुत्र ) के लिए दूसरी शादी आसानी से कर सकते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का विरोध का सामना नहीं करना पड़ता। वहां उन्हें पूर्ण रूप से स्वतंत्रता प्राप्त है। वहीं बात जब महिलाओं की इच्छा एवं अधिकार की आती है, तब हमारे समाज की दृष्टि एवं सोच उससे विपरीत हो जाती है। महिलाएं कैसे रहेंगी, क्या करेंगी, उन्हें जीवन कैसे व्यतित करना चाहिए?यह हमारा पुरुषवादी मानसिकता वाली समाज निर्णय करता है।आज हमारे समाज में घरेलू हिंसा पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गया। जिसका परिदृश्य एक नया रूप लेकर अवतरित हुआ है, जो पहले से भी भयावह रुख अख्तियार कर रहा है। आज हम पहले से जागरुक होकर अपनी बच्चियों को पढ़ा तो रहे हैं, लिए उसे अपने अनुसार बनाएं गये प्रथा एवं रिवाजों के जंजीरों में बांधने का प्रयत्न कर रहे हैं और कई हद तक बांधें हुए हैं। हमारे समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ लोगों ने समानता एवं एकरूपता के उदाहरणों को प्रस्तुत किया है। जिसकी वजह से आज हम कई विरांगनाओं जैसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, सावित्रीबाई फुले, सरोजनी नायडू, इन्दिरा गांधी, लता मंगेशकर इत्यादि जैसे नामों को गर्व से दुनिया को भारत से परिचित कराते हैं। लेकिन यह परिचय तब तक अपूर्ण है जब तक कि हमारे देश की प्रत्येक महिलाएं खुद के आत्मविश्वास, इच्छा एवं संतुष्टि के अनुसार जीवन जीने के तरीके, उद्देश एवं लक्ष्य निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त नहीं कर लेंती तब तक। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने संतानों के अन्दर अच्छे संस्कारों का पोषण नैतिक मूल्यों का विकास, समाजिक रूप से सुदृढ़ करें। लड़कियों के योग्यता एवं रूचि अनुसार उनके भविष्य का निर्धारण करने की आजादी उन्हें दें। उन्हें हमेशा उनके कार्यों के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करें।उनपे जबरन अपनी आदि काल की प्रथाओं एवं परम्पराओं को थोप कर पाप के भागीदार न बनें।जब महिलाओं को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिलेगी, तभी हम नव जागृति एवं सशक्त भारत की ओर अग्रसरित हो पाएंगे।