राष्ट्रनायक न्यूज। भारत सहित विश्व के अधिकांश देश कोरोना महामारी के दंश से प्रताड़ित हैं। महामारी की दूसरी लहर ने बीते वर्ष से भी कहीं अधिक कहर बरपाया है। महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था से लेकर गरीब के चूल्हे तक का बजट तोड़ मरोड़ कर रख दिया है। लोगों के रोजगार समाप्त हो चुके हैं। गरीब-मजदूर, रेहड़ी पटरी वालों की आर्थिकी को लगभग समाप्त सा कर दिया है। सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास भी ना काफी साबित हो रहे हैं। राहत का एक बड़ा हिस्सा राशनकार्ड और जरूरी दस्तावेजों के बीच फंस कर रह जाता है। ऐसे में देश के नौनिहालों के नन्हें हाथ भी मजबूर हैं काम करने के लिए। ऐसा लगता है की देशभर में अनलॉक होते ही बच्चों की एक बड़ी संख्या काम करने के लिए निकल पड़ी है। ऐसा केवल अपने देश में ही नहीं है, अपितु कई विकासशील देशों में देखा जा सकता है। इस महामारी ने दुनियाभर के देशों में बाल श्रम से बच्चों का जीवन जटिल बना दिया है।
भारत में कोरोना और बचपन: बच्चों का बचपन छीनती बाल मजदूरी न केवल भारतीय समाज में अपितु विश्व के अधिकांश देशों में अभिश्राप बनी हुई है। जहां भूख और गरीबी के कारण मासूमों का बचपन छीना जा रहा है। कोरोना वायरस ने दुनिया के मानचित्र पर गरीबी की गहरी खाई बनाने का काम किया है। हाल ही में हयूमन राइट वॉच द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘आई मस्ट वर्क टू ईट’ के अनुसार नेपाल, युगांडा और धाना में न केवल महामारी ने बच्चों को बाल मजदूर बनाने का काम किया है बल्कि उन्हें जोखिम भरे काम करने के लिए भी मजबूर किया है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हालांकि यह रिर्पोट तीन देशों के अध्ययन पर ही आधारित है। निश्चित तौर पर कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा कम हुआ है, लेकिन भूख और कुपोषण से जूझने वालों की तादाद अब लगातार बढ़ती नजर आ रही है। अमूमन बाजार हाट में मदद मांगने वाले पहले भी मिलते थे, लेकिन अब स्थिति पहले से भी ज्यादा चिंताजनक दिखाई पड़ती है। लोगों की हालत खस्ता है। गरीब और गरीब हो गया है। सड़कों पर भीख मांगने वालों की संख्या अचानक बढ़ गई है।
कइयों के पीठ से चिपके पेट उनकी तंगी को चीख चीखकर बयां कर रहे हैं। हालात काफी संजीदा हैं। लिहाजा समाज और सरकार को कोई पुख्ता हल निकालना ही होगा, क्योंकि दिन प्रतिदिन डब्ल्यूएचओ की चेतावनी हर बार कोई नए खतरे की तरफ इशारा करती है, जिससे पता चलता है कि ये महामारी दुनिया से अभी जाने वाली नहीं है। हमें अपने आपको इस संकट से निपटने के लिए मजबूत रखना होगा और देश पर भूख से आने वाले इस संकट से लोगों को बचाना होगा, क्योंकि बाल मजदूरी का एक बड़ा कारण गरीबी और भूख ही है।
क्या कहते हैं आंकड़े : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 5-14 वर्ष की आयु वर्ग की भारत में कुल जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है, जिसमें बाल आबादी लगभग 10 मिलियन ( लगभग 4%) बाल श्रमिक हैं जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में काम करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 15-18 वर्ष के लगभग 29 मिलियन बच्चे कार्यों में लगे हुए हैं। भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर सभी प्रकार के व्यवसायिक कार्यों पर काम करने पर प्रतिबंध किया गया है, जबकि 14-18 वर्ष के किशोरों पर केवल खतरनाक व्यवसायों पर कार्य करने पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन विडंबना यह है कि आज भी अकसर दुकानों, होटलों में कम उम्र के बच्चों को काम करते हुए देखा जा सकता है।
एडीबी के अनुमान के मुताबिक, इस महामारी के संकट काल में 24.2 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी, जिसका सीधा असर जनसामान्य के बजट पर पड़ने लगा है, ऐसे में जिनके पास पहले से कोई सेविंग मौजूद नहीं है, रोज कमाने-खाने वाले इस देश के नागरिक जिनका योगदान हमारे घरों, दफ्तरों, हमारे रोड, पार्क और वो सारी सुख सुविधाओं को तैयार करने में सबसे ज्यादा है, उनका जीवन बद से बदतर हो गया है, जिस पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। अन्यथा समाज का एक बड़ा तबका जब स्कूल फीस और आॅनलाइन क्लास की तैयारियों में मुस्तैद होगा, वहीं समाज का दूसरा बड़ा तबका अपने मासूम बच्चों का स्कूल छुड़ाकर रोटी की तलाश में लगा चुका होगा। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (कछड) और यूनिसेफ की एक रिपोर्ट की मुताबिक बाल मजदूरी पर रोक लगाने की मुहिम में 20 वर्ष में पहली बार प्रगति रुकी हुई है। जबकि इससे पहले सन् 2000 से 2016 के बीच बाल श्रम में बच्चों की संख्या लगभग 9.4 करोड़ तक कम हुई थी। लेकिन पिछले चार साल में लगभग 84 लाख की वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट ने आगाह किया है कि आने वाले समय में कोरोना महामारी के चलते बाल श्रम का खतरा और बढ़ सकता है। बाल मजदूरों में 5 से 11 वर्ष की उम्र के बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है जो चिंताजनक है।
अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता ग्रेस एबॉट ने कहा था कि ‘बाल श्रम और गरीबी साथ साथ चलते हैं। अगर आप बाल श्रम को गरीबी मिटाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप गरीबी और बाल श्रम के साथ अंत तक जिएंगे।’ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के हिसाब से बाल श्रम सामाजिक असमानता और भेदभाव को बढ़ावा देता है। बाल मजदूरी ना केवल बच्चों के शारीरिक विकास को बाधित करता है अपितु उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव छोड़ती है। महामारी के संकट में कई बच्चों ने अपने माता पिता को खो दिया है। हालांकि भारत सरकार और राज्य सरकारों ने इन बच्चों के पालन पोषण के लिए कई स्कीमें जारी की हैं जो उन्हें जीवन में कई तरह की आर्थिक समस्याओं से लड़ने में मदद करेगी। लेकिन इतने पर भी इन बच्चों का असमय काम करने का खतरा टला नहीं है जो इन्हें बाल मजदूरी के लिए विवश कर सकता है। लिहाजा बच्चों के बेहतर विकास के लिए उनकी बेहतर शिक्षा का प्रबंध करना सरकार की कोशिशों में युद्ध स्तर पर होना चाहिए ताकि पहले से मजदूरी में लगे बच्चों को और आगे आने वाले बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके। तभी हम इस समस्या का डटकर सामना कर सकते हैं।
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